पंजाब की राजनीति में अनुसूचित जाति की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है। इनका एक मुश्त वोट पंजाब में किसी भी पार्टी की राजनीतिक नैय्या पार लगा सकता है। इन सबके बावजूद अनुसूचित जाति को पंजाब की राजनीतिक पार्टियों ने कभी महत्व नहीं दिया, लेकिन इस बार बदलाव नजर आ रहा है। अनुसूचित जाति के वोटों को साधने के लिए अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है, तो वहीं इस मुद्दे पर कांग्रेस की अनुसूचित जाति विरोधी नीति सामने आ गई है। पंजाब का एलीट और अपर क्लास अनुसूचित जाति की भागीदारी से किस हद तक नफरत करता है वो कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के बयान से झलकता है। उनका आरोप है कि अकालियों ने पवित्र सीटें भी मायावती की पार्टी को दे दी हैं। उनका ये बयान अनुसूचित जाति के प्रति हीन भावना को दर्शाता है।
अनुसूचित जाति को एक मजबूत वोट बैंक के तौर पर देखते हुए शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी ने पंजाब के 2022 विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन कर लिया है। इसको लेकर कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने कहा, “शिरोमणि अकाली दल ने बसपा के साथ हुए सीटों के समझौते में पवित्र सीटें श्री आनंदपुर साहिब और श्री चमकौर साहिब के इलाके की सीटें बहुजन समाज पार्टी को दे दी हैं।” अब उनका ये बयान उनके लिए ही मुसीबत बन गया है क्योंकि इसे अनुसूचित जाति विरोधी बयान माना जा रहा है।
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कांग्रेस के पंजाब के इतिहास को भी देखें तो कहा जा सकता है कि पार्टी मुख्य तौर पर अपर क्लास और कास्ट को ही महत्व देती है। यही कारण है कि कांग्रेस सांसद के इस बयान को अनुसूचित जाति विरोधी और हीन भावना से भरा देखा जा रहा है। गलत बयान देकर फंसे बिट्टू ने डैमेज कंट्रोल करते हुए कहा, “अकाली दल के नेता इन सीटों पर लड़ते तो उन्हें यहां पर लोगों की मुखालफत का सामना करना पड़ता। यही वजह है कि शिरोमणि अकाली दल ने यह सीटें जानबूझकर बसपा को दी हैं। बसपा के मुकाबले दलित समुदाय के सबसे ज्यादा वोट कांग्रेस को मिलते हैं।”
रवनीत सिंह बिट्टू का कहना है कि उनके बयान को गलत समझा गया, क्योंकि वो तो बस शिरोमणि अकाली दल को भगोड़ा साबित करना चाहते हैं। बिट्टू भले ही अब डैमेज कंट्रोल के लिए नए-नए बहाने बना रहे हो, परंतु असलियत यही है कि उनके इस बयान से पार्टी की अनुसूचित जाति विरोधी छवि सामने आ गई है। विधानसभा चुनाव से पहले दिया गया बयान कांग्रेस को भारी पड़ सकता है, क्योंकि ये बयान कांग्रेस के वास्तविक चेहरे को प्रतिबिंबित कर रहा है परंतु इससे नुकसान कांग्रेस का ही है। दूसरी ओर बसपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बिट्टू के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी है।
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गौरतलब है कि पंजाब की राजनीति में साल 2022 का विधानसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण होने वाल है। 32 फीसदी अनुसूचित जाति के वोटबैंक को एकमुश्त करने के लिए बीजेपी ने काफी पहले ही ऐलान कर रखा है कि यदि पार्टी जीती तो मुख्यमंत्री कोई अनुसूचित जाति ही होगा। यही कारण है कि अब सभी ने दलितों को महत्व देना शुरू कर दिया है। अपर क्लास एलीट की समर्थक पार्टी माने जाने वाले अकाली दल ने अनुसूचित जाति के वोटों को आकर्षित करने के लिए बसपा का दामन थामा है, तो दूसरी ओर कांग्रेस चुनाव से पहले मंत्रिमण्डल और पार्टी संगठन में दलित चेहरों को महत्व देने का दिखावा कर सकती है।
पंजाब में अनुसूचित जाति का वोट मुख्यता कांग्रेस के साथ ही रहता था इसके चलते कांग्रेस अनुसूचित जाति का वोट बैंक को ज्यादा महत्व नहीं देती थी, लेकिन बीजेपी के दलित मुख्यमंत्री बनाने के ऐलान और अकाली दल-बसपा गठबंधन के बाद कांग्रेस के लिए अनुसूचित जाति का वोट बैंक काफी महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में दलितों को लेकर कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू का बयान पार्टी के लिए मुसीबत भरा हो सकता है क्योंकि इससे पार्टी की अनुसूचित जाति विरोधी मंशा सामने आ गई है।