सऊदी अरब ने भी योग को गले लगा लिया, पर भारत का विपक्ष हिंदुओं का अपमान करने का एक मौका नहीं छोड़ रहा

सऊदी अरब योग permission

PC: humlog.co.in

दुनिया की भी अजब गजब रीत है। एक तरफ सऊदी अरब जैसे देश, जो पूर्णतया इस्लामिक हैं, अब गैर इस्लामिक मुल्कों को न सिर्फ खुलकर अपना रहे हैं, बल्कि यूएई की भांति उनकी संस्कृति को भी खुलकर गले लगा रहे हैं। ‘योग’ करना गैर इस्लामिक हुआ करता था, परंतु जब सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने योग को खेल के रूप में मान्यता दी तब से सऊदी अरब में योग काफी लोकप्रिय हो गया है।वहीं, दूसरी तरफ अपने ही देश के कुछ लोग अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर अपने ही देश की संस्कृति को जानबूझकर अपमानित करने में कोई अतिशयोक्ति नहीं समझते।

हाल ही में सऊदी अरब प्रशासन ने योग जैसे कई सुधारों को सहमति देने पर रजामंदी ज़ाहिर की है। इनमें कुछ प्रमुख प्रस्ताव है स्कूली पाठ्यक्रम में फेरबदल, जिससे गैर मुसलमानों को पहले की भांति नकारात्मक छवि में पेश नहीं किया जाएगा। यही नहीं, उनके लिए ‘शैतान’, ‘राक्षस’ जैसे शब्द भी उपयोग में नहीं लाए जाएंगे। इसके अलावा धर्म और राजनीति को पहले की भांति प्रशासन अत्यधिक तवज्जो नहीं देगा।

इसका अर्थ आप स्पष्ट समझ सकते हैं – सऊदी अरब गैर इस्लामिक संस्कृति को खुले दिल से अपनाने को तैयार है। 2018 में ही सऊदी अरब ने अपने देश में योग को स्वीकृति दे दी थी। परंतु अपने देश में कुछ ऐसे भी नीच हैं, जिन्हें इससे भी जलन होती है।

उदाहरण के लिए अभिषेक मनु सिंघवी को ही देख लीजिए। खुद का आचरण चाहे जैसा हो, लेकिन वे चाहते हैं कि हिन्दू हमेशा सेक्युलर ही रहे। जनाब के अनुसार, “ॐ के उच्चारण से न तो योग ज्यादा शक्तिशाली हो जाएगा और न अल्लाह कहने से योग की शक्ति कम हो जाएगी”। ऐसे ही एक कांग्रेसी प्रवक्ता प्रमोद कृष्णन फरमाते हैं, “सारे ड्रामेबाज़ ट्रैक सूट पहनकर योग करते हुए फोटो डालेंगे, सारे भोगी आज योगी बन जाएंगे, अजीब नौटंकी है यार”।

इन्हीं दोहरे मापदंडों पर तंज कसते हुए त्रिपुरा भाजपा के कद्दावर नेता सुनील देवधर ने कहा, “एक अभिषेक हैं जो ॐ को हीन मानता है, जिस ॐ के बिना कोई अभिषेक पूरा नहीं होता , हर मंत्र अधूरा है और दूसरा फर्जी आचार्य है जिसे ये भी नहीं पता कि पूजा, भक्ति या योग का पहनावे से कोई संबंध नहीं होता। इटालियन परिवार पार्टी से और क्या पैदाईश होगी?”

ऐसे में ये स्पष्ट है कि अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के लिए कुछ लोग किसी भी हद तक गिर सकते हैं। कुछ तो फिर भी पी विजयन की भांति सेक्युलरिज्म का जाप करते हुए चुप हो जाएंगे, परंतु कुछ लोग अभिषेक मनु सिंघवी और प्रमोद कृष्णन की तरह किस हद तक जा सकते हैं, ये भगवान भी नहीं जानता।

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