सुप्रीम कोर्ट देश का उच्चतम न्यायालय यूं ही नहीं बना है। अनेकों बार इसने देश के दुश्मनों और देश की भलाई के नाम पर देश के संसाधन का दुरुपयोग करने वालों को आईना भी दिखाया है। कुछ ऐसा ही अभी अनुराग पोद्दार वाले मामले में भी हुआ, जहां सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की क्लास लगाते हुए तुरंत मृतक के परिवार को मुआवज़ा जारी करने का आदेश दिया है।
अनुराग पोद्दार वह व्यक्ति है, जो नवरात्रि के अंतिम दिन दुर्गा विसर्जन के लिए मुंगेर में अपने परिजनों और मित्रों सहित निकला था। वहाँ एसपी लिपि सिंह के नेतृत्व में प्रशासन ने उन्हें कोरोना के नाम पर रोकने का प्रयास किया, जिसपर विवाद खड़ा हो गया। जनता के विरोध से आगबबूला होकर लिपि सिंह ने अपने पुलिसकर्मियों द्वारा निहत्थी जनता पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। इसमें अनुराग पोद्दार की मौके पर ही मृत्यु हो गई और कई लोग घायल हुए।
चूंकि लिपि सिंह सत्ताधारी JDU के संयोजक आरसीपी सिंह की बेटी है, इसलिए बिहार सरकार को भी आलोचना का सामना करना पड़ा। कुछ महीनों पहले पटना हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में बिहार सरकार के खोखले दावों की धज्जियां उड़ाते हुए तत्काल प्रभाव से अनुराग पोद्दार को मुआवज़ा देने का आदेश दिया था।
हिंदुओं से घृणा की दृष्टि में नीतीश कुमार अपने समकालीनों से ज्यादा अलग नहीं है इसलिए बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस निर्देश के विरुद्ध अर्जी दाखिल कर दी। परंतु सुप्रीम कोर्ट के सामने नीतीश सरकार की एक न चली। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए ये बात कही है। साथ ही हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद मुआवजे का भुगतान नहीं किए जाने पर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई और उनकी याचिका भी खारिज कर दी। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने हाईकोर्ट की ओर से दिए गए मुआवजे के फैसले पर प्रदेश सरकार के रवैये की आलोचना की।
नवभारत टाइम्स के रिपोर्ट के अनुसार, “कोर्ट ने कहा कि मामले में जिस तरह से जांच की गई वह चौंकाने वाला है और घटना में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक की भूमिका पर सवाल उठाए गए। हाईकोर्ट की टिप्पणी का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि पुलिस अधिकारी सत्ताधारी दल के एक राजनेता के रिश्तेदार हैं। साथ ही पुलिस मामले में उचित और समय पर जांच करने में विफल रही”।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा मुंगेर पुलिस के तत्कालीन अफसरों को बचाने के प्रयासों को भी ध्वस्त करते हुए कहा कि निष्पक्ष जांच में पुलिस की ओर से लापरवाही हुई है और उस लापरवाही के लिए मुआवजा दिया जा सकता है। निष्पक्ष जांच पीड़ित और उनके परिवार के सदस्यों के मौलिक अधिकारों का हिस्सा है।
कोर्ट के अनुसार, “यह चौंकाने वाली बात है। मुंगेर पुलिस की ओर से फायरिंग मामले में समय पर जांच क्यों नहीं की गई? इसमें प्राथमिकी दर्ज करने में देरी क्यों हुई? हाईकोर्ट के निष्कर्ष के मुताबिक, तत्कालीन एसपी सत्तारूढ़ दल के एक राजनेता की रिश्तेदार थीं, जिसकी वजह से मामले की जांच पर असर पड़ा है”।
सुप्रीम कोर्ट ने जिस प्रकार से बिहार सरकार की क्लास लगाई है, उससे स्पष्ट होता है कि हिंदुओं की मांगों और उनके साथ हुए अन्याय को अनदेखा नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न केवल सराहनीय है, बल्कि आवश्यक भी।