2019 राहुल गाँधी के प्रधानमंत्री बनने का आखिरी मौका था
देश के सबसे अनुभवी एक्टिव राजनीतिक नेताओं में से एक शरद पवार दिल्ली में हो और राजनीतिक गलियारों में हलचल न हो ऐसा नहीं होता है। कल यानी मंगलवार को भी ऐसा ही कुछ हुआ, सुबह NCP की कार्यकारिणी समिति की बैठक के बाद शाम को शरद पवार ने विपक्ष की लगभग सभी पार्टियों के नेताओं के साथ बैठक की। हैरानी की बात यह थी कि इस मीटिंग में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस शामिल ही नहीं थी।
इसे भाजपा के विरोध में एकजुटता की कोशिश के रूप में भले ही दिखाया गया हो लेकिन माना जा रहा है पवार का निशाना कांग्रेस है। ऐसा लगता है कि विपक्ष की अन्य पार्टियाँ अब कांग्रेस के 50 वर्षीय युवा नेता राहुल गाँधी से उब चुकी है और उनकी असफलताओं को देखते हुए कांग्रेस को ही स्कीम से बाहर करने का फैसला कर लिया है। यानी देखा जाये तो वर्ष 2019 राहुल गाँधी के प्रधानमंत्री बनने का आखिरी मौका था। अब न तो कोई विपक्षी पार्टी उनके नेतृत्व में चुनाव में उतरना चाहती हैं और न ही उनकी पार्टी के साथ चुनाव लड़ना चाहती है।
दरअसल, तृणमूल कांग्रेस में शामिल यशवंत सिन्हा की पहल पर दिल्ली में शरद पवार के घर बैठक बुलाई गई। राष्ट्रमंच के इस बैठक में वर्तमान राजनीतिक आर्थिक वातावरण पर चर्चा हुई और सभी से सुझाव मांगे गए। हालाँकि राकांपा नेता माजिद मेनन का कहना है कि इस बैठक में किसी राजनीतिक विषय पर चर्चा नहीं हुई। कार्यकारिणी बैठक के बाद पवार ने खुद जानकारी दी थी कि, पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की भूमिका समेत अन्य राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की।
पवार की बैठक में समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे दल जुटे। शरद पवार की बेटी और सांसद सुप्रिया सुले, कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा, एनसीपी के राज्यसभा सांसद माजिद मेमन, CPI नेता बिनय विश्वम, CPM नेता निलोत्पल बासु, TMC नेता यशवंत सिन्हा, NCP से राज्यसभा सांसद वंदन चव्हाण मौजूद रहे। इनके अलावा पूर्व राजदूत केसी सिंह, समाजवादी पार्टी की ओर से घनश्याम तिवारी, पूर्व सांसद जयंत चौधरी और आप की तरफ से सुशील गुप्ता समेत बाकी नेता भी शामिल हुए।
इस मीटिंग में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी पहुंचे थे। यही नहीं अन्य गैर राजनीतिक लोगों में जस्टिस AP शाह, गीतकार जावेद अख्तर, कांग्रेस छोड़कर जा चुके पूर्व प्रवक्ता संजय झा आदि मौजूद रहे। हालाँकि माजिद मेनन ने बताया कि, कांग्रेस के नेताओं को आमंत्रण दिया गया था परन्तु कोई नहीं पंहुचा। इस मीटिंग से स्पष्ट है कि शरद पवार अब भी गैर पार्टियों में सबसे मजबूत और बुद्धिमान नेता हैं परन्तु कांग्रेस पार्टी किसी भी स्थिती में किसी गैर गाँधी के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ेगी।
राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाना उनका आखिरी लक्ष्य है। हालाँकि अन्य पार्टियों को कांग्रेस और राहुल गाँधी के कम होते प्रभाव के बारे में पता है इसलिए अब वे किसी भी स्थिती में प्रधानमंत्री मोदी के सामने राहुल गाँधी पर दांव नहीं खेलना चाहते हैं।
इस मीटिंग का शरद पवार के घर होना और कांग्रेस शामिल न होना, कई राजनीतिक संकेत देता है। कांग्रेस की साख अब देश के किसी भी राज्य में नहीं बची है। गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में कांग्रेस लगभग शुन्य हो चुकी है। इस वर्ष के विधान सभा में यह भी स्पष्ट हो गया कि पश्चिम बंगाल, असम और केरल से तो कांग्रेस का अस्तित्व ही समाप्त होने को है।
पंजाब, राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्य में थोड़ी साख बची भी है, तो वहां कांग्रेस के भीतर ही गुटबाजी हो रही है। वहीँ राहुल गाँधी की क्या छवि है वह किसी से छुपा नहीं है। उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ना अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारना है। जिस तरह से ममता बनर्जी ने बिना कांग्रेस के समर्थन से चुनाव जीता, अब वही फार्मूला शरद पवार लगा रहे हैं।
और पढ़े: विधानसभा चुनाव में 2 साल बाकी है, अभी से कर्नाटका कांग्रेस सिद्धारमैया और शिवकुमार गुटों में विभाजित हो गई है
बता दें कि दिल्ली यात्रा के दौरान शरद पवार ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से दस दिनों में दूसरी बार मुलाकात की है। चर्चा यह है कि, किशोर-पवार की मुलाकात अगले आम चुनावों के मद्देनजर और समान विचारधारा वाली पार्टियों को एकजुट करने के उद्देश्य का हिस्सा हो सकती है। यानी स्पष्ट है कि शरद पवार, ममता बनर्जी के लिए रणनीति बनाने वाले PK की भी मदद ले रहे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जिस तरह से ममता बनर्जी ने कांग्रेस को नजरंदाज किया, अब राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्षी पार्टियाँ कांग्रेस और राहुल गाँधी को किनारे करने का फैसला कर चुकी हैं।
जिस तरह से कल की मीटिंग संपन्न हुई उससे यही लगता है कि शरद पवार इस थर्ड फ्रंट का नेतृत्व कर सकते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि राहुल गाँधी का प्रधानमंत्री बनने का सपना अब सपना ही रह जायेगा। वर्ष 2019 का आम चुनाव उनके लिए आखिरी मौका था जहाँ उनके नेतृत्व में कांग्रेस स्थित UPA गठबंधन की करारी हार हुई थी।