2021 में 5 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में चुनाव हुआ – बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम एवं पुडुचेरी। इनमें बंगाल में तृणमूल काँग्रेस लगातार तीसरी बार सत्तावापसी की ओर अग्रसर दिखाई दे रही है, और चुनाव आयोग के प्रारम्भिक डेटा के अनुसार 292 सीटों में से वह 201 सीटों पर बढ़त बनाए दिख रही हैं। वहीं केरल राज्य की 140 सीटों में एलडीएफ को 97 सीटें मिल रही हैं।
वहीं लाख प्रयासों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को प्रमुख विपक्ष के पद से संतोष करना पड़ेगा, क्योंकि अल्पसंख्यक वोटों का एकजुट होना और कोरोना की दूसरी लहर भाजपा की लोकप्रियता को सीटों में न परिवर्तित कर पाने के पीछे एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।
एक समय राहुल गांधी ने दावा किया था कि उन्हें उत्तर भारत से ज्यादा दक्षिण भारत की राजनीति अधिक लोकप्रिय लगती है। लेकिन इसका कुछ खास असर दिखाई नहीं दिया, क्योंकि केरल में एक बार फिर वामपंथी सरकार की वापसी हुई है। वहीं कांग्रेस समर्थित यूडीएफ कुल मिलाकर 50 सीटों का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई है। ऐसे में यदि आगे चलकर केरल कांग्रेस में फूट पड़ जाए तो हैरान होने की कोई बात नहीं है।
दरअसल, केरल के विधानसभा चुनाव में वामपंथी मोर्चा को अनेक समस्याओं के बावजूद काफी भारी बढ़त मिली है। 140 में से वामपंथी मोर्चा को प्रारम्भिक डेटा के अनुसार लगभग 97 सीटों पर बढ़त प्राप्त है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस समर्थित UDF को कुल 50 सीटें भी नहीं मिल पाई हैं। स्वयं कांग्रेस को मुश्किल से 26 सीटों पर बढ़त प्राप्त हो पाई है। ये अवस्था तब है जब काँग्रेस के भावी अध्यक्ष राहुल गांधी ने केरल में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था।
लेकिन कांग्रेस के केरल गुट में फूट क्यों पड़ सकती है? कहने को केरल कांग्रेस का दूसरा गढ़ है, और यहाँ के वायनाड़ से राहुल गांधी काँग्रेस सांसद भी रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद काँग्रेस समर्थित UDF सत्ता प्राप्ति तो छोड़िए, 50 सीट भी अर्जित नहीं कर पाई। काँग्रेस को बमुश्किल 26 सीटों पर बढ़त प्राप्त हुई है, और वहीं अनेकों घोटाले और भ्रष्टाचार संबंधी आरोपों से घिरे होने के बावजूद वामपंथी मोर्चा गाजे बाजे सहित अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रही। ऐसे में अब काँग्रेस को आत्ममंथन की बेहद सख्त आवश्यकता है, लेकिन उनके भावी अध्यक्ष के हाव भाव को देखते हुए इसकी आशा बहुत कम है।