हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अहम निर्णय में घोषणा की है कि देश में 21 जून से सभी वयस्कों को मुफ़्त में वैक्सीन मुहैया कराई जाएगी। इस निर्णय का अर्थ स्पष्ट है – कुछ राज्यों की अकर्मण्यता के कारण देश टीकाकरण के अपने लक्ष्य में जिस तरह पिछड़ रहा है, उससे उबरने के लिए केंद्र सरकार अब फ्रंटफुट पर आने को तैयार है।
लेकिन यह कैसे संभव है? अब ये संयोग नहीं हो सकता कि देश में वुहान वायरस से लड़ने में कारगर टीकों की सर्वाधिक बर्बादी उन्हीं राज्यों में हो रही है, जहां पर विपक्षी पार्टियों का राज हो। यह मज़ाक नहीं, परंतु कटु सत्य है। कुछ राज्यों में जानबूझकर लोगों को कम वैक्सीन दी जा रही है, तो कुछ राज्य केंद्र से सस्ते में वैक्सीन लेकर जनता को महंगे दाम पर वैक्सीन दे रहे हैं। कुछ राज्य तो खुलेआम वैक्सीन को कूड़ेदान में फेंकते हैं या फिर उसे गहरे गड्ढे में दफना देते हैं।
अब इस डेटा इमेज को ही देखिए –
यहाँ पर आप स्पष्ट देख सकते हैं कि किस प्रकार से जनवरी से मार्च के बीच में कुछ राज्यों ने तो उपलब्ध डोज़ का आधा भी इस्तेमाल नहीं किया। इनमें से कोई भी राज्य भाजपा प्रशासित नहीं है। राजस्थान से तो ये भी खबरें सामने आ रही थी कि जहां एक ओर वैक्सीन बर्बाद हो रहे थे, वहीं गहलोत प्रशासन इसमें भी अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को बढ़ावा दे रहा था, जिसके लिए राजस्थान हाईकोर्ट ने गहलोत सरकार की क्लास भी लगाई।
कुछ ही दिन पहले TFI पोस्ट की ही एक रिपोर्ट में ये सामने आया था कि किस प्रकार से टीकाकरण के नाम पर धड़ल्ले से धाँधलेबाज़ी चल रही है। रिपोर्ट के एक अंश अनुसार, “राजस्थान में वैक्सीन को कूड़े में फेंकने की खबर सामने आई, यानी जानबूझकर वैक्सीन की बर्बादी की गयी। दैनिक भास्कर की खास रिपोर्ट से यह घोटाला एक्सपोज हुआ कि राजस्थान में वैक्सीन को कूड़े में फेंक कर बर्बाद किया जा रहा है। राजस्थान के 8 जिलों में 2500 वैक्सीन डोज कूड़ेदान में बर्बाद मिली थी। दैनिक भास्कर ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि “राजस्थान में अब भी 80% तक भरी वैक्सीन कचरे के ढेर में पड़ी है। जमीन में गाड़ी भी जा रही है। बुधवार को भास्कर प्रदेश के 10 स्वास्थ्य केंद्रों से ये सच बीनकर लाया है।”
जब ये एक राज्य के हाल हैं, जहां कांग्रेस का शासन है, तो सोचिए बाकी विपक्षी राज्यों का क्या हाल होगा? यही राज्य बाद में केंद्र से दिन प्रतिदिन मुफ़्त वैक्सीन की भीख मांगते फिरते हैं। जिस प्रकार से राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों ने देश को टीकाकरण के अभियान में जानबूझकर पीछे धकेलने का प्रयास किया है, वो स्पष्ट करता है कि किस प्रकार से देश को केंद्र सरकार के सख्त रुख की आवश्यकता है।
इसके अलावा कुछ राज्य ऐसे भी है, जो केंद्र की मेहनत का श्रेय अपने लिए लूटना चाहते हैं। TFI पोस्ट की ही एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, “अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल से यह खबर आई है कि राज्य सरकार वैक्सीनेशन के बाद जो सर्टिफिकेट बांट रही है, उसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तस्वीर लगी हुई है।”
इसी प्रकार हेमन्त सोरेन और अरविंद केजरीवाल का व्यवहार देखकर तो यह लगा कि देश में ऐसे लोग भी मुख्यमंत्री बन गए हैं, जिन्हें अपने पद की गरिमा का ध्यान नहीं है। केजरीवाल ने सामान्य प्रोटोकॉल का ध्यान न देते हुए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ चल रही गोपनीय मीटिंग को लाइव कर दिया था। उन्होंने केवल उतने हिस्से को लाइव किया, जिसमें वह प्रधानमंत्री से मदद की अपील कर रहे थे। केजरीवाल अपनी कमियों को छुपाने के लिए ऐसा दिखाना चाह रहे थे कि केंद्र सरकार उनकी मदद नहीं कर रही, इसलिए उन्होंने जानबूझकर पूरी मीटिंग का केवल उतना हिस्सा लाइव किया जितना उनके एजेंडा के लिए ठीक बैठता था।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत में वैक्सीन का सर्वाधिक दुरुपयोग यदि केवल उन्ही राज्यों में ज्यादा रहा है जहां पर विपक्षी पार्टियां शासन में है, तो यह महज संयोग नहीं हो सकता। पीएम मोदी को नीचा दिखाने के लिए इन राज्यों ने अपने ही लोगों की बलि चढ़ाने में भी कोई हिचक नहीं दिखाई। कल्पना कीजिए यदि इन लोगों का पूरे देश पर शासन होता, तो?