SAD से आम जनता की नफरत, AAP का बिखराव और कांग्रेस की आंतरिक कलह, बीजेपी पंजाब में बाजी मारने वाली है

लगता है इस बार पंजाब में BJP की सरकार!

बीजेपी

2022 में प्रस्तावित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव देश की राजनीति में काफी महत्वपूर्ण हैं। वहीं अगर बात बीजेपी की करें तो उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब में से बीजेपी के लिए सबसे महत्वपूर्ण पंजाब को माना जा रहा है। राज्य की राजनीति में इस समय एक अजीबो-गरीब बिखराव है। राजनीतिक पार्टियां जहां जमीनी मुद्दों से इतर अपनी आंतरिक कलहों में उलझी हुई हैं तो दूसरी ओर जातिगत समीकरण भी बिखर चुका है। ऐसे में बीजेपी के लिए पंजाब का चुनावी क्षेत्र किसी खुले मैदान की तरह है, जिसके लिए उसने ताल ठोंकने का ऐलान कर दिया है और इसलिए पार्टी आलाकमान द्वारा प्रत्याशियों के चुनाव को लेकर कवायद शुरू हो गई है।

शिरोमणि अकाली दल के साथ लंबे वक्त के गठबंधन के बाद अब बीजेपी पंजाब में अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुकी है और इसको लेकर पार्टी में मंथन भी शुरू हो चुका है। इसी बीच आई अमर उजाला की रिपोर्ट बताती है कि पंजाब में बीजेपी ने प्रत्याशियों की तलाश के लिए सर्वे करना शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए पंजाब की 117 सीटों पर प्रत्याशियों की खोज के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व द्वारा 12 से अधिक बिंदुओं पर आधारित एक विस्तृत सर्वे कराया जा रहा है। खास बात ये है कि इसकी रिपोर्ट सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी जाएगी।

और पढ़ें- पंजाब 2022: BJP से एक दलित सिख चेहरा पहली बार राज्य का मुख्यमंत्री बनेगा

बीजेपी ने किसी भी तरह के राजनीतिक गठबंधन से इंकार करते हुए सभी 117 सीटों के लिए प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है। खास बात ये भी है कि बीजेपी एक ऐलान पहले ही कर चुकी है कि यदि वो राज्य में बहुमत हासिल करती है तो वो पंजाब को पहला दलित सिख मुख्यमंत्री देगी। आपको बता दें कि पंजाब में दलितों की आबादी करीब 32 फीसदी तक है जिनका रुख किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए जीत और हार का कारण बन सकता है।

पंजाब के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो कैप्टन अमरिंदर के नेतृत्व में चल रही सत्ताधारी कांग्रेस सरकार की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है। नवजोत सिंह सिद्धू से लेकर प्रताप सिंह बाजवा का धड़ा कैप्टन से सीधे टकराव ले रहा है, जिसके चलते पार्टी अंदरखाने ही कई गुटों में बंटी हुई है। नवजोत सिंह सिद्धू लाख कोशिशों के बावजूद कैप्टन से सुलह न करने पर अड़े हैं। सत्ता भले ही अमरिंदर के पास है, लेकिन कांग्रेस की स्थिति पंजाब में डांवाडोल वाली है। नशे के कारोबार से लेकर कोविड मेनेजमेंट में विफलता और गुरु ग्रंथ साहिब के साथ बेअदबी का कोटकपूरा कांड कैप्टन के गले की फांस बन गया है और कांग्रेस के ही कई नेता बगावत करने पर उतर आए हैं।

