दुनिया में अगर ऐसा कोई देश है जो चीन के आर्थिक युद्ध का शिकार बन रहा है, तो वह चीन ही है। पिछले करीब एक साल से चीन ने ऑस्ट्रेलिया से होने वाले आयात को हथियार की तरह इस्तेमाल कर ऑस्ट्रेलिया के स्कॉट मॉरिसन प्रशासन को दंडित करने की भरपूर कोशिश की है। हालांकि, इस युद्ध में अधिकतर नुकसान किसी और का नहीं, बल्कि खुद चीन का ही हुआ है। अब मॉरिसन इस युद्ध को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना चाहते हैं। चीन-विरोधी वैश्विक आर्थिक मोर्चे को तैयार करने के लिए मॉरिसन ने जिस प्लेटफॉर्म को चुना है, उसका नाम है Organisation for Economic Co-operation and Development यानि OECD!
OECD 38 देशों का एक ऐसा संगठन है, जिसका मुख्य काम दुनियाभर में व्यापारिक गतिविधियों को सुगम बनाने के लिए वांछित नीतियों को बढ़ावा देना है। यूरोप, उत्तर अमेरिकी और कुछ पेसिफिक देश इसके सदस्य हैं। अमेरिका, फ्रांस, UK, जर्मनी, न्यूजीलैंड, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इसके प्रमुख सदस्य देश हैं।
2 हफ्तों पहले ही ऑस्ट्रेलिया के पूर्व वित्त मंत्री और स्कॉट मॉरिसन के साथी Mathias Cormann OECD के नए अध्यक्ष बने हैं और मौके को ध्यान में रखकर मॉरिसन अब इस समूह का इस्तेमाल अपने चीन-विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करना चाहते हैं। हाल ही में स्कॉट मॉरिसन ने फ्रांस आधारित इस समूह को संबोधित किया और दुनिया के सामने चीन के खतरे को प्रदर्शित करने की कोशिश की। ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश की कि चीन वैश्विक व्यापारिक समुदाय के लिए बेहद बड़ा खतरा है और इससे निपटने के लिए सभी “आज़ादी-पसंद” लोकतान्त्रिक देशों को साथ मिलकर रणनीति बनानी होगी।
मॉरिसन के बयान के अनुसार “वैश्विक व्यापारिक तंत्र और नियम आधारित व्यापार पर बेहद बड़ा खतरा आन खड़ा हुआ है। इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए सभी देशों को उस हद तक सहयोग करना होगा जो दशकों में भी देखने को नहीं मिला है।”
मॉरिसन चीन के खतरे को दुनिया को बताने के लिए बेहद सक्षम नेता हैं क्योंकि वे खुद पिछले एक साल से चीन की आर्थिक गुंडागर्दी का शिकार बन रहे हैं। Barley से लेकर कोयले तक, शराब से लेकर टिंबर तक और कपास से लेकर कृषि उत्पादों तक पर चीन ने प्रतिबंध लगा दिया, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि स्कॉट मॉरिसन प्रशासन ने वुहान वायरस की उत्पत्ति की जांच की मांग की थी। मॉरिसन जानते हैं कि व्यापार के मामले में चीन पर अत्यधिक निर्भरता किस प्रकार खतरनाक साबित हो सकती है। ऑस्ट्रेलिया यह देख चुका है कि चीन किस प्रकार अपने आर्थिक प्रभाव का इस्तेमाल अपनी सुरक्षा नीति को आगे बढ़ाने में करता है।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चीन की रणनीति कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं कर पाई। ऐसा इसलिए क्योंकि चीनी स्टील उत्पादकों को ऑस्ट्रेलिया के Iron Ore की बेहद ज़्यादा आवश्यकता है, और ऑस्ट्रेलिया के उच्च-गुणवत्ता वाले Iron ore के लिए चीन के पास कोई विकल्प भी मौजूद नहीं है। अगर चीन के सामने Iron Ore वाली समस्या ना होती तो शायद अब तक चीन ऑस्ट्रेलिया को इस युद्ध में नाकों चने चबवा चुका होता। चीन पहले ही ऑस्ट्रेलिया को दंडित करने के लिए वहां अपने निवेश में भारी कमी ला रहा है। वर्ष 2014 के मुक़ाबले चीन की ओर से ऑस्ट्रेलिया में आने वाले निवेश में करीब 61 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिल चुकी है।
OECD के अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया को भरपूर समर्थन देने के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति Emmanuel Macron पहले ही आगे आ चुके हैं। अपने हालिया बयान में उन्होंने चीन के खिलाफ इस आर्थिक युद्ध में ऑस्ट्रेलिया को अपना खुला समर्थन ज़ाहिर किया है। चूंकि OECD पेरिस में ही आधारित है, ऐसे में Emmanuel Macron का साथ और अधिक ज़रूरी हो जाता है। ऑस्ट्रेलिया इसके अलावा भारत और वियतनाम जैसे देशों के साथ मिलकर अपनी सप्लाई चेन को चाइना-फ्री करने और Diversify करने पर काम कर रहे हैं। जिस प्रकार मॉरिसन चीन पर निर्भर होने के बावजूद चीनी-चैलेंज से सफलतापूर्वक निपटे हैं, उसी उदाहरण के साथ वे दुनिया के अन्य देशों को भी चीन-विरोधी नीति बनाने और उन्हें सफलतापूर्वक लागू करने में सहायता प्रदान कर सकते हैं।