2022 के विधानसभा चुनावों से पहले पंजाब में कांग्रेस के सामने मुश्किल चुनौतियां हैं, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए सबसे बड़ी चुनौती आंतरिक कलह ही बन गई है। नवजोत सिंह सिद्धू की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं और बगावत के कारण कैप्टन और पार्टी आलाकमान के बीच भी टकराव की स्थिति आ गई है। कैप्टन को आए दिन सोनिया गांधी द्वारा गठित तीन सदस्यीय AICC की कमेटी के सामने पेश होना पड़ता है। ऐसे में लगातार बढ़ते इस टकराव के चलते कैप्टन की छवि को तगड़ा झटका लगा है, और अब हो सकता है कि विधानसभा चुनावों से पहले कैप्टन कांग्रेस के लिए ही मुसीबतें खड़ी कर सकते हैं।
पंजाब की राजनीति में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू की लड़ाई अब पार्टी हाईकमान के पास पहुंच चुकी है। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के निर्देश पर मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनाई, जिसकी रिपोर्ट कथित तौर पर सोनिया के पास पहुंच गई है। अब अजीबो-गरीब बात ये है कि लगभग एक महीने पहले हुई बैठक में कमेटी ने कैप्टन को पंजाब का सर्वोच्च नेता स्वीकार कर लिया था, लेकिन सिद्धू की बगावत के बाद एक बार फिर पेंच फंस गया है। कमेटी का रुख इस बार कुछ बदला-बदला सा है, क्योंकि हाल में दिल्ली गए कैप्टन की बातों को कमेटी ने ध्यान से सुना तो, लेकिन उन्हें किसी भी मुद्दे पर स्वीकृति नहीं दी गई है।
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ख़बरों के मुताबिक दिल्ली में खड़गे की अध्यक्षता वाली कमेटी के सामने पेशी के दौरान कैप्टन की बातों को खास तवज्जो नहीं दी गई है। कैप्टन ने नवजोत सिंह सिद्धू को किसी तरह का पद देने से इनकार कर दिया है। कैप्टन ने कहा है कि सिद्धू को पार्टी में अलग-थलग किया जाए, अब कैप्टन के लिए दिक्कत की बात ये है कि कमेटी ने सिद्धू को नजरंदाज करने के सुझाव से साफ इनकार कर दिया है। ऐसे में कैप्टन ने कहा है कि जल्द से जल्द इस पार्टी की फूट का समाधान किया जाए, क्योंकि वो बार-बार एक ही मुद्दे पर बात करने दिल्ली नहीं आ सकते हैं। कैप्टन की बातों से साफ है कि वो कांग्रेस के व्यवहार से बेहत आहत हैं और इस अपमान का घूंट और नहीं पी सकते।
इसके इतर पंजाब की इस राजनीति में कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जिन्हें सिद्धू का करीबी माना जाता है। राहुल विधायकों और दर्जन भर मंत्रियों समेत राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ से भी इस फूट को लेकर मुलाकात कर फीडबैक ले रहे हैं। वहीं कैप्टन के इस आहत रुख के बीच पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने टकराव के विषय में कहा है कि पंजाब को लेकर अंतिम फैसला कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सोनिया गांधी ही लेंगी। दूसरी ओर खबरें ये भी हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सोनिया गांधी से मुलाकात का समय मांगा था, लेकिन सोनिया द्वारा समय नहीं दिया गया। कमेटी द्वारा कैप्टन से ये तक कहा गया है कि चुनाव के पहले कांग्रेस ने पंजाब में जो वादे किए थे, जो वो सभी पूरे किए जाएं।
इस पूरे प्रकरण में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बार-बार दिल्ली जाकर आलाकमान को सफाई देने से उनकी ही छवि को नुकसान पहुंच रहा है। ऐसे में सिद्धू को किसी भी तरह की रियायत या पद देने के लिए कैप्टन तैयार नहीं हैं, क्योंकि सिद्धू ने कांग्रेस के कुछ बगावती विधायकों के साथ मिलकर कैप्टन की छवि को बर्बाद करने की कोशिशें की हैं। यही नहीं अब कांग्रेस आलाकमान का पलड़ा भी सिद्धू के पक्ष में ही झुकता दिख रहा है जो कि कैप्टन और आलाकमान के बीच दूरियों को अधिक विस्तार दे सकता है। कैप्टन से कांग्रेस आलाकमान का टकराव पुराना रहा है, और अब सिद्धू की बगावत के जरिए कांग्रेस कैप्टन को ये संकेत देने लगी है कि कैप्टन अगले सीएम उम्मीदवार नहीं होंगे।
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वहीं बात अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह की करें तो पंजाब की राजनीति में उनकी कांग्रेस के लिहाज से एक बड़ी भूमिका है। ऐसे में यदि उन्हें उनके मनमुताबिक पद न मिला तो संभव है कि वो पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं। आम आदमी पार्टी और बीजेपी के धुर विरोधी होने के कारण उनका अन्य किसी राजनीतिक दल में जाना असंभव है। ऐसे में पार्टी से नाखुश कैप्टन संभवतः पार्टी से निकल कर एक बड़ी फूट को अंजाम देते हुए एक नई पार्टी का गठन कर सकते हैं।
यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस खेमे में मची इस बगावत और कैप्टन के रुख के कारण पंजाब में कांग्रेस का राजनीतिक अस्तित्व खत्म हो सकता है। वहीं, कांग्रेस से निकालने के कारण कैप्टन की राजनीतिक हैसियत भी आधी ही हो जाएगी। कैप्टन बनाम सिद्धू और आलाकमान की इस लड़ाई में कांग्रेस की दुर्दशा होनी तय है, क्योंकि इसमें न कैप्टन को फायदा हो न हो पर और कांग्रेस के लिए चुनाव जीतना कठिन हो जायेगा।