वहीं बीजेपी से गठबंधन टूटने के कारण जातीय समीकरण को देखते हुए शिरोमणि अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है। अकाली दल के साथ जब भाजपा नंबर दो बन कर शासन कर रही थी और पार्टी को अकालियों की कुनीतियों का सबसे अधिक नुकसान हुआ। ड्रग्स के आरोपों से लेकर बढ़ते अपराध अकालियों पर भारी पड़े और वो 2017 में पंजाब की सत्ता से बाहर हो गए। वहीं 2019 में अकालियों को लोकसभा चुनाव में निराशा ही हाथ लगी। हाल के पंचायत चुनाव में अकालियों का सूपड़ा ही साफ हो गया। अकालियों के प्रति आम जनता की नाराजगी साबित कर रही कि पार्टी का राजनीतिक निर्वासन काफी लंबा है।

इसके इतर पिछले दो तीन चुनावों में आम आदमी पार्टी ने भी पंजाब की राजनीति में अपनी दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन पार्टी को यहां ज्यादा कुछ हाथ नहीं लगा है। इसका नतीजा ये कि पार्टी अब टूट की कगार पर पहुंच गई है। खालिस्तानी गुटों से पार्टी को मिला समर्थन आम आदमी पार्टी की बर्बादी की सबसे बड़ी वजह है। पार्टी को अब पंजाब के राष्ट्रभक्तों ने तो पूर्णतः नकार ही दिया है। वहीं पार्टी के नेता अब अन्य दलों का रुख़ कर रहे हैं, जिससे पार्टी की ताकत बेहद ही कम हो गई है।

और पढ़ें- 2022 में पंजाब जीतेगी BJP ? BJP विरोधी पार्टियां फर्जी विरोध प्रदर्शन को बढ़ावा देकर ये सुनिश्चित कर रहीं

वहीं बात अगर ध्रुवीकरण की करें तो ये तय है कि पंजाब में इन विधानसभा चुनाव में तगड़े स्तर पर ध्रुवीकरण देखने को मिलेगा। पंजाब की दलित आबादी इसके केन्द्र में होगी। यहां अपर सिख और दलित सिखों के बीच कभी तालमेल बन ही नहीं सका है, जिसके चलते दलितों और पिछड़ों को नजरंदाज किया जाता रहा है। दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार की बात करके पहले ही इन दलितों को साधने की प्लानिंग कर ली है। यही कारण है कि दलितों को लुभाने के लिए अकाली दल को बसपा के साथ गठबंधन करना पड़ा। वहीं बीजेपी का कोर वोटर ओबीसी खेमे से आता है। कांग्रेस का पिछले दिनों दलितों के प्रति असभ्य व्यवहार उसके सांसद के जरिए ही सामने आया था। ऐसे में दलित इस बात को अच्छे से जानते हैं कि कौन राजनीति कर रहा है और किसकी मंशा दलितों के उत्थान की है।

वहीं पंजाब में हिंदुओं के वोट बैंक की बात करें तो खालिस्तान की बात उठने पर पंजाब का हिन्दू मुख्य तौर पर बीजेपी के साथ खड़ा हो जाता है। पंजाब का हिन्दू समुदाय आपरेशन ब्लू स्टार के पहले के वक्त को नहीं भूला है, जब खालिस्तानी आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले के नेतृत्व में हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया था। ऐसे में किसान आन्दोलन के दौरान अब जब ख़ालिस्तान का मुद्दा एक फिर उठा है तो कांग्रेस ने इसे नजरंदाज करने की नौटंकी की, जबकि खालिस्तान के प्रति नफरत का संभावित अंजाम बीजेपी के हक में जा सकता है, क्योंकि कांग्रेस भी इस मुद्दे पर निरंकुशता का चोला ओढ़े हैं।

इस पूरे परिदृश्य को देखें तो ये कहा जा सकता है कि पंजाब के राजनीतिक समर में अकालियों के प्रति जनता में नफरत, आप का बिखराव और कांग्रेस की आंतरिक कलह के कारण बीजेपी सभी की फेवरेट हो सकती है। पार्टी के  पास पिछला कोई राजनीतिक दबाव नहीं है। ऐसे में उसके लिए पंजाब की राजनीतिक जमीन एक खुला खेत है जिसमें उसकी सफल राजनीतिक फसल पैदा हो सकती है।

Exit mobile version