कर्नाटक सरकार ने बुधवार को राज्य में मस्जिदों के इमामों और मुअज्जिनों को हिंदू धार्मिक Endowment विभाग के फंड से कोविड लॉकडाउन राहत का भुगतान करने के अपने फैसले पर रोक लगा दी। यह फैसला दक्षिण कन्नड़ जिले में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) द्वारा विरोध करने के बाद आया है।
हाल ही में, बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली सरकार ने मुजराई (Hindu religious endowment department) विभाग के तहत मंदिरों के ‘सी’ श्रेणी में सेवारत पुजारियों के साथ-साथ इमामों और मुअज्जिनों को 3,000 रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी। हालाकि, विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर के पुजारियों को राहत पैकेज की घोषणा के कदम का स्वागत किया, लेकिन इमामों के पैकेज का विरोध किया।
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विश्व हिंदू परिषद ने पत्र लिखकर विरोध प्रदर्शन किया है। पत्र में लिखा है कि, “विश्व हिंदू परिषद ने कोविड लॉकडाउन से प्रभावित मंदिर के पुजारियों को मुआवजा देने के सरकार के फैसले का स्वागत किया है। हालांकि, विश्व हिंदू परिषद हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती के फंड से जिले की 41 मस्जिदों और मदरसों के इमामों को कोविड राहत देने के सरकार के फैसले का विरोध करती है। हिंदू मंदिरों से प्राप्त धन का उपयोग मंदिरों और हिंदू समुदाय के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए।”
द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, विश्व हिंदू परिषद के संभागीय सचिव शरण पंपवेल ने कहा, “यह अनुचित है कि सरकार हिंदू मंदिरों द्वारा मस्जिदों के इमामों को होने वाले राजस्व से राहत पैकेज दे रही है। अगर सरकार इमामों को भत्ता देना चाहती है, तो सरकार मस्जिदों और मदरसों को कर्नाटक वक्फ बोर्ड के तहत क्यों नहीं लाती और राहत पैकेज या भत्ते की घोषणा क्यों नहीं करती?”
शरण पंपवेल ने आगे कहा,”हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती विभाग के माध्यम से, सरकार 150 से अधिक मस्जिदों और उनके इमामों को राहत पैकेज प्रदान कर रही है।”
बुधवार शाम को मंत्री कोटा श्रीनिवास पुजारी ने एक बयान जारी कर कहा कि हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती विभाग द्वारा मस्जिदों को दिए जाने वाले पैकेज पर रोक लगा दी गई है। पुजारी ने कहा, “विभिन्न हिंदू संगठनों से अनुरोध प्राप्त होने के बाद, मैंने धार्मिक बंदोबस्ती विभाग के अधिकारीयों से अन्य धार्मिक संस्थानों को राहत पैकेज देने के फैसले पर रोक लगाने का निर्देश दिया है।”
आपको बता दें कि साल 1951 में उस समय के प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा लाये गये The Hindu Religious and Charitable Endowment Act, 1951 राज्य सरकारों तथा नेताओं को यह अधिकार देता है कि वह हजारों हिन्दू मंदिरों पर अधिकार कर सकते हैं तथा उनपर एवं उनकी सम्पत्ति पर पूरा नियंत्रण रख सकते हैं। कहा गया है कि वे मंदिरों की सम्पत्ति को बेच सकते हैं और उन पैसों का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं। आज यही कानून के तहत कर्नाटक सरकार मंदिरों में दिए गए दान को गैर हिंदू संस्थान में देने की जुर्रत कर रही है।
इस कानून के माध्यम से हिन्दू मंदिरों का शोषण दशकों से किया जा रहा है। हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से मंदिरों के 47,000 एकड़ भूमि का ब्योरा न मिलने पर जवाब मांगा है। देश के नेता गैर हिंदू वोट की राजनिति के खातिर मंदिरों के जमीन और धन को लुटाने में लगे हुए है। ऐसे में केंद्र सरकार को प्रस्ताव लाकर अथवा अध्यादेश लाकर The Hindu Religious and Charitable Endowment Act, 1951 को समाप्त कर देना चाहिए।