महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार का निकम्मापन प्रतिदिन पुराने आयामों से आगे बढ़ रहा है। कभी भ्रष्टाचार, तो कभी उगाही कांड… उद्धव सरकार के इस छोटे से कार्यकाल ने अनेकों कीर्तिमान स्थापित कर दिए हैं। इसी बीच अब आईपीएस अधिकारियों को लेकर आरटीआई के जरिए एक बड़ा खुलासा हुआ है कि इन राज्य के 35 आईपीएस अधिकारियों ने सरकारी आवासों में समय सीमा के बाद भी स्टे किया। इसको लेकर इनका बकाया करीब 4 करोड़ से ज्यादा का हो चुका है, लेकिन महाराष्ट्र सरकार मुद्दे पर अपनी निरंकुशता का भौंडा प्रदर्शन करने से बाज नहीं आ रही है।
इस मामले में आरटीआई और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 7 पुलिस अधिकारियों पर मार्च 2021 तक हर एक पर 20 लाख रुपये बकाया है। वहीं दिलचस्प बात ये है कि पुणे में स्टेट रिजर्व पुलिस फोर्स में तैनात रहे डीआईजी संजय कुमार का तबादला साल 2011 में हो गया था, लेकिन वो मुंबई में एलॉट किए गए अपार्टमेंट में अक्टूबर 2020 तक रहे थे। इस तरह उन पर 75.77 लाख रुपये का जुर्माना बकाया है, लेकिन शायद राज्य में किसी को कोई फर्क ही नहीं है। कुछ इसी तरह डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस डॉ. महेश पाटिल पर भी लाखों का पैसा बकाया है। ये 1,000 वर्ग फुट का अपार्टमेंट में 2019 तक रहे जबकि तबादला 2016 में हो गया था।
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इसके अलावा अन्य अधिकारियों में सुरेंद्र कुमार और धनंजेय कमालकर ने अपने हिस्से के 25.78 लाख और 22.82 लाख रुपये अभी तक नहीं दिए हैं। वहीं एसपी एंटी करप्शन पंजाब राव पर 20.77 लाख बकाया है। पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर धनंजय जाधव पर भी मार्च 30 तक 20.16 लाख का बकाया है, लेकिन बीमारी की वजह से 30 मार्च को उनका देहांत हो गया और उन पर भी सरकार का लाखों रुपया बकाया है।
इस लिस्ट में मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह का नाम भी है, जिन पर करीब 12 लाख रुपये बकाया है, जबकि उन्होंने सफाई में कहा है कि उन्होंने कभी ओवरस्टे नहीं किया। उन्होंने कहा कि मुंबई से बाहर ट्रांसफर होने पर वो पुलिस क्वार्टर में ही रहे थे जो कि फ्री था। लाइसेंस फीस को उस समय के गृह मंत्री आर आर पाटिल ने समाप्त कर दिया था।
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इस पूरे मामले में करोड़ों रुपये की राशि का हेर-फेर है, जबकि ये मामला खुद पुलिस अधिकारियों से जुड़ा हुआ है। वहीं जब इन पूर्व अधिकारियों से बात की गई है तो किसी ने भी इस मुद्दे पर संतोषजनक जवाब नहीं दिया है। सभी आईपीएस अधिकारियों ने दस्तावेजों में गड़बड़ी से लेकर ओवर स्टे की बातों को सिरे से खारिज किया है, जो कि बेतुका ही माना जाएगा, क्योंकि ट्रांसफर के बाद अधिकारियों को अपने उत्तराधिकारी के लिए सरकारी आवास खाली करना पड़ता है, लेकिन इन लोगों ने ऐसा कुछ नहीं किया और सारे नियम कानून ताक पर रखे।
इसके विपरीत इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार को संज्ञान लेने की आवश्यकता है, लेकिन महाराष्ट्र सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठी है, जो कि उसकी ही नीयत पर सवाल खड़े करता है।