भारत में बैंकिंग प्रणाली बहुत पिछड़ी हुई हैं। जब तक मोदी सरकार जनधन योजना लेकर नहीं आई थी तब तक तो भारत में ग्रामीण पृष्टभूमि के अधिकांश लोग तो बैंकिंग प्रणाली से बाहर ही थे। सरकारी बैंकों के पिछड़ेपन के कारण सहकारी बैंकिंग प्रणाली का उदय हुआ जो स्थानीय लोगों के आपसी सहयोग से चलने वाला बैंकिंग सिस्टम बना, लेकिन अपने उद्भव के बाद से ही सहकारी बैंकिंग पर कुछ चुनिंदा लोगों का प्रभाव हो गया एवं बैंकिंग घोटालों की शुरुआत हुई जिसका उदाहरण पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले के रूप में सामने हैं।
इसी कारण अब केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि सहकारी बैंकिंग प्रणाली में बदलाव लाया जाए। Zee News की रिपोर्ट के मुताबिक “रिजर्व बैंक ने बड़ा फैसला लेते हुए सहकारी बैंकों में शीर्ष पदों के लिए कुछ पैमाने (Criteria) घोषित किए हैं। इन पैमानों के मुताबिक जो सबसे अहम है, वो ये है कि अब से सांसद, विधायक और नगर निगम के प्रतिनिधि, शहरी सहकारी बैंकों के एमडी या पूर्णकालिक निदेशक नहीं बन सकेंगे।”
साफ है की सरकार नहीं चाहती की भ्रष्ट नेताओं की काली छाया सहकारी बैंक पर पड़े। महाराष्ट्र में सहकारी बैंकिंग का अच्छा खासा विस्तार हो चुका है। भारत का एक तिहाई अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक महाराष्ट्र में है, जिनमें 2.93 लाख करोड़ का डिपाजिट है। NCP का इस बैंकिंग प्रणाली पर कब्जा है। अतः वह नहीं चाहती कि सरकार कोई भी सुधार लागू करे। यही कारण था कि शरद पवार ने स्वयं प्रधानमंत्री से इस बदलाव को रोकने के लिए कहा था, साथ ही NCP ने इसका जबरदस्त विरोध भी किया था।
आरबीआई ने यह भी नियम बनाया है कि व्यापारियों और किसी कंपनी में प्रभावी या उससे जुड़े हुए लोगों को भी महत्वपूर्ण पदों पर काबिज होने से रोका जाएगा। RBI का प्रयास है कि नेताओं, व्यापारियों और बैंकिंग सेक्टर की मिलीभगत से होने वाले घोटालों को रोका जा सके। सहकारी बैंक, चाहे वो एक राज्य के हों या बहुराज्य वाले हों, दोनों को इस नियम के दायरे में लाया गया है। RBI ने बैंकिंग सेक्टर में सीईओ और पूर्णकालिक निदेशक बनने के लिए योग्यताओं का निर्धारण किया है। RBI ने इन दोनों पदों के लिए उम्र की सीमा तय कर दी है। सीईओ की न्यूनतम आयु 35 साल से कम और अधिकतम आयु 70 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए। साथ ही कोई भी व्यक्ति बैंक के एमडी और पूर्णकालिक निदेशक के पद पर 15 साल से अधिक समय तक नहीं रह सकता।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ‛साथ ही अब इन बैंकों में एमडी और पूर्णकालिक निदेशक बनने के लिए व्यक्ति का स्नातक होना अनिवार्य कर दिया गया है या फिर उनके पास वित्तीय योग्यता जैसे सीए, कॉस्ट अकाउंटेंट, एमबीए या बैंकिंग या कॉ-ऑपरेटिव बिजनेस मैनेजमेंट में डिप्लोमा या डिग्री होना जरूरी है। साथ ही सहकारी बैंकों में शीर्ष पद, उन्हीं लोगों को दिए जाएंगे, जिनके पास बैंकिंग सेक्टर में मध्यम या वरिष्ठ स्तर पर प्रबंधन का कम से कम 8 साल का अनुभव हो।’
2019 में सहकारी बैंक में होने वाले घोटालें की बड़े पैमाने पर चर्चा तब शुरू हुई जब पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक का घोटाला सामने आया। इस बैंक के निदेशक ने बैंक के फंड को रियल एस्टेट की एक कंपनी को दे दिया था। बैंक ने HDIL को दिए कर्ज की जानकारी छुपाई और लगातार फण्ड डाइवर्ट होने के कारण बैंक घाटे में चला गया। इसके बाद 2020 में सरकार एक अध्यादेश लेकर आई जिसके बाद 1482 शहरी सहकारी बैंक और 58 मल्टी स्टेट सहकारी बैंक केंद्र की देखरेख में आ गए। RBI का फैसला जर्जर सहकारी बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करेगा।