बिहार की राजनीति में चुनाव के बाद लोकजनशक्ति पार्टी के अंदर बड़ा बवाल मचा हुआ है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ एक अभियान छेड़ा था, जिसका नीतीश कुमार को चुनाव नतीजों में काफी नुकसान भी देखने को मिला। अब चिराग के चाचा पशुपतिनाथ पारस चिराग के वर्चस्व की लड़ाई में उन्हें झटका दे रहे हैं। उन्होंने पार्टी के बड़े नेताओं के साथ सहमति बनाकर चिराग पासवान को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
संभवतः ऐसा नहीं है कि लोक जनशक्ति पार्टी की टूट की यह पटकथा अभी लिखी गई हो; बल्कि इसकी शुरुआत तो बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की कम सीटें आने के साथ ही हो गई थी, और अब बस उस पटकथा को अंजाम दिया जा रहा है।
रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद हुए विधानसभा चुनाव में लोकजनशक्ति पार्टी को भले ही कुछ खास न मिला हो, लेकिन एलजेपी ने नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को तगड़ा झटका दिया था। इससे नीतिश कुमार बहुत आहत थे और चिराग पासवान के खिलाफ उनके मन में खटास भी बढ़ गई थी। इसी बीच अब लोक जनशक्ति पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपतिनाथ पारस के बीच टकराव की स्थिति का फायदा कहीं न कहीं नीतीश कुमार ने उठा लिया है।
पापा की बनाई इस पार्टी और अपने परिवार को साथ रखने के लिए किए मैंने प्रयास किया लेकिन असफल रहा।पार्टी माँ के समान है और माँ के साथ धोखा नहीं करना चाहिए।लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। पार्टी में आस्था रखने वाले लोगों का मैं धन्यवाद देता हूँ। एक पुराना पत्र साझा करता हूँ। pic.twitter.com/pFwojQVzuo
— युवा बिहारी चिराग पासवान (@iChiragPaswan) June 15, 2021
वहीं, चिराग पासवान ने सोशल मीडिया पर पुराने पत्र साझा कर अपने अवसरवादी चाचा के सौतेले व्यवहार को जनता के सामने रखा है जो दिखाता है कि वो इस अवसर की तलाश में थे कब पार्टी पर कब्जा जमा सकें। इस बात से कहीं न कहीं नीतीश कुमार भी अवगत थे और वो सही अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। मौका मिलते ही नीतीश ने अपना दांव चला और चिराग पासवान को अपनी ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। पशुपतिनाथ पारस ने अपने 5 सांसदों के साथ मिलकर चिराग पासवान को पार्टी से बाहर कर दिया और लोक जनशक्ति पार्टी पर आधिकारिक कब्जा कर लिया है। चिराग का पूरा फोकस नीतीश कुमार पर रहा और जब तक चिराग इस दांव को समझ सकते तब तक बहुत देर हो चुकी थी। हालांकि, चिराग पासवान ने एलजेपी का प्रेस नोट जारी करते हुए पशुपतिनाथ पारस समेत पार्टी के सभी सांसदों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है।
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स्पष्ट है कि इस लड़ाई में जीत नीतीश कुमार की हुई है परंतु अब चिराग और उनके चाच के समर्थक मुख्य नेताओं के घरों के आसपास जमकर नारेबाजी कर रहे हैं और अपने गुट के नेता को सर्वोच्च बता रहे हैं।
गौर हो कि विधानसभा चुनाव के दौरान एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार में घूम-घूम कर नीतीश कुमार की नीतियों की आलोचना करते हुए उनकी पार्टी को हराने के लिए अभियान चलाया था। एनडीए गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद चिराग का ये व्यवहार नीतीश को पसंद नहीं आया था। इस दौरान उन्होंने बीजेपी से इस मामले की शिकायतें भी की थी। हालांकि, उस पर किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। विधानसभा चुनाव के नतीजों में सामने आया कि जिन सीटों पर लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार खड़े हुए वहां जेडीयू को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। यही कारण है कि जेडीयू की सीटें बीजेपी के मुकाबले कम रह गईं।
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नीतीश कुमार उस वक्त से ही चिराग पासवान को कमजोर करने और विधानसभा चुनाव में मिले झटके का बदला लेने के लिए तैयार थे। ऐसे में इस पूरे खेल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि पशुपतिनाथ हमेशा से नीतीश कुमार के समर्थक रहे हैं। ऐसे में कोई शक नहीं है कि पशुपतिनाथ के जरिए नीतीश कुमार चिराग पासवान से विधानसभा चुनाव का बदला ले रहे हैं।
संभवत, पशुपतिनाथ पारस के जरिए नीतीश कुमार विधानसभा में कमजोर हुई अपनी पार्टी का बदला चिराग पासवान से उनका राजनीतिक वर्चस्व छीनकर ले रहे हैं, जोकि यकीनन भारतीय राजनीति में अब तक का सबसे बड़ा बदला होगा।