2021 विधानसभा चुनाव का नतीज़ा भाजपा समर्थित एनडीए के लिए मिश्रित रहा। उन्हें असम में पुनः सेवा का अवसर मिलने के साथ ही पुडुचेरी और तमिलनाडु में भी अपना भाग्य आजमाने का अवसर मिला, तो वहीं वे बंगाल में अनेक प्रयासों के बावजूद सरकार बनाने से चूक गए और उन्हे प्रमुख विपक्ष के पद से ही संतोष करना पड़ा। लेकिन कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जिसकी खुद की लंका लगी हुई है, परंतु भाजपा के बंगाल पराजय पर ऐसे खुश हो रही है मानो उसने बंगाल में सरकार बनाई हो।
इस समय कांग्रेस पार्टी का हाल बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना जैसा है। बंगाल में सूपड़ा साफ हो गया, तमिलनाडु में किसी तरह डीएमके के पीछे लगकर कुछ 16 सीटों पर विजयी रही, पुडुचेरी में 5 सीटें भी प्राप्त नहीं कर पाई, केरल में महज 21 सीटें ही जीत पाई, असम में भी कोई खास प्रदर्शन नहीं रहा, लेकिन राहुल गांधी के तेवर देखके तो ऐसा लगता है मानो दुनिया ही जीत ली हो।
वे ममता बनर्जी को नंदीग्राम में विजयी होने की बधाई दे रहे थे, हालांकि ये और बात है कि वहाँ ममता बनर्जी को अपने ही पूर्व समर्थक शुवेन्दु अधिकारी के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा, परंतु इससे ये सच्चाई तो नहीं छुप सकती कि कांग्रेस पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर अब हाशिये की ओर अग्रसर हो रही है।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि 4 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में चुनावों के पश्चात अब कांग्रेस पार्टी में फूट पड़ना तय है, और इसकी अगुवाई जी 23 समूह के नेता कर सकते हैं। लेकिन ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले वर्ष जब पार्टी में व्यापक बदलाव को लेकर अंदरूनी कलह हुई थी, तो जी 23 समूह के नेताओं ने प्रमुख तौर पर पार्टी नेतृत्व में बदलाव की मांग की थी, जिसमें राहुल गांधी के प्रति स्पष्ट तौर पर विरोध जताया गया था।
हालांकि राहुल गांधी ने इन विद्रोहियों को भाजपा का एजेंट ठहराने का प्रयास किया था, जिसका दुष्परिणाम आजकल साफ दिख रहा है। अब जी 23 समूह का विरोध पूरी तरह से गलत भी नहीं था, क्योंकि राहुल गांधी ने केरल और असम में जमकर मेहनत करने का दावा किया था, और यह भी कहा था कि उन्हे दक्षिण भारत की राजनीति उत्तर भारत से अधिक प्रिय लगती है।
हालांकि चुनावी परिणाम तो कुछ और ही तस्वीर दिखा रहा है। केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी को मिलाकर भी कांग्रेस 100 सीटें प्राप्त नहीं कर पाई है, जो एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए बेहद शर्मनाक प्रदर्शन है। असम में तो उन्होनें ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ मिलकर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का कार्ड खेला था, और CAA के विरोध के नाम पर राज्य को हिंसा की आग में झोंकने का प्रयास भी किया था।
हालांकि सब व्यर्थ गया और कांग्रेस से ज्यादा AIUDF को फायदा हुआ, जिसे कुल मिलाकर पिछली बार से 2 सीटें अधिक मिली।
इसके अलावा केरल में भी कांग्रेस के सारे पैंतरे फेल रहे, और कुल मिलाकर UDF गठबंधन 50 सीटें भी नहीं अर्जित कर पाया। ये तब था जब राहुल गांधी केरल के वायनाड़ से सांसद हैं, और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी को सत्ता से बेदखल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने का प्रयास किया था।
ऐसे में अब धीरे-धीरे राहुल गांधी के नेतृत्व पर से पार्टी के कई नेताओं का विश्वास उठता जा रहा है, और यदि आगे चलकर पार्टी में फूट पड़े तो किसी को कोई हैरानी नहीं चाहिए।