गैर भाजपाई दलों द्वारा शासित राज्यों में केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव कोरोना काल में और भी बढ़ गया है। हेमंत सोरेन, ममता बनर्जी, कांग्रेस के राज्य सरकार के मुखिया आदि सभी नेता कोरोना की नीतियों पर केंद्र से आमने-सामने की जंग छेड़ चुके हैं। यह हाल तब है जब राज्य सरकार को केंद्र के साथ मिलकर कोरोना नियंत्रण के लिए काम करना चाहिए।
अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल से यह खबर आई है कि राज्य सरकार वैक्सीनेशन के बाद जो सर्टिफिकेट बांट रही है, उसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तस्वीर लगी हुई है। यह हाल तब है जब पश्चिम बंगाल को मिलने वाली सारी वैक्सीन केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही हैं। इसके पहले जब सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री की तस्वीर लगी रहती थी तो तृणमूल नेताओं ने इसे लेकर केंद्र को काफी कोसा था, किन्तु अब ममता बनर्जी केंद्र के किए काम को अपना बताकर वाहवाही लूटने में व्यस्त हैं।
यही हाल कांग्रेस का भी है। कांग्रेस के नेता ट्विटर पर केंद्र सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते। उन्होंने केंद्र पर आरोप लगाया है कि PM केयर्स फंड की ओर से उपलब्ध करवाए गए वेंटिलेटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगी होती है। ऐसा नहीं होना चाहिए। यह आरोप उस कांग्रेस द्वारा लगाया जा रहा है, जिसने देशभर की योजनाओं को एक ही परिवार के दो तीन सदस्यों के नाम से चलाया है। कांग्रेस के नेताओं से यह प्रश्न किया जाना चाहिए कि केंद्र से मिलने वाली मदद पर केंद्र में चुनी हुई सरकार के मुखिया की तस्वीर नहीं होगी तो क्या UPA चेयरपर्सन सोनिया गांधी की तस्वीर होगी?
इसी प्रकार हेमन्त सोरेन और अरविंद केजरीवाल का व्यवहार देखकर तो यह लगा कि देश में ऐसे लोग भी मुख्यमंत्री बन गए हैं, जिन्हें अपने पद की गरिमा का ध्यान नहीं है। केजरीवाल ने सामान्य प्रोटोकॉल का ध्यान न देते हुए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ चल रही गोपनीय मीटिंग को लाइव कर दिया था। उन्होंने केवल उतने हिस्से को लाइव किया, जिसमें वह प्रधानमंत्री से मदद की अपील कर रहे थे, केजरीवाल अपनी कमियों को छुपाने के लिए ऐसा दिखाना चाह रहे थे कि केंद्र सरकार उनकी मदद नहीं कर रही, इसलिए उन्होंने जानबूझकर पूरी मीटिंग का केवल उतना हिस्सा लाइव किया जितना उनके एजेंडा के लिए ठीक बैठता था।
वहीं, हेमन्त सोरेन की बात करें तो उन्होंने तो ओछी राजनीति करते हुए प्रधानमंत्री द्वारा उन्हें किए गए फोन कॉल पर प्रधानमंत्री का मजाक बनाया, जबकि ये वही हेमंत सोरेन हैं, जिनके राज्य में भारी मात्रा में कोरोना वैक्सीन की बर्बादी हो रही है। रेप के आरोपी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य कोटे की वैक्सीन का मुफ्त आवंटन करने का वादा किया था और कहा था कि राज्य इसका भार उठाएगा, जबकि कुछ ही दिनों में उन्होंने केंद्र के सामने हाथ फैला दिए।
ये तमाम राज्य सरकारें केंद्र से ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर, वैक्सीन, वेंटिलेटर आदि सभी प्रकार की मदद भी ले रही हैं और केंद्र के प्रति आभारी होना तो दूर, उल्टे उसके खिलाफ दुष्प्रचार अभियान भी चला रही हैं। देश की राजनीति से वाकिफ लोग यह जानते हैं कि UPA सरकार में कैसे राष्ट्रीय आपदा में एवं सामान्य दिनों में भी, जब भी राहत पैकेज या फंड बांटने की बात आती थी, तो कांग्रेस अपने समर्थक दलों की एवं अपनी स्वयं की राज्य सरकारों को, विरोधी दलों की सरकार से ज्यादा तवज्जो देती थी। कांग्रेस के सत्ता में रहते समय भेदभाव, केंद्र की नीति का भाग बन गया था।
इसके विपरीत मोदी सरकार पर कोई भी मुख्यमंत्री, वह मोदी का कितना बड़ा विरोधी हो, यह आरोप नहीं लगा सकता कि केंद्र सरकार ने भाजपाई और गैर भाजपाई सरकार में किसी प्रकार का भेदभाव किया।
एक ओर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि राज्य के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार है, जबकि वर्तमान केंद्र सरकार ने अपनी नीतियों को लागू करते समय किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं दिखाया, न किसी को लाभ से वंचित रखा, न किसी वर्ग विशेष को प्राथमिकता दी। इन सब बातों के बावजूद भी प्रधानमंत्री के प्रति कृतज्ञता तो दूर की बात है, विपक्षी दल और समाज के वर्ग विशेष के लोग, उन्हें गालियां देते हैं।