जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर यतींद्र नाथ गिरी ने मदरसों या धर्म परिवर्तन के बारे में कुछ गलत नहीं कहा

Twitter पर ट्रेंड हुआ #ArresrYatindranathgiri

यतींद्र नाथ गिरी

यतींद्र नाथ गिरी ने ऐसा क्या कहा की लिबरल जल उठे?

जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर पूजनीय यतींद्र नाथ गिरी को गिरफ्तार करने के लिए मुस्लिम पक्ष के लोगों के साथ ही कई हिंदुओं ने भी ट्वीटर पर ट्रेंड चलाया है क्योंकि उन्होंने मांग की है कि मदरसों को समाप्त कर देना चाहिए। उन्होंने कहा है कि देश की राजनीतिक स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर सांसद नए संसद भवन में प्रवेश करेंगे तो उन्हें नए संविधान के साथ प्रवेश करना चाहिए।

यतींद्र नाथ गिरी ने मांग की है कि नया संविधान सनातन हिन्दू संस्कृति पर आधारित हो। उनकी मांग को सुनकर बौखलाए कट्टरपंथी मुस्लिमों और हिंदू समाज के लोगों से उनकी बात पर विचार करने की अपेक्षा नहीं कि जा सकती लेकिन वास्तव में उनकी बात का विश्लेषण करना आवश्यक है।

सबसे पहली बात है कि जिस देश में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारत के टुकड़े होने की बात कही जाती हो एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की दीवारों पर खिलाफत 2.0 लिखकर खुलेआम मुस्लिम शासन का आह्वान किया जाता हो, वहाँ एक हिन्दू सन्त को भी अपनी बात रखने की स्वतंत्रता है।

वैसे भी हिन्दू इस देश के असली निवासी हैं और ईसाइयत और इस्लाम के उदय से भी पहले से इस देश की भूमि पर अपने यज्ञ का अनुष्ठान करते आ रहे हैं।

मदरसों के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य

मदरसों का मूल इस्लामिक मान्यता में महत्वपूर्ण स्थान है। इस्लामिक मान्यताओं में राज्य का इतना ही महत्व है कि वह इस्लाम के प्रचार और संरक्षण का मात्र का एक साधन है। सुल्तान से अपेक्षा रखी जाती है कि वह मदरसों को मदद दे, बदले में मदरसे मूल इस्लामिक शिक्षा में तैयार बच्चों की फौज मुस्लिम राज्य को सौपेंगे।

ये बच्चे मूल इस्लामिक शिक्षा में पलने के कारण अन्य संस्कृतियों और धर्म को इस्लाम से कम मानते हैं, इसलिए समय पड़ने पर गैर मुस्लिमों से युद्ध करने को तत्पर रहेंगे।

यह सिद्धांत मध्यकालीन मुस्लिम शासन का आधार था। आज भले मदरसों में आधुनिक शिक्षा दी जाती है लेकिन फिर भी इस्लाम की मूल शिक्षाओं का बोलबाला है। ऐसा हम नहीं केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था।

उनका कहना है कि आज भी मदरसों में मुस्लिम शिक्षा यही सिखाती है कि इस्लाम सर्वश्रेष्ठ है और बाकी धर्म पाखंड हैं, जिन्हें खत्म करना अल्लाह का आदेश है।

मध्यकाल में हिन्दुओं पर विभिन्न प्रकार के टैक्स लगाकर मुस्लिम शासक मदरसों को आर्थिक मदद देते थे। अर्थात मध्यकाल में एक ऐसी व्यवस्था थी जहाँ हिंदुओं के पैसे पर हिंदुओं के अंत की बात करने वाले मदरसे पलते थे। आज भी सरकार हिन्दू मंदिरों पर टैक्स लगाती है, आम आम आदमी, जो स्वयं को लोकतंत्र का सिपाही मानता है, वह टैक्स भरता है।उसी टैक्स से मदरसों की फंडिंग होती है, जो आरिफ मुहम्मद खान के अनुसार, आज भी मूल इस्लामिक शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं।

मूल इस्लामिक मान्यता गैर मुस्लिमों के दमन में विश्वास रखती है, लोकतंत्र और समानता को नहीं मानती। ऐसे में कहा जा सकता है कि, आज भी करदाताओं के पैसे पर ऐसे मदरसे चल रहे हैं, जहां हिन्दुओं के प्रति ज़हर उगला जाता है। अतः मदरसों को बंद किया जाए, यह एक ऐसा सुझाव है जिसपर गंभीरता से विचार होना चाहिए।

स्वामी यतींद्र नाथ गिरी की मांग पूर्णतः जायज है

साथ ही यतींद्र नाथ गिरी ने कहा है कि धर्म, जाति और मौलिक अधिकारों को लेकर समानता का व्यवहार हो, जो वर्तमान संविधान के तहत संभव नहीं है। रही बात हिन्दू मान्यताओं के अनुरूप संविधान गढ़ने की तो भारत के संविधान में भारत की परंपराओं की छाया हो, इसमें बुराई क्या है। इसपर चर्चा करके कोई अच्छा विकल्प या सुधार लागू होना चाहिए।

स्वामी यतींद्र नाथ गिरी ने मांग की है कि, सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून लेकर आये।
साथ ही जबरन इस्लाम स्वीकार करवाने को लेकर उन्होंने जो चिंता व्यक्त की है एवं नए कानून की वकालत की है, उसके संदर्भ में कुछ सफाई देने की आवश्यकता ही नहीं है। जम्मू, उत्तर प्रदेश, हर जगह से रोज इससे जुड़ी खबरें आती हैं।

वैसे भी जिस प्रकार भारत में आबादी बढ़ रही है उससे कई राज्यों में जनसंख्या विन्यास भी बदल रहा है। मुसलमानों की संख्या बढ़ रही है और उन क्षेत्रों में रहने वाले गैर मुस्लिमों का जीना दूभर हो रहा है। अतः इस मांग को तो सरकार को तत्काल स्वीकार करना चाहिए।

स्वामी यतींद्र नाथ गिरी जी की बातों में गलती खोजने वाले लोग स्वतंत्र विमर्श के विरोधी हैं। वे वर्तमान व्यवस्था में कैसा भी बदलाव नहीं चाहते, जबकि यह जगजाहिर है कि वर्तमान व्यवस्था अपने मूल स्वभाव में हिन्दू विरोधी है।

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