सुशासन के 15 साल, फिर भी नीति आयोग की लिस्ट में बिहार आखिरी पायदान पर है

नीतीश

(Pc-PTI)

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानसभा चुनावों के दौरान सुशासन और विकास का मुद्दा जोर-शोर से उठाते हैं। उन्होंने अपनी छवि को विकासवादी बना रखा है, लेकिन अगर बात बिहार में विकास की हो, तो वो बस कागज़ी ही है क्योंकि जमीनी स्तर पर बिहार की स्थिति आज भी लचर है। हाल में SDG के संबंध में आई नीति आयोग की वार्षिक रिपोर्ट में एक बार फिर बिहार सबसे निचले पायदान पर रहा है, जिसके बाद एक बार फिर नीतीश सरकार की आलोचना शुरू हो गई है। जंगल राज के नाम पर चुनाव जीतने वाले नीतीश के बिहार में एक ऐसा वर्ग भी है, जिसने नीतीश के अलावा कोई और राज नहीं देखा है, और वो आने वाले समय में नीतीश से नाराजगी के कारण एनडीए के लिए सत्ता के रास्ते बंद कर सकता है।

सभी को नीतीश कुमार का वो चर्चित बयान याद है कि समुद्र न होने से बिहार में विकास नहीं हो पा रहा है। इतना ही नहीं बिहार में इंडस्ट्री की कमी और रोजगार का टोटा लोगों के लिए मुसीबत का सबब है। ऐसे में नीति आयोग की SDG के संबंध में आई रिपोर्ट ने बिहार को फिर एक बार झटका दे दिया है। ख़बरों के मुताबिक केरल को SDG रिपोर्ट में पहला और बिहार को आखिरी स्थान मिला है, जिसके बाद आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव समेत पूरा विपक्ष नीतीश पर बरस पड़ा है।

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नीति आयोग की रिपोर्ट के आने के साथ ही आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा,“ लगातार पिछले तीन सालों में SDG की रिपोर्ट में बिहार निचले स्थान पर रहकर सारे पैमाने तोड़ रहा है। ये पिछले 16 वर्षों की नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की ही विफलता को दर्शाता है।” गौरतलब है कि बिहार को नीति आयोग के सूचकांक में केवल 52 अंक (सबसे कम) मिले हैं, जो कि नीतीश कुमार के लिए यक़ीनन एक शर्म का विषय है, क्योंकि उन्होंने पिछले 15 सालों से प्रदेश में सुशासन होने का दावा किया है।

ऐसा पहली बार नहीं हैं कि इस रिपोर्ट में बिहार सबसे नीचे रहा है, बल्कि पिछले तीन सालों की सभी रिपोर्ट्स में बिहार का स्थान नीचे ही रहा है, जो कि सच में एक शर्मनाक घटना को दर्शाता है। नीतीश कुमार के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो उन्होंने हमेशा ही लालू प्रसाद यादव के जंगल राज का जिक्र करके जनता का वोट लिया है। नीतीश बिहार में शराबबंदी और कुछेक उपलब्धियों के नाम पर खुश होकर जनता के बीच भावनात्मक मुद्दों के जरिए वोट लेते हैं लेकिन हकीकत ये है कि बिहार में आज भी स्थिति बदतर ही है।

राज्य में व्यापारिक संस्थाओं की संख्या न के बराबर है। आज भी लोगों को जीविका के लिए दूसरे राज्यों की ओर कूच करना पड़ता है। शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक के मुद्दे पर बिहार निचले दर्जे के राज्यों की सूची में सर्वश्रेष्ठ आता है। यही कारण है कि इन विधानसभा चुनावों में नीतीश का जादू नहीं चला। एनडीए की जीत केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के कारण ही हुई है। पिछले 15 सालों से नीतीश का शासन होने के बावजूद राज्य की स्थिति में कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला है।

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बिहार में आज की स्थिति में एक ऐसी पीढ़ी भी खड़ी हो गई है जिसने नीतीश का शासन ही देखा है। भले ही पहले जंगलराज था, लेकिन आज की स्थिति में बिहार जिस तेजी के साथ विकास पथ पर पिछड़ रहा है वो इस नई पीढ़ी को आक्रोशित कर रहा है। ऐसे में अगले विधानसभा चुनावों तक बिहार में एक ऐसा नया वोटर बेस तैयार होगा जो कि नीतीश के कथित सुशासन से ऊब चुका है‌ इसका सीधा नकारात्मक असर बीजेपी पर भी पड़ेगा।

ऐसे में बिहार की राजनीति में एनडीए का भविष्य नीतीश की अगुवाई में गड्ढे में जा रहा है, जिसके चलते य़दि बीजेपी को अपने लिए सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखनी है तो जल्द से जल्द नीतीश कुमार से छीन कर बिहार सरकार का स्टेयरिंग अपने साथ में लेना होगा।

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