PAC अध्यक्ष पद पर भी ममता की राजनीती
पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र के मूल्यों को जड़ से समाप्त करने के बाद शोभा के लिए बची ‛शोपीस जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं’ को भी उठाकर बाहर फेंकने की तैयारी है। एक संवैधानिक संस्था है लोक लेखा समिति जो सरकार के खर्च पर निगरानी रखती है। पारंपरिक रूप से लोक लेखा समिति ‛PAC’ का अध्यक्ष हमेशा मुख्य विपक्षी दल का नेता ही बनता है, लेकिन ममता इसे भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है, जिस कारण राज्य में संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है।
पश्चिम बंगाल की नई विधानसभा में नए सिरे से समितियों का गठन हो रहा है। लोक लेखा समिति के लिए 20 विधायकों ने नामांकन किया और सभी को निर्विरोध चुन लिया गया। इसमें सबसे बड़ा नाम मुकुल रॉय का है। ममता बनर्जी उन्हें ही PAC का अध्यक्ष बनाना चाहती हैं, किन्तु मुकुल रॉय भाजपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं, ऐसे में उन्हें अध्यक्ष बनाया गया तो यह शायद पहली बार होगा कि सत्तादल ही PAC की अध्यक्षता भी संभाले।
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मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा प्रख्यात अर्थशास्त्री अशोक लाहिरी को PAC समिति का अध्यक्ष बनाना चाहती थी, लेकिन तृणमूल का कहना है कि किसी भी समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति विधानसभा स्पीकर करता है, वह जिसे चाहे उसे अध्यक्ष बना सकता है। तृणमूल का कहना है कि भाजपा स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। तृणमूल का रवैया बताता है कि वह किसी की भी परवाह किए बिना मुकुल रॉय को ही अध्यक्ष नियुक्त करेंगे, भले ही मुकुल रॉय पर दल बदल कानून के तहत कार्रवाई की तलवार लटक रही हो।
इससे संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है
बता दें कि शुवेन्दु अधिकारी ने पहले ही मुकुल रॉय के विरुद्ध दल बदल कानून के तहत कार्रवाई करने के लिए स्पीकर को आवेदन किया है। ऐसे में अगर सच में मुकुल रॉय की नियुक्ति होती है तो इससे संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है, क्योंकि आज तक किसी अन्य दल से आए हुए व्यक्ति को, जिसकी विधायकी छिनने का खतरा बना हुआ है, इतना महत्वपूर्ण पद नहीं दिया गया। संवैधानिक संकट पैदा हो या न हो, तृणमूल का कृत्य दिन प्रतिदिन लोकतांत्रिक मानकों पर और नीचे गिरता जा रहा है।
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तृणमूल कांग्रेस में सामान्य लोकतांत्रिक सदाचार भी नहीं है। कभी उनके सांसद राज्यपाल को खून चूसने वाला कीड़ा बोलते हैं तो कभी उन्हें जेल भेजने की धमकी देते हैं। राज्यपाल जगदीप धनखड़ द्वारा हिंसा के शिकार हिन्दुओं की सुध ली गई तो उन्हें तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने पागल कुत्ता बोल दिया, क्योंकि वह पीड़ितों का हाल जानने के लिए पश्चिम बंगाल का दौरा कर रहे थे।
वैसे जब तृणमूल सरकार अपने राज्य में रहने वाले लोगों पर उनके वैचारिक झुकाव के कारण होने वाले अत्याचार को बढ़ावा दे सकती है तो लोकतांत्रिक संस्थाओं का गला घोंटना तो मात्र एक औपचारिकता ही है। तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल को माफिया कार्टेल की तरह चला रही है और मजेदार यह है कि भारत की मीडिया माफिया, न्यायालय तथा अन्य संस्थाएं कुछ बोलने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं।