केरला की LDF सरकार को झटका देते हुए केरला हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 6 साल पुराने उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत अल्पसंख्यकों के नाम पर केवल मुसलमानों को 80 फीसदी स्कॉलरशिप दी जा रही थी, जबकि ईसाइयों की इन स्कॉलरशिप में महज 20 फीसदी हिस्सेदारी थी। केरला हाई कोर्ट ने इस स्कॉलरशिप स्कीम के फैसले को असंवैधानिक करार दिया।
मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार तथा न्यायमूर्ति शाजी पी चाली की खंडपीठ ने इस संबंध में सरकारी आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि यह कानूनी रूप से नहीं टिकता। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार में समुदाय के कमजोर वर्गों को सुविधाएं प्रदान करने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन जब अधिसूचित अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार करने की बात आती है, तो “उन्हें उनके साथ समान व्यवहार करना होगा।”
फैसले में कहा गया है कि सरकार को उनके साथ असमान व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने कहा, “राज्य सरकार मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को 80% अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति प्रदान कर रही है, जो हमारे अनुसार एक असंवैधानिक कार्य है और किसी भी कानून द्वारा समर्थित नहीं है। केवल राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए कार्यकारी आदेश अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 और 2014 के प्रावधानों और भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत निहित अनिवार्यताओं से आगे नहीं बढ़ सकते हैं।“
कोर्ट ने आगे कहा, “अनुच्छेद 29 में अल्पसंख्यक समुदाय के शैक्षिक हितों की समान रूप से रक्षा करने का कर्तव्य है, न कि भेदभावपूर्ण तरीके से।”
अदालत ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार राज्य में अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को समान रूप से तथा राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पास मौजूद नवीनतम जनगणना आंकड़े के मुताबिक संबंधित स्कॉलरशिप का लाभ देने के लिए आवश्यक एवं उचित आदेश जारी करे। इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा है कि कोई भी फैसला हाईकोर्ट के ऑर्डर को पढ़ने के बाद ही लिया जाएगा।
हैरानी की बात यह है कि केरला में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाली सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने मांग की है कि ये अनुपात खत्म कर दिया जाना चाहिए और पूरी छात्रवृत्ति मुसलमानों को मिलनी चाहिए। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के बातचीत करते हुए IUML के राष्ट्रीय सचिव ई टी मोहम्मद बशीर ने कहा, ‘सरकार अदालत के सामने तथ्य पेश करने में विफल रही है।
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बता दें कि वकील जस्टिन पल्लीवतुक्कल ने कोर्ट में यह जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में सरकार के आठ मई 2015 के दिए गए आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच 80 : 20 का आरक्षण किया गया था यानी कि 80 प्रतिशत आरक्षण मुसलमानों को और 20 प्रतिशत आरक्षण लैटिन कैथोलिक ईसाइयों एवं धर्मांतरित ईसाइयों को देने की बात कही गई थी।