भाजपा का साथ छोड़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए मुकुल रॉय की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। मुकुल रॉय भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर आए हैं लेकिन उन्होंने चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है। अब भाजपा उनके विरुद्ध दलबदल कानून के तहत कार्रवाई करने की तैयारी में है।
भाजपा के विधायक दल के नेता शुवेन्दु अधिकारी ने कहा है कि “पार्टी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा से मुकुल रॉय को अयोग्य ठहराने की अपनी मांग के समर्थन में कागजी कार्रवाई पूरी कर ली है।”
अधिकारी ने कहा, “हमने बीजेपी के कमल चिह्न पर चुनाव जीते मुकुल रॉय को विधानसभा से अयोग्य ठहराने की अपनी मांग के समर्थन में सभी दस्तावेज तैयार कर लिए हैं। सदन का ‘रिसीव सेक्शन’ आज बंद था। अधिकारी ने कहा कि वह विधानसभा सचिवालय को दस्तावेज जमा नहीं कर सके क्योंकि संबंधित कार्यालय बंद था। अगर यह कल भी बंद मिला तो हम संबंधित दस्तावेज और अपना पत्र मेल करेंगे।”
साफ है कि, भाजपा मुकुल रॉय को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली है। यह कार्रवाई इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि मुकुल रॉय पश्चिम बंगाल के एक प्रभावी नेता हैं, ऐसे में उनके पलायन के बाद कई अन्य नेताओं के भी भाजपा छोड़, तृणमूल में शामिल होने की अटकलें लगाई जाने लगी थीं।
मुकुल रॉय के भाजपा में शामिल होने के बाद तृणमूल से कई नेता भाजपा में शामिल हुए। तृणमूल के नेताओं को तोड़ने में मुकुल रॉय का भी योगदान था, लेकिन जैसे ही चुनाव परिणाम आए तथा ममता बनर्जी ने जबरदस्त वापसी की वैसे ही पश्चिम बंगाल की राजनीति के समीकरण भी बदलने लगे।
भाजपा में शामिल हुए स्वार्थी नेताओं का जमघट, टूटकर दुबारा तृणमूल की ओर पलायन करेगा ऐसी खबरें मीडिया में आम हो गईं। इसी बीच भाजपा को तब बड़ा झटका लगा जब मुकुल रॉय पुनः तृणमूल में शामिल हुए।
ऐसे में अन्य नेता भी भागते हैं तो, भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बहुत तेजी से गिरेगा। लेकिन अब क्योंकि शुवेन्दु अधिकारी ने स्वयं मोर्चा संभाला है तथा संवैधानिक कार्रवाई की बात शुरू हो गई है, तो ऐसे में कम से कम भाजपा के अन्य ऐसे विधायक जो सम्भवतः मुकुल रॉय के प्रभाव में भाजपा का साथ छोड़ सकते थे, उनपर लगाम लगाई जा सकती है।
यह एक कठोर सत्य है कि, भय ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में अपना अलग स्थान बना रखा है। तृणमूल के गुंडों के भय से भाजपा के नेता, डरकर ममता के सामने समर्पण कर दे रहे हैं। ऐसे में भाजपा नेताओं का फ्रंट पर आकर मोर्चा संभालना बहुत आवश्यक हो गया है। क्योंकि भाजपा तृणमूल की तरह अपराधियों और आतंकियों की पार्टी नहीं है, इस कारण वह गैर कानूनी तरीके नहीं अपना सकती है।
ऐसे में संवैधानिक व्यवस्था के तहत जो भी उचित कदम उठाए जा सकते हैं, उन्हें उठाना ही चाहिए। भाजपा नेतृत्व अगर कड़ा रुख नहीं अपनाता तो न सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या होती रहेगी, बल्कि बड़े नेता भी पार्टी छोड़कर भागेंगे। अब भाजपा अपनी नीति में बदलाव कर रही है।
शुवेन्दु के बयान के अलावा हाल में ही कैलाश विजयवर्गीय ने भी पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की बात की है, जो बताता है कि, भले ही हत्याओं और बलात्कार के क्रम से भाजपा को भयभीत करने की कोशिश की जा रही हो, किन्तु भाजपा इतनी आसानी से पीछे नहीं हटने वाली। जो स्थिति है उसे देखकर यह तय माना जा सकता है कि मुकुल रॉय का आने वाले समय, काफी कठिन होगा और हो सकता है कि उनकी विधायकी भी निरस्त हो जाए।