उत्तर प्रदेश में चौथे स्थान के लिए RLD और आम आदमी पार्टी से कड़ा मुकाबला कर रही कांग्रेस को चुनावों से पहले बड़ा झटका लगा है। उत्तर प्रदेश में पार्टी के जनाधार वाले कुछ नेताओं में एक जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो गए हैं। जितिन प्रसाद उन 23 कांग्रेसी नेताओं में शामिल थे जिन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को कांग्रेस में सुधार को लेकर एक चिट्ठी लिखी थी।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद, खुली बगावत करने वाले नेताओं की सूची में जितिन प्रसाद दूसरे बड़े नेता हैं, जिनका उत्तर भारत के राज्य में जनाधार है।
आज से दो दशक पहले जब सोनिया ने खुद को पार्टी में स्थापित करना शुरू किया था, उस समय पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र की बहाली के लिए भी बगावत हुई थी। जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद और सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट ने सोनिया गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उसी समय शरद पवार, पी एक संगमा, तारिक अनवर और ममता बनर्जी जैसे बड़े नेता भी कांग्रेस से अलग हुए थे। लेकिन सबसे कड़ी प्रतिस्पर्धा राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया और जितेंद्र प्रसाद ने दी थी। बाद में तीनों लोगों की बारी बारी से दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।
सबसे पहला विरोध माधवराव के समय हुआ जब उन्होंने टिकट न मिलने पर अलग पार्टी बना ली और 1996 में कांग्रेस से अलग हो गए। इसके बाद 1997 में एंटोनियो माइनो उर्फ सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता ली और 1998 में वह पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में उतर गईं। सोनिया गांधी के खिलाफ विरोध अलग अलग मुद्दों पर शुरू हुआ। एक ओर शरद पवार के नेतृत्व वाले दल ने यह कहा कि सोनिया विदेशी मूल की हैं, इसलिए वह कांग्रेस का नेतृत्व नहीं कर सकतीं और न ही भारत की प्रधानमंत्री बन सकती हैं। जब शरद पवार और उनके सहयोगी तारिक अनवर और पी ए संगमा को पार्टी से बाहर किया गया उसके बाद बगावत का नेतृत्व पायलट और प्रसाद के पास आया।
साल 2000 में राजेश पायलट ने जितेंद्र प्रसाद के साथ मिलकर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर एक विशाल जनसभा की। यह बात तय हो चुकी थी कि पायलट सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। दुर्भाग्य से 20 दिन बाद एक कार दुर्घटना में पायलट की मृत्यु हो गई।
इसके बाद बगावत का झंडा जितेंद्र प्रसाद के पास आया और उन्होंने सन् 2000 में अध्यक्ष पद के चुनाव में सोनिया का विरोध करने की ठानी। वह सोनिया के मुकाबले अध्यक्ष पद के लिए खड़े हुए। नवंबर 2000 में चुनाव हुए, लेकिन उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। चुनाव में पड़े 7,542 वोटों में से उन्हें महज 94 वोट मिले। इसके बाद उन्होंने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया लेकिन बात आगे बढ़ती उससे पहले जनवरी में उन्हें अचानक ब्रेन हैमरेज की बीमारी हो गई। वह कुछ दिन कोमा में रहे और फिर उनकी भी मृत्यु हो गई।
जितेंद्र प्रसाद की मृत्यु सोनिया के लिए पार्टी पर कब्जा करने का सुनहरा मौका बनकर आई। जितेंद्र प्रसाद सबसे अधिक लोकसभा सीट वाले राज्य उत्तर प्रदेश से आते थे। उनके पिता भी कांग्रेस के बड़े नेता रहे थे। साथ ही सोनिया को मिली कड़ी चुनावी प्रतिस्पर्धा से यह भी साफ हो गया तब प्रसाद का पार्टी में अच्छा जनाधार था, ऐसे में जितेंद्र प्रसाद सोनिया के विरुद्ध एक अलग ध्रुव बन सकते थे, किन्तु उनकी भी मृत्यु हो गई। जितेंद्र प्रसाद की मृत्यु के कुछ समय बाद एक और बड़े नेता की मृत्यु हुई। वह थे माधवराव सिंधिया, जिनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाल ही में जितिन प्रसाद की तरह ही कांग्रेस में हो रही अनदेखी से तंग आकर भाजपा जॉइन कर ली है। माधवराव एक प्लेन क्रैश में मरे थे।
सिंधिया, प्रसाद, पायलट की मृत्य और पावर और उनके साथियों का पार्टी से निष्कासन होने के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी पर एकछत्र राज किया। उनका और उनके परिवार का यही रवैया, अब उनके लिए मुसीबत बन गया है। पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र न होने के कारण अब दोबारा कांग्रेस के नेता पार्टी से बाहर जा रहे हैं। जितिन प्रसाद भी अपने पिता की तरह खुली बगावत करके अलग हो गए हैं।