पश्चिम बंगाल की राजनीति में विधानसभा चुनाव के बाद राजनीतिक हिंसा से लेकर संगठनात्मक चुनौतियां बीजेपी के लिए मुसीबतों का सबब बन गईं हैं। पार्टी में चुनाव से पहले बीजेपी में आए TMC के बागी नेता भी घर वापसी की तैयारी कर रहे हैं। इसी बीच TMC से बीजेपी में आकर अचानक पार्टी में बड़ा कद पाने वाले मुकुल रॉय ने भी अब चार सालों के बाद पार्टी छोड़ दी है। रॉय चार सालों के निर्वासन के बाद पुनः TMC में चले गए हैं। इसे राजनीतिक विश्लेषक बीजेपी के लिए खतरा मान रहे हैं, लेकिन सुवेंदु अधिकारी के पार्टी में शामिल होने के बाद मुकुल रॉय का जाना बीजेपी की प्लानिंग का हिस्सा भी माना जा रहा है।
मुकुल रॉय हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के बाद से ही पार्टी में काफी असहज महसूस कर रहे थे, जिसके बाद ये कयास लगाए जाने लगे थे कि मुकुल रॉय दोबारा TMC में जा सकते हैं। कयासों के बीच अचानक ही ममता से बंद कमरें में गुपचुप बैठक के बाद मुकुल रॉय ने TMC में घर वापसी कर ली। इसे बीजेपी के लिए बंगाल में चुनावी हार के बाद संगठनात्मक रूप से यक़ीनन एक झटका माना जा रहा है, लेकिन बीजेपी ने उनके जाने पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है। इस पूरे खेल में बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी की बड़ी भूमिका है।
दरअसल, मुकुल रॉय सुवेंदु से तीन साल पहले बीजेपी में आए थे, उस दौरान बीजेपी का बंगाल में न तो मजबूत जनाधार था, और न ही कार्यकर्ता। ऐसे में मुकुल रॉय के जरिए बीजेपी ने अपना संगठन मजबूत किया और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इसका असर दिखा। वहीं, विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी मे आए सुवेंदु अधिकारी ने पार्टी को नए आयामों तक पहुंचा दिया। भले पार्टी की सरकार न बना सकी हो, लेकिन सुवेंदु ने नंदीग्राम सीट से ममता को हराकर पार्टी में न सिर्फ अपनी पकड़ मजबूत की; बल्कि पार्टी के लिए भविष्य की उम्मीदों को अधिक मजबूत कर दिया। इसके इतर एक दिलचस्प बात ये है कि मुकुल रॉय और सुवेंदु के बीच TMC में रहते हुए भी 36 का आंकड़ा था।
मुकुल रॉय को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव में यदि बीजेपी जीतेगी तो उन्हें सीएम पद मिलेगा, और नहीं जीतेगी…तो विधानसभा में विपक्ष का नेता उन्हें ही बनाया जाएगा। दिलचस्प बात ये है कि अपने लंबे राजनीतिक करियर में आज तक मुकुल रॉय ने कोई लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं जीता था; लेकिन इस विधानसभा चुनाव में ये भी संभव हो गया। मुकुल रॉय की बीजेपी के हारने के बाद नेता विपक्ष बनने की मंशा अधूरी रह गई क्योंकि पार्टी ने सुवेंदु अधिकारी को विधानसभा में अपना सर्वोच्च नेता घोषित कर दिया, जो कि मुकुल रॉय के लिए किसी झटके की तरह ही था।
मुकुल रॉय की सोच थी कि वो पार्टी में पहले आए हैं तो सुवेंदु से पहले वो नेता विपक्ष के पद के अधिकारी हैं। वहीं बीजेपी ने उन्हें दरकिनार कर सुवेंदु को ममता को पटखनी देने का ईनाम दिया। मुकुल रॉय विधानसभा में सुवेंदु के पीछे नहीं बैठना चाहते थे। ऐसा नहीं है कि मुकुल रॉय का व्यवहार अचानक ही बदल गया है, बल्कि सुवेंदु के बीजेपी में आने के बाद से ही मुकुल रॉय चर्चा से गायब होने लगे थे। पार्टी के किसी भी मुद्दे के केंद्र में सुवेंदु ही होते थे। पार्टी में खुद को साइड लाइन देख मुकुल रॉय को अपने और अपने बेटे के राजनीतिक भविष्य की चिन्ता सताने लगी और वो TMC में घर वापसी कर गए।
मुकुल रॉय का जाना बीजेपी के लिए झटका माना जा रहा है, जो यकीनन है भी, लेकिन इसे बीजेपी की प्लानिंग भी समझा जा सकता है। बीजेपी ने शून्य में खड़े होकर मुकुल रॉय जैसे नेताओं के जरिए संगठन को मजबूत किया, और जब TMC से बागियों की फौज निकली, तो पार्टी को सुवेंदु अधिकारी जैसा एक लोकप्रिय नेता मिल गया। सुवेंदु के आने के बाद से ही पार्टी में कुछ नेताओं ने बगावत की कोशिश की, तो मुकुल रॉय जैसे नेता साइड लाइन हो गए। सुवेंदु की लोकप्रियता के आगे मुकुल रॉय का कद छोटा पड़ गया। बीजेपी को राज्य के लिए जिस बेहतरीन नेता की तलाश थी, वो अब सुवेंदु के मिलने के साथ ही खत्म हो गई। ऐसे में पार्टी सुवेंदु को साइड लाइन करने की कीमत पर मुकुल रॉय को खुश करने के मूड में नहीं थी।
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इसके अलावा मुकुल रॉय पर बंगाल में शारदा-नारदा जैसे बड़े घोटालों के दाग भी हैं। जब भी ममता के किसी नेता पर कार्रवाई होती है तो ये मुद्दा उठता है कि मुकुल रॉय पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? मुकुल रॉय की सोच थी कि बीजेपी में जाने पर केंद्र सरकार के दबाव में सीबीआई उनके ऊपर चल रहे भ्रष्टाचार के केसों से उन्हें बरी कर देगी, लेकिन ये भी नहीं हुआ और मुकुल रॉय बीजेपी में विधायक के के साथ ही राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रबर स्टैंप बनकर रह गए थे। इसीलिए उन्होंने अपने स्वार्थ की पूर्ति न होते देख TMC से हाथ मिला लिया है।
इस पूरे प्रकरण में बीजेपी को नुक़सान हुआ है, परंतु सुवेंदु बनाम मुकुल रॉय की लड़ाई में पर्दे के पीछे से पार्टी सुवेंदु के साथ ही खड़ी थी, क्योंकि पार्टी को उनमें अपना राजनीतिक भविष्य दिख रहा है। हालांकि, मुकुल रॉय के दम पर बीजेपी संगठनात्मक तौर पर शून्य से 38 प्रतिशत वोट तक पहुंच सकी थी। परंतु जब बात सुवेंदु और मुकुल रॉय को चुनने की आई तो पार्टी ने सुवेंदु को ही चुना और ये भी संकेत दे दिया कि पार्टी सुवेंदु के खिलाफ बगावत बर्दाश्त नहीं करेगी।