प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने एक मजबूत विपक्षी चेहरा तलाशने की जुगत पिछले सात सालों से जारी है, जिस राज्य में बीजेपी की हार होती है, वहां जीतने वाले नेता को सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने खड़ा करके देखना शुरू कर दिया जाता है। हाल के दिनों में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पीएम मोदी के सामने कद्दावर चेहरा माना जाने लगा था। इसके इतर अब The Sunday Guardian की एक रिपोर्ट के मुताबिक विदेशों में रहने वाले आर्थिक रूप से मजबूत लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिंदबरम को सबसे मजबूत चेहरा बताया है। उनका कहना है कि 2024 लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा अर्थव्यवस्था होगा, ऐसे में चिंदबरम की भूमिका विपक्ष के लिए सबसे अहम साबित होगी।
दरअसल, The Sunday Guardian की एक रिपोर्ट के अनुसार विदेशों में रह रहे आर्थिक रूप से मजबूत लोगों ने पी चिंदबरम को पीएम मोदी के सामने खड़ा करने के लिए अपनी पहली पसंद माना है। इनमें न्यूयॉर्क, दुबई, लंदन, क्वालालंपुर, हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर के लोग शामिल हैं। इन लोगों को मुख्यत: 9 लोगों का एक समूह माना जा रहा है। इस ग्रुप का मानना है कि चिंदबरम 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के सबसे कद्दावर नेता साबित हो सकते हैं क्योंकि उनके पास एक अच्छा राजनीतिक अनुभव है, और वो तीन बार देश के वित्त मंत्री भी रह चुके हैं।
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9 लोगों के इस समूह का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत का विशेष महत्व होता है, जिसके चलते पी चिंदबरम एक गेम चेंजर साबित हो सकते हैं। इसके पीछे तर्क ये है कि दक्षिण भारत के राज्यों के साथ कांग्रेस आसानी से समन्वय स्थापित कर लेगी, और पिनाराई विजयन समेत स्टालिन जैसे नेता भी यहां चिदंबरम के लिए कोई खास चुनौती नहीं खड़ी कर पाएंगे। वहीं इसके इतर इन बुद्धिजीवियों का मानना है कि बीजेपी की भारत के हिंदी बेल्ट में पकड़ कमजोर होगी जिसका फायदा पी चिंदबरम के नेतृत्व में कांग्रेस को ही होगा।
इन बुद्धिजीवियों का एक तर्क ये भी है कि मोदी सरकार के 2014-2019 के कार्यकाल के दौरान बीजेपी की आर्थिक नीतियों का चिदंबरम ने तगड़ा विरोध किया था। ये समूह मानता है कि इसी कारण बीजेपी को 2018 में मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार का सामना करना पड़ा था। वहीं, कोरोनावायरस की वैश्विक महामारी के कारण हुए लॉकडाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा है। इसके अलावा अप्रत्याशित दूसरी लहर के कारण हुई जान माल की हानि से बीजेपी के खिलाफ लोगो में नकारात्मकता है, और इसे भुनाने में सबसे कारगर चेहरा तीन बार के वित्त मंत्री रहे पी चिंदबरम ही होंगे।
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कांग्रेस को लेकर इन बुद्धिजीवियों द्वारा कहा गया है कि कांग्रेस को यदि अपना स्वर्णिम काल दोबारा लाना है तो उसे खुद को गांधी परिवार से अलग करना होगा और गैर गांधी पीएम उम्मीदवार के तौर पर सबसे विश्वसनीय चेहरा पी चिंदबरम का ही होगा। वहीं कांग्रेस को सबसे दिलचस्प सलाह ये भी दी गई है कि राहुल गांधी को 2024 के लोकसभा चुनाव से दूरी बनानी चाहिए क्योंकि उनकी छवि का लाभ केवल और केवल बीजेपी को होगा। वहीं ये भी माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में चिदंबरम के चेहरे पर अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे क्षेत्रीय दलों के नेताओं क़ो भी ज्यादा परेशानी नहीं होगी।
