विधानसभा चुनाव 2021 में भले ही भाजपा को बंगाल में मनचाहा परिणाम न मिल पाया हो, परंतु बंगाल में उसकी मेहनत व्यर्थ भी नहीं गई है। भारतीय जनता पार्टी न केवल पश्चिम बंगाल में प्रमुख विपक्ष बनने में सफल रही है, बल्कि शुवेंदु ममता बनर्जी को उन्हीं के गढ़ नंदीग्राम में पटखनी देने में भी सफल रहे हैं।
इसके अलावा भाजपा ने नक्सलबाड़ी में भी विजय प्राप्त की है, जो न केवल अप्रत्याशित है, बल्कि भाजपा के भविष्य के लिए एक सकारात्मक परिणाम भी है।भाजपा ने कुल 294 विधानसभा सीटों में से 77 सीटों पर विजय प्राप्त की है।
वह न केवल अब बंगाल में प्रमुख विपक्ष है, अपितु उन्होंने नक्सलबाड़ी जैसे क्षेत्रों में भी विजय प्राप्त की, जो कभी वामपंथ के अभेद्य दुर्ग रहे थे। नक्सलबाड़ी से ही नक्सली आंदोलन का जन्म हुआ था, और यहीं से भारत में वामपंथी आंदोलन को धार मिली थी।
लेकिन इस क्षेत्र में भाजपा का विजय प्राप्त करना कोई आम बात नहीं है। वामपंथियों के समर्थन वाले कॉन्ग्रेस प्रत्याशी तीसरे नंबर पर और टीएसमी दूसरे नंबर पर रही है। भाजपा के आनंदमय बर्मन को 1 लाख 38 हजार से भी अधिक मत मिले हैं, जो निकटतम प्रतिद्वंदी राजेन सुंदास से 70 हजार मत अधिक हैं।
यह न सिर्फ यह स्पष्ट करता है कि बंगाल में बीजेपी अब मुख्य विपक्षी पार्टी बनने में कामयाब रही है, बल्कि उसने यह भी तय कर दिया है कि भविष्य में बंगाल तो छोड़िए, भारत भर में वामपंथ का कहीं कोई अस्तित्व नहीं बचेगा।
यह भी एक कारण है कि 2016 के चुनावों में बंगाल में केवल 10.16% वोट हासिल कर तीन सीट जीतने वाली बीजेपी इस बार करीब 38% वोट हासिल करते दिख रही है। ऐसा ही कुछ साल पहले 2018 में बीजेपी ने त्रिपुरा में कर दिखाया था, जब उसने 43.59% से अधिक मत हासिल करते हुए 25 साल से सत्तारूढ़ वामपंथियों को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था।
बंगाल में इस बार सीपीआई को 0.25% वोट तो सीपीआई [एम] को केवल 4.64% वोट मिले हैं। इतनी बुरी हालत तो 2016 के विधानसभा चुनाव में भी नहीं रही थी, जब ममता बनर्जी ने लगातार दूसरी बार
नक्सलबाड़ी की विजय केवल बंगाल के लिहाज से ही नहीं, बल्कि केरल की दृष्टि से भी बराबर महत्वपूर्ण है। केरल में इस बार भले ही कम्युनिस्ट पार्टी अपनी सरकार बचाने में सफल रहे हैं, परंतु लेकिन यह उनकी खुद की मजबूती से अधिक कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ की कमजोरी के कारण संभव हुआ है। UDF के लाचार प्रदर्शन के कारण ही अनेकों आरोपों से घिरे होने के बावजूद पिनराई विजयन एक बार फिर अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रहे हैं।
अब जिस तरह से त्रिपुरा और बंगाल जैसे अनजान प्रदेशों में बीजेपी ने संगठन खड़ा कर खुद का विस्तार किया है, यदि ऐसा ही केरल में हुआ तो 2026 में नतीजे भी मनमाफिक मिलने तय हैं। केरल में संघ और उसके आनुषंगिक संगठन भी वामपंथी हिंसा के बावजूद अरसे से लगातार काम कर रहे हैं।
तमिलनाडु में केवल 2 प्रतिशत से कुछ अधिक वोट प्राप्त करने के बावजूद यदि भाजपा 4 सीटें प्राप्त कर सकती हैं, तो सोचिए केरल में और बंगाल में 2026 में क्या प्राप्त कर सकता है? ऐसे में नक्सलबाड़ी की विजय केवल बंगाल के परिप्रेक्ष्य से ही नहीं, बल्कि देशभर में वामपंथ के अस्तित्व के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण विजय है, जिसका अंदाजा इस समय किसी को भी नहीं हो रहा है।