आज के समय में भारत के अन्दर अगर कहीं तानाशाही देखनी है तो पश्चिम बंगाल सबसे बेहतरीन उदहारण है। ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी नार्थ कोरिया के किम जोंग को भी पीछे छोड़ने की कसम खा चुकी हैं। पश्चिम बंगाल में TMC का विरोध करने वालों की हत्या ही नहीं हो रही है बल्कि अब तो सुप्रीम कोर्ट के जज भी ममता के डर के कारण स्वयं को TMC वाले मामलों से अलग कर रहे हैं। ऐसा एक बार होता तो उसे अपवाद कहा जा सकता था, परन्तु अब एक और सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने भी यही किया है।
एक सप्ताह के भीतर दो जजों नें TMC से जुड़े दो मामलों से खुद को अलग किया
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस इंदिरा बनर्जी द्वारा पश्चिम बंगाल में महिलाओं पर हुए अत्याचार के मामले अलग करने के बाद एक और जज ने ऐसा ही किया है। रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के जज, जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने Narada Case में खुद को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और TMC चीफ ममता बनर्जी की याचिका पर सुनवाई करने से अलग कर लिया है।
Supreme Court judge Justice Aniruddha Bose recuses from hearing pleas in the Narada scam case pic.twitter.com/BYKI3bJ4lp
— ANI (@ANI) June 22, 2021
दरअसल, मामले में सीबीआई द्वारा तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं को गिरफ्तार किये जाने के दिन ममता बनर्जी और राज्य के कानून मंत्री मलय घटक की भूमिकाओं के संबंध में याचिकाएं दाखिल की गईं थी।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ जैसे ही मंगलवार की सुनवाई शुरू करने के लिए बैठी, जस्टिस गुप्ता ने कहा कि उनके साथी जज खुद को इन अपीलों की सुनवाई से अलग कर रहे हैं।
पीठ की अध्यक्षता करते हुए जस्टिस गुप्ता ने कहा कि अब इस विषय को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया NV Ramana के समक्ष रखा जाएगा जो इस संबंध में फैसला ले सकते हैं।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच को मुख्यमंत्री, घटक और पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर अलग-अलग अपीलों पर 22 जून को सुनवाई करनी थी। इन याचिकाओं में 17 मई को सीबीआई द्वारा नारदा टेप मामले में तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ममता बनर्जी और पश्चिम बंगाल के कानून मंत्री को उनकी भूमिकाओं पर हलफनामे दाखिल करने से इनकार करने के,हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है।
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TMC के नेताओं पर आरोप हैं कि उन्होंने सीबीआई द्वारा नारदा केस में चार नेताओं की गिरफ्तारी के बाद मामले की “कानूनी कामकाज” में अड़चन पैदा करने में अहम भूमिका अदा की। इस मामले पर से जस्टिस अनिरुद्ध बोस द्वारा सुनवाई से अलग होने का फैसला उनके डर को दिखता है। बता दें कि जस्टिस अनिरुद्ध बोस कोलकाता के ही है इसलिए उनका भय वास्तविक भी है। जिस तरह आज TMC का विरोध करने वालों के खिलाफ अत्याचार हो रहा है, उससे तो यही लगता है कि अगर जज ने TMC के खिलाफ फैसला सुनाया तो TMC के गुंडे उन्हें भी नहीं छोड़ेंगे।
SC की जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने TMC से जुड़े मामले से खुद को अलग किया था
इस पहले, 18 जून को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने भी बंगाल हिंसा से जुड़ें केस से खुद को अलग कर लिया था। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के दिन 2 मई को बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं की हत्या हुई थी, जिसको लेकर कार्यकर्ताओं के परिजनों और बीजेपी ने सीबीआई से जांच कराने के लिए याचिका दायर की थी। इस मामले की सुनवाई जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच कर रही थी, लेकिन अब खबरें हैं कि इंदिरा बनर्जी ने इस केस से खुद को अलग कर लिया है। उन्होंने अपने पीछे हटने को लेकर कहा, “मुझे इस मामले की सुनवाई में कुछ कठिनाई हो रही है। इस मामले को दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।”
पानी में रहना है तो मगरमच्छ से बैर नहीं
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी हो या जस्टिस अनिरुद्ध बोस, दोनों ही दिल्ली में बैठे हैं, ऐसे में उनका केस से अपने हाथ पीछे खींचना कहीं न कहीं ममता सरकार के प्रति उनका डर और बंगाल से संबंधित होना है। एक ऐसा मौका जब इंदिरा बनर्जी और अनिरुद्ध बोस को ममता बनर्जी की नीतियों के खिलाफ सबूत होने पर सख्त निर्णय सुनाना चाहिए, तो उस वक्त ये दोनों बंगाल की ममता सरकार के खौफ में हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि ये जज पानी में रहने के लिए मगरमच्छ से बैर नहीं करना चाहते हैं। यह घटनाक्रम किसी भी लोकतंत्र के लिए एक काले धब्बे की तरह है जब एक राजनीतिक पार्टी की गुंडागर्दी और तानाशाही के डर से न्यायतंत्र के दो न्यायाधीश इस तरह से अपने आप को उन मामलों से अलग कर रहे हैं जहाँ सुबूत पुख्ता हैं।