वहीं इस समूह में सबसे दिलचस्प ऐलान इस बात को लेकर किया गया है, कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण देश की आर्थिक स्थिति होगी क्योंकि कोरोनावायरस के बाद डगमगाई आर्थिक स्थिति के कारण जनता के मन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति रोष होगा। यह आशंका भी जताई गई है कि 2023 आते-आते देश के स्टॉक मार्केट में बाजार के कुछ माफिया षड्यंत्रों के जरिए आर्थिक स्थिति को अप्रत्याशित मंदी की तरफ ले जा सकते हैं, जिसके चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने पी चिदंबरम का चेहरा पेश करके विपक्ष आर्थिक सुधारों की बात कर सकता है।
सटीक शब्दों में कहा जाए तो विदेशों में बैठे 9 बुद्धिजीवियों के एक समूह ने आर्थिक और सामाजिक आधार पर अनेकों अप्रमाणिक तर्क दिए हैं। उन तर्कों के आधार पर ही 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में विपक्ष की ओर से पी चिदंबरम को आगे बढ़ाने के प्लानिंग की गई है। इसके विपरीत वास्तविकता यह है कि पी चिदंबरम पर आई एन एक्स मीडिया मामले में भ्रष्टाचार के अनेकों आरोप है, जिसके चलते उन्हें 106 दिनों के लिए तिहाड़ जेल की हवा तक खानी पड़ी है। हिंदू आतंकवाद से लेकर कोरोना की वैक्सीन के मुद्दे पर उनके कुतर्क उनकी छवि को बट्टा लगा चुके हैं।
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पी चिदंबरम पर एक संगीन आरोप ये भी है कि वो सत्ता में रहते हुए अपने साथियों के हितों को अधिक बल देते थे। भले ही पी चिदंबरम तीन बार देश के वित्त मंत्री रहे हों लेकिन असलियत यह है कि उनके कार्यकाल के दौरान ही भारत ने 2008 में ऐतिहासिक मंदी झेली थी। 2004 से 14 के बीच महंगाई दर अभूतपूर्व आंकड़े पर पहुंची और अनेकों सुविधाएं आम जनता की पहुंच से दूर हो गईं।
इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करें तो 7 साल पूरे होने के बावजूद आधिकारिक तौर पर मोदी सरकार के किसी भी मंत्री पर भ्रष्टाचार का कोई केस नहीं दर्ज हुआ है। प्रधानमंत्री की पाक साफ छवि और जनहित की योजनाओं के कारण उनकी लोकप्रियता में कुछ खास अंतर नहीं आया है। कोरोनावायरस के कारण देश की आर्थिक स्थिति सुस्त हो गई है लेकिन इसके बावजूद प्रधानमंत्री की विश्वसनीयता जनता के बीच अडिग मानी जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने पी चिदंबरम को खड़ा भी करें तो उनका कद काफी बौना नजर आता है जिस पर हिंदू समुदाय के प्रति नफरत, भ्रष्टाचार जैसे संगीन आरोप लगे हैं। इतना ही नहीं तीन बार वित्त मंत्री रहने के बावजूद देश की आर्थिक स्थिति में कोई खास सुधार न होना और पी चिदंबर के वित्त मंत्री रहते हुए ममहंगाई का यूपीए-2 के कार्यकाल में नए आयाम स्थापित करना उन्हें कोई Plus पोइंट तो नहीं देने वाला।
इन सभी बिंदुओं के आधार पर ये कहा जा सकता है कि विदेशों में बैठकर कुछ लोग पीएम मोदी के सामने चिदंबरम को एक मजबूत चेहरा बताने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन इसका नतीजा ढाक के तीन पात ही होगा, क्योंकि चिदंबरम का इतिहास उनकी छवि पर अनेकों अमिट दाग लगा चुका है, जिनका छूटना असंभव ही है। इसके साथ ही पीएम मोदी की लोकप्रियता के आगे वो कहीं नहीं टिकते!