आमतौर पर धार्मिक स्थलों के स्वामित्व को लेकर पक्षपात देखने को मिलता है। जहां एक ओर गिरजाघरों और मस्जिदों को कोई हाथ भी नहीं लगाता, तो वहीं मंदिरों पर कब्ज़ा करने को सभी लालायित रहते हैं। परंतु एक अहम निर्णय में मद्रास हाईकोर्ट ने ये सुनिश्चित किया है कि हिन्दू मंदिरों को उनका उचित अधिकार मिले।
हाल ही में सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु राज्य को 75 निर्देशों का एक सेट जारी किया है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य में प्राचीन मंदिरों और प्राचीन स्मारकों का रखरखाव उचित ढंग से हो।
224 पन्नों के फैसले में जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस पीडी आदिकेसवालु की खंडपीठ ने कहा, “भव्य और प्राचीन मंदिरों और प्राचीन स्मारकों के संरक्षक कम परेशान हैं क्या? हमारी मूल्यवान विरासत किसी प्राकृतिक आपदा या विपदा के कारण नहीं बल्कि जीर्णोद्धार की आड़ में लापरवाह प्रशासन और रखरखाव के कारण बिगड़ रहा है।”
मद्रास हाईकोर्ट ने आगे कहा, “यह आश्चर्यजनक है कि प्रमुख मंदिरों की आय के बावजूद HR&CE विभाग ऐतिहासिक मंदिरों और मूर्तियों के संरक्षण में सक्षम नहीं है, जिनकी बाजार में उनकी उम्र के कारण एंटीक वैल्यू है। राज्य के कुछ मंदिरों को यूनेस्को द्वारा विरासत स्थल के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त कई मंदिर 2000 साल या उससे भी बहुत पहले निर्मित हैं और अब वे खंडहर हो चुके हैं। न तो पुरातत्व विभाग और न ही HR&CE विभाग ने उनकी पहचान करने और उनकी रक्षा करने में रुचि दिखाई है..”
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इसके अलावा मद्रास हाईकोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि मंदिर की भूमि हमेशा मंदिरों के पास ही रहनी चाहिए और राज्य सरकार या HR&CE विभाग को दानदाताओं की इच्छा के विपरीत ऐसी भूमि को अलग नहीं करना चाहिए या देना नहीं चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अधिग्रहण के लिए मंदिर की भूमि पर ‘सार्वजनिक उद्देश्य सिद्धांत’ को लागू नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि समुदाय के हित आम तौर पर ऐसी भूमि के साथ शामिल होते हैं।
कोर्ट का कहना है, “राज्य सरकार या HR&CE विभाग के आयुक्त, जो मंदिर की भूमि के ट्रस्टी/प्रशासक हैं, दानकर्ता की इच्छा के विपरीत भूमि को अलग नहीं करेंगे या नहीं देंगे। भूमि हमेशा मंदिरों के पास रहेगी। सार्वजनिक उद्देश्य के सिद्धांत को मंदिर की भूमि के मामलों में लागू नहीं किया जाएगा, जिस पर आमतौर पर धार्मिक संप्रदाय के समुदाय के लोगों का हित होता है।”
मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले से सिद्ध होता है कि जिस प्रकार से अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर मंदिर का शोषण होता रहा है, उसके विरुद्ध अब कड़े कदम उठाने का वक्त आ चुका है। अभी कुछ ही दिन पहले मद्रास हाईकोर्ट ने कई मंदिरों की 47000 एकड़ जमीन की चोरी को लेकर तमिलनाडु सरकार की लताड़ भी लगाई है। ऐसे में अब मद्रास हाईकोर्ट को केवल इतने पर ही नहीं रुकना चाहिए, बल्कि ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि मंदिरों का स्वामित्व जल्द ही मंदिरों के भक्तों के हाथों में जाने का मार्ग प्रशस्त हो।