देश की राजनीति में कुछ ऐसे मे बड़े नाम रहे हैं जिन्हें ‘पीएम इन वेटिंग’ कहा जाता रहा है। इसमें एक नाम महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार का भी है। शरद पवार के मन में पीएम बनने की एक तीव्र इच्छा है। वो अपने राजनीतिक जीवन में कई बार पीएम की कुर्सी तक पहुंचने से चूक चुके हैं। राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस में हुई रिक्तता, 1999 में कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के पास जाने पर और 2019 में महागठबंधन बनाने में विफल होने पर… तीनों ही स्थितियों में शरद पवार की कोशिश कांग्रेस और विपक्ष का नेतृत्व अपने हाथ में रखने की थी, लेकिन हाथ केवल विफलता ही लगी, और शरद पवार एक बार फिर कुछ ऐसा ही कर रहे हैं जिसका भविष्य कुछ खास नहीं लग रहा है।
वर्तमान राजनीति की बात करें तो शरद पवार एनसीपी के नेतृत्व में कांग्रेस को नजरंदाज कर एक नया महागठबंधन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ हुईं दो बैठकों के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने विपक्षी दलों की एक बैठक बुलाई। दिलचस्प बात ये है कि इसके पीछे यशवंत सिन्हा को मुख्य किरदार बनाया गया। बैठक को लेकर कहा गया कि कांग्रेस को नजरंदाज करने जैसा कुछ है ही नहीं, लेकिन असल बात यही है कि पवार अपने लिए एक गठबंधन तैयार करने की कोशिश में हैं। खास बात ये है कि इस बैठक के बाद राजनीतिक दलों ने इसे एक ‘राष्ट्रीय मंच’ बताया है, जिसका मूल उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने शरद पवार को मजबूत चेहरे के तौर पर खड़ा करना है।
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साफ है कि शरद पवार प्रधानमंत्री बनने की अपनी ख्वाहिशों को पर देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि शरद पवार पहली बार पीएम की रेस में खुद को आगे कर रहे हैं, ऐसा पहले भी उन्होंने कई बार किया है। यही कारण है कि उन्हें कांग्रेस से बाहर का मुंह देखना पड़ा था। साल 1990 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में अर्जुन सिंह और शरद पवार शामिल थे, लेकिन जगह पीवी नरसिम्हा राव ने ले ली। इस मामले में कांग्रेस नेता एन के शर्मा ने बताया कि सोनिया गांधी पहले पी वि नरसिम्हा राव को अध्यक्ष पद देने को राजी नहीं थीं लेकिन उन्होंने ही सोनिया को राव के नाम पर सहमति दिलाई। इसका नतीजा ये कि शरद पवार का अध्यक्ष पद के साथ ही पीएम बनने का सपना पहली बार टूटा था।
कुछ इसी तरह साल 1999 में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के विदेशी मूल होने का सवाल उठाकर शरद पवार ने एक बड़ी बगावत की थी। पार्टी नेतृत्व उनके हाथ में होने को लेकर पवार ने खूब आपत्ति जाहिर की थी। विपक्षी दल बीजेपी तो इसका विरोध कर ही रहे थे, लेकिन बीजेपी नेता सुषमा स्वराज के साथ शरद पवार भी इस मुद्दे पर सोनिया के खिलाफ मोर्चा खोल चुके थे। इसका नतीजा ये है कि शरद पवार को कांग्रेस पार्टी से बाहर निकाल दिया गया। वरना ये माना जा रहा था कि पवार सोनिया की बजाय खुद कांग्रेस में महत्वपूर्ण नेता बन सकते थे, लेकिन पार्टी से बाहर निकलने के बाद उनका पीएम बनने का सपन टूट गया।
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वहीं. साल 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान जब कांग्रेस की स्थिति बेहद कमजोर थी, तो शरद पवार ने महागठबंधन के संबंध में अनेकों कोशिशें कीं। शरद पवार ये मानते थे कि 2014 में कांग्रेस की हार राहुल गांधी के नेतृत्व में हुई थी, इसलिए 2019 में कांग्रेस उन्हें मौका नहीं देगी। आरजेडी, टीएमसी, टीडीपी, सपा, बसपा, आप जैसी पार्टियों के साथ पवार ने अनेकों बैठकें कीं। पवार 2019 में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुद को विपक्षी दलों से पीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करवाना चाहते थे, लेकिन एक बार फिर उनके हाथ केवल निराशा ही लगी।
ऐसे में पवार की अनेकों कोशिशें रहीं कि कांग्रेस को नजरंदाज कर एक तीसरा मोर्चा बने जिसका नेतृत्व उनके हाथ में हो, लेकिन प्रत्येक बार उनकी प्लानिंग फिसड्डी ही साबित हुई। ‘पीएम इन वेटिंग’ शरद पवार पुनः पीएम बनने के सपने देखने लगे हैं। इसीलिए अब वो पार्टी में 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकारों की सलाह के दम पर महागठबंधन की तैयारी करने लगे हैं, लेकिन दिलचस्प बात ये भी है कि शरद पवार ने इस बैठक की सफलता की जितनी उम्मीद जताई थी, उन्हें उतनी सफलना नहीं मिल सकी है।