TISS संस्थान वामपंथियों की गिरफ्त में है
भारत के कई बड़े मुख्य शिक्षण संस्थान वामपंथियों की गिरफ्त में है। आप चाहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की बात करें, या फिर जादवपुर विश्वविद्यालय की, या हाल ही में सुर्खियों में छाए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की। इसी कड़ी से जुड़ी एक खबर आई थी कि, TISS की एक विद्यार्थी ने अपनी एक रिसर्च पेपर में जम्मू कश्मीर को India occupied Kashmir करार दिया था।
इस पूरे प्रकरण में सबसे हैरान करने और चौका देने वाली बात यह है कि, TISS जैसे संस्थान को भारत सरकार की ओर मोटी रकम दी जाती है। वित्तीय बजट का एक बड़ा हिस्सा TISS जैसे संस्थान को जाता है। अर्थात, TISS जिस थाली में खाता है, उसी में छेद करता है और यह कोई इकलौता प्रकरण नहीं है, ऐसे कई रिसर्च पेपर मिल जाएंगे, जो केवल केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना से भरे होते हैं।
No one asked for censorship. The demand is to DEFUND @TISSpeak because you can’t have state resources going into teaching & research that calls for disintegration of the Indian state and promotes secession. And in the last few days we have come across many such dissertations. https://t.co/fJoY71Z0DE
— Shubhendu (@BBTheorist) June 22, 2021
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बता दें कि जब TISS की छात्रा का मामला समाने आया, जिसमें उसने कहा है कि जम्मू-कश्मीर पर भारत द्वारा कब्ज़ा किया गया है। इस पर सफाई देते हुए TISS ने कहा कि संस्थान को इससे कोई लेना देना नहीं है और हम सच का पता लगा रहें हैं। सच क्या है, यह सबको पता है और वह यह है कि, TISS कि एक छात्रा ने अपने प्रोफेसर के शरण में भारत विरोधी तथ्यहीन रिपोर्ट लिखी है। सच यह है कि, केंद्र सरकार द्वारा फंडेड यह संस्था पाकिस्तान और आतंकवाद की भाषा बोल रही है।
अगर हम इस विषय को गहराई से देखें तो देख सकेंगे कि, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के अधिकतम विद्यार्थी भारत विरोधी है और इस विरोध के दो मुख्य आधार है। पहला यह कि जम्मू कश्मीर और भारत पर वहां के ज्यादातर छात्रों की सोच अलगाववादी है। दूसरा यह कि, वहां दक्षिणपंथी विचारधारा के लिए कोई जगह नहीं है। वहां दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वाले लोगों को भारी जिल्लत उठानी पड़ती है। इसके साथ ही TISS संस्था के अंदर ब्राह्मणों से नफ़रत करने का सिलसिला चलता रहता है।
संस्थान से जुड़े कुछ तथ्य
अब हम TISS से जुड़े कुछ तथ्य सामने रखेंगे। जैसे कि – फरवरी 2020 में TISS के 50 से ज्यादा छात्रों के ऊपर देश–द्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ था। यह सभी छात्र CAA-NRC विरोध प्रदर्शन में भारत विरोधी नारे लगा रहे थे।
ठीक ऐसे ही सितंबर 2020 में, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के छात्रों ने अपने रजिस्ट्रार के ऊपर हमला बोल दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि वो रजिस्ट्रार अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए पीएम मोदी का समर्थन करता था, अथवा इस्लामिस्टों के खिलाफ आवाज उठाने में सक्रिय था।
इससे यह स्पष्ट होता है कि, TISS में भारत विरोधी तत्व पनपते है और उन्हें जब भी मौका मिलता है वो राज द्रोह से लेकर पाकिस्तान की भाषा बोलने से बिल्कुल पीछे नहीं हटते। ऐसे में भारत सरकार को TISS जैसी संस्थाओं को अवमुक्त करना चाहिए, ताकि वहां से वामपंथी और देश विरोधी विचारधारा को जड़ से समाप्त किया जा सके।