इन दिनों पंजाब में असामाजिक तत्वों का बोलबाला है। कहने को कैप्टन अमरिंदर सिंह [सेवानिर्वृत्त] राष्ट्रवादी हैं, लेकिन उन्हीं की छत्रछाया में असामाजिक तत्व खुलेआम खालिस्तानी नारों को बढ़ावा दे रहे हैं। इतना ही नहीं, ये तत्व एक बार फिर से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर तक पूर्व खालिस्तानी सरगना जरनैल सिंह भिंडरावाले के समर्थन में शोभा यात्रा निकालते हुए दिखाई दिए।
जी हाँ, आपने ठीक पढ़ा। जरनैल सिंह भिंडरावाले के समर्थन में अमृतसर में शोभा यात्रा निकाली गई और उसके फोटो वाले खालिस्तानी झंडों को भी अमृतसर भर में लहराया गया। हिंदुस्तान समाचार की रिपोर्ट के अनुसार, 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार की 37वीं बरसी पर सिख संगठनों ने कई कार्यक्रमों की योजना बनाई थी। इसी के तहत अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) के अंदर एक कार्यक्रम के दौरान खालिस्तानी अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरावाले के पोस्टर और खालिस्तानी झंडे देखे गए। इसकी कई तस्वीरें सामने आईं हैं। अमृतसर कमिश्नरेट पुलिस ने कहा है कि “शहरभर में निगरानी रखने के लिए 6,000 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया है। ऐसे में कार्यक्रमों की तस्वीरों में खालिस्तानी झंडे देखे जाना सरकार के लिए एक बड़ी चिंता बन सकती है। इन तस्वीरों में भीड़ में लोग इस झंडे को पकड़ें नजर आ रहे हैं।”
बता दें कि जरनैल सिंह भिंडरावाले को कांग्रेस पंजाब में अकाली दल के प्रभाव को कम करने के लिए सामने लाए थे, लेकिन जरनैल सिंह भिंडरावाले पाकिस्तानी गुप्तचरों के प्रभाव में आकर देशद्रोही तत्वों को बढ़ावा देने लगे और जल्द ही कांग्रेस का निकाला सांप उन्हें ही डसने लगा। जब स्थिति हाथ से बाहर निकलने लगी तो आनन फानन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की अनुमति दे दी। ऑपरेशन ब्लू स्टार जरनैल सिंह भिंडरावाले को पकड़ने के लिए आवश्यक था, लेकिन इसे बेहद भद्दे तरीके से लागू किया गया और 1 से 10 जून के बीच अमृतसर का हरमंदिर साहिब परिसर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया।
जरनैल सिंह भिंडरावाले का खात्मा तो हो गया, लेकिन खालिस्तान के जिन्न ने कई वर्षों तक देश को सताया। इसको खत्म करने के नाम पर कांग्रेस ने जो खून खराबा 1980 से लेकर 1990 के प्रारंभ तक किया, वो किसी से छुपा नहीं है, लेकिन इसके बावजूद जिस प्रकार से पंजाब में विशेषकर अमृतसर में खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए, उससे स्पष्ट पता चलता है कि अमरिंदर सिंह के प्रशासन ने कोई सीख नहीं ली है और वे जानबूझकर इन असामाजिक तत्वों को बढ़ावा दे रहे हैं।
यदि अब भी अमरिंदर सिंह नहीं चेते, तो वह दिन दूर नहीं, जब यही असामाजिक तत्व फिर से पंजाब को 1947 के मुहाने पर ले आएंगे, जहां कट्टरपंथी इस्लाम और देशद्रोही तत्वों की मिलीभगत से करोड़ों हिंदुओं और निर्दोष सिखों को अपनी प्राणों से हाथ धोना पड़ा था। अतः अमरिंदर सिंह को समझना चाहिए कि खालिस्तान का विष पंजाब में फिर से नहीं पनपने दिया जा सकता।