पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं पर आये दिन जानलेवा हमले हो रहे हैं। तृणमूल से भाजपा में आये नेता एक के बाद एक, वापस भाजपा से तृणमूल में जा रहे हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने मरते कार्यकर्ता को मदद के नाम पर आश्वासन का पुलिंदा पकड़ा दिया है। इसका असर अब कार्यकर्ताओं के मनोबल पर साफ दिख रहा है।
हुगली और बीरभूम जिले से यह खबर सामने आई है कि भाजपा कार्यकर्ता ऑटोरिक्शा में लाउडस्पीकर लगाकर, तृणमूल नेताओं से माफी मांग रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बीरभूम में लाभपुर, बोलपुर और सैंथिया से लेकर हुगली जिले के धनियाकली जिले में भाजपा कार्यकर्ता सार्वजनिक रूप से माफी मांग रहे हैं।
बोलपुर में एक वार्ड में भाजपा कार्यकर्ताओं ने यह कहते हुए माफी मांगी कि भाजपा ने उन्हें समझा बुझा कर किसी तरह मनाया था। उन्होंने कहा कि भाजपा फ्रॉड पार्टी है और उन्हें समझ आ गया है कि उनके पास ममता बनर्जी के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि वह ममता के विकास कार्यों का हिस्सा बनना चाहते हैं। ऐसे ही ऐलान अन्य जिले में भी सुने गए हैं।
मुकुल मंडल नाम के एक कार्यकर्ता ने कहा कि मैंने भाजपा को गलत समझा, और अब मैं तृणमूल में वापस आना चाहता हूँ। अकेले सैंथिया से ही 300 से अधिक भाजपा कार्यकर्ता शपथ लेकर तृणमूल में वापस जा रहे हैं। 300 लोगों में भाजपा युवामोर्चा के पूर्व मंडल-अध्यक्ष का नाम भी शामिल है।
छोटे कार्यकर्ताओं को तो छोड़िए, पूर्व मंत्री और तृणमूल से भाजपा में आए प्रभावी नेता राजीव बनर्जी भी वापस तृणमूल में जाने को तैयार बैठे हैं। उन्होंने हाल ही में महासचिव कुणाल घोष के घर जाकर उनसे मुकालात की है। बंगाल में जारी लगातार हिंसा के बाद भी राजीव खुलकर तृणमूल का बचाव कर रहे हैं और उन्होंने कहा है कि लोग राष्ट्रपति शासन को पसंद नहीं करेंगे।
स्पष्ट है बंगाल में कि भाजपा कार्यकर्ताओं में मृत्यु का भय भीतर तक समा चुका है। पिछले दिनों जिस प्रकार से भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई हैं, उसे देखकर डरना लाज़मी है। चुनाव खत्म होते ही बीरभूम, नन्दीग्राम, बिष्णुपुर आदि सभी जगहों से हिंसा की खबरें आने लगी थीं। भाटापारा में हाल ही में भाजपा कार्यकर्ता पर बम से हुए हमले में उसके सिर की धज्जियां उड़ गई थीं। 2 जून तक कुल 37 भाजपा कार्यकर्ताओं के मारे जाने की सूचना मिली है।
शहरों में तृणमूल नेताओं के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने गई केंद्रीय एजेंसी के लोग भी सुरक्षित नहीं हैं। प्रशासनिक तंत्र तृणमूल का गुलाम है, इसलिए पुलिस से किसी प्रकार की कार्रवाई की उम्मीद रखना मूर्खता है।
ऐसे में बंगाल में आम भाजपा कार्यकर्ता के पास दो ही विकल्प है कि या तो वो तृणमूल के गुंडा तंत्र से लड़ता रहे और किसी भी समय अपने ऊपर हमले, अपने घर की बहू बेटियों के रेप या अपनी हत्या के लिए तैयार रहे, अथवा आसान रास्ता अपनाकर तृणमूल कांग्रेस के नेताओं से माफी मांगे और तृणमूल में शामिल हो जाए।
दुखद पहलू यह है कि इस बात को न तो राष्ट्रीय मीडिया तवज्जो देगी, न तो अधिकांश मामलों का स्वतः संज्ञान लेने वाली माननीय उच्चतम न्यायालय, यहाँ तक कि केंद्रीय नेतृत्व भी अपने कार्यकर्ताओं में भरोसा नहीं जगा पा रहा है।