अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अपने पार्टी के प्रोग्रेसिव नेताओं से बहुत परेशान होंगे। एक ओर बाइडन जमीनी हकीकत समझते हैं कि एशिया और विश्व में चीन के बढ़ते दबदबे को नहीं रोका गया तो अमेरिका की महाशक्ति की कुर्सी खतरे में आ सकती है। साथ ही उनकी मजबूरी है कि उन्हें विपक्ष के रूप में ट्रम्प जैसा नेता मिला है जो ‛स्लीपी बाइडन’ की कमजोर चीन नीति को लेकर उनकी आये दिन आलोचना करते हैं। बाइडन यह भी जानते हैं कि चीन को रोकने में केवल एक देश ही उनकी मदद कर सकता है, वह है भारत। लेकिन उन्हीं की पार्टी के प्रोग्रेसिव नेता भारत विरोधी बयानबाजी करके उनकी मुसीबत बढ़ा रहे हैं।
हाल ही में अमेरिका के Assistant Secretary of State for South and Central Asia डीन थॉमस ने बयान दिया है कि “भारत एक मजबूत कानून के शासनतंत्र और स्वतंत्र न्यायालय के साथ विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और वह अमेरिका के साथ एक मजबूत और लगातार विकसित हो रहे द्विपक्षीय रिश्ते रखने वाला साझीदार देश भी है। हालांकि, भारत सरकार ने कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं जो भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार नहीं हैं, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगातार बढ़ रही पहरेदारी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को हो रही जेल”।
थॉमसन का यह बयान एक अमेरिकी संसद की सुनवाई के दौरान आया है, जिसमें दुनियाभर के लोकतंत्रों की कार्यप्रणाली को लेकर चर्चा होती है। थॉमसन ने यह कहा कि भारत ने कश्मीर में कई सुधार लागू किये हैं जैसे कई नेताओं को जेल से छोड़ा गया है और 4G इंटरनेट पुनः बहाल हुआ है लेकिन अभी बहुत से काम बाकी हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि भारत का या दुनिया के अन्य किसी देश का लोकतंत्र कैसे काम करता है, यह पूछने का अधिकार अमेरिका को किसने दिया। अमेरिका में लोकतंत्र के नाम पर हुए दंगे की जानकारी सभी को है। कैसे डेमोक्रेटिक पार्टी ने सत्तारूढ़ रिपब्लिकन दल को परेशान करने के लिए करोड़ो की संपत्ति जलवा दी। इसके बाद वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र बांटने के अभियान में अमेरिका ने कई देशों में गृहयुद्ध करवा दिए, इराक में ISIS का जन्म हो गया, सब कुछ लोकतंत्र और मानवाधिकार के नामपर हुए युद्धों के कारण ही हुआ।
जब भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धारा 370 हटाना और जम्मू-कश्मीर में कोई भी फेरबदल करना उसका अंदरूनी मामला है तो अमेरिका को इसमें नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि आज अमेरिका को भारत की बहुत आवश्यकता है, उससे भी अधिक आवश्यकता यह है कि भारत का नेतृत्व नरेंद्र मोदी या अन्य किसी दक्षिणपंथी नेता के पास रहे, क्योंकि कांग्रेस के शासन में अमेरिका और जापान की लाख कोशिशों के बाद भी भारत ने क्वाड से ज्यादा महत्व शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गनाइजेशन और ब्रिक्स को दिया तथा अमेरिका की बजाए रूस और चीन से सहयोग बढ़ाया। बाइडन इन बातों से परिचित हैं लेकिन उनकी समस्या प्रोग्रेसिव लिबरल हैं।
अभी पिछले दिनों किसान आंदोलन के समय जिस प्रकार अमेरिकी उपराष्ट्रपति की भतीजी मीना हैरिस ने भारत विरोधी बयानबाजी की, उसके बाद अमेरिकी मानवाधिकार संगठनों ने भारत सरकार की विभिन्न मुद्दों पर आलोचना की, उससे पहले भी अमेरिका और भारत के रिश्ते काफी बिगड़े। उसके बाद वैक्सीन विवाद हुआ और अब यह नया मामला शुरू हुआ है।
महत्वपूर्ण यह है कि बाइडेन की विदेशनीति को डेमोक्रेटिक पार्टी के धड़े द्वारा लगातार प्रभावित करने की कोशिश हुई है। ट्रम्प शासन में उनकी मुखर विरोधी रही चार डेमोक्रेटिक नेता Ilhan Omar, Alexandria Ocasio-Cortez, Rashida Tlaib और Ayanna Pressley बाइडेन पर संसदीय समितियों के जरिये दबाव बना रही हैं, जिससे बाइडन भारत विरोधी कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों को खुश करना शुरु करें। इससे केवल और केवल अमेरिका और भारत के रिश्तों में दरार ही आएगी।