जिनपिंग चीनी अर्थव्यवस्था की बर्बादी का शंखनाद कर रहे हैं, इसका परिणाम घातक साबित होगा

चीनी अर्थव्यवस्था का हाल बेहाल है!

चीनी अर्थव्यवस्था

चीनी अर्थव्यवस्था बर्बादी के मुहाने पर आन खड़ी हुई है। NPA, bad debt, अनियमित बाज़ार, गिरता विदेशी मुद्रा भंडार और बाज़ार में हस्तक्षेप करने वाली सरकार के कारण चीन की इकॉनमी बर्बादी की कगार पर आ पहुंची है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों के कारण चीनी इकॉनमी का यह हाल हुआ है। जिनपिंग की नीतियां, कोरोना महामारी और चीन के खिलाफ वैश्विक आर्थिक अभियान के कारण चीनी अर्थव्यवस्था इस स्थिति में पहुंची है।

चीन का विदेशी मुद्रा भंडार अभी 3.1 ट्रिलियन डॉलर है और इसमें लगातार गिरावट देखी जा रही है। अप्रैल में इसमें 0.89 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गयी, लेकिन मार्च में इसमें 1.09 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी थी। हालांकि, ये तो आधिकारिक आंकड़े हैं जिनपर विश्वास करना बेवकूफी ही कही जाएगी। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि चीन में स्थिति उससे ज़्यादा भयावह है जो सार्वजनिक तौर पर देखने को मिल सकता है।

दुनियाभर में विफल होते Belt and Road Initiative प्रोजेक्ट्स के कारण और चीन के कम exports के कारण चीन का विदेशी मुद्रा भंडार कम होता जा रहा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार ही चीन का विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 2014 के 4 ट्रिलियन के आंकड़े से कम होकर 3.2 ट्रिलियन डॉलर तक आ पहुंचा है। स्पष्ट है कि चीन में आर्थिक स्थिति बेहद भयावह है।

चीन में बेहद गंभीर कर्ज़ संकट भी उभरता जा रहा है। कंपनियां बड़े-बड़े लोन लेकर Default करती जा रही हैं, जिसके कारण बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों की हालत भी नाज़ुक होती जा रही है। चीन के वित्तीय बाज़ार की ऐसी हालत देखकर निवेशक भी अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं और इसी कारण स्टॉक मार्केट में भी गिरावट देखने को मिल रही है।

चीनी कंपनियों पर कर्ज़ के कारण खर्चा भी बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2023 तक करीब 2.14 ट्रिलियन की कीमत के bonds mature होने जा रहे हैं। इनमें से 60 प्रतिशत ऐसे bonds हैं जिन्हें वर्ष 2018 से लेकर वर्ष 2020 के दौरान जारी किया गया था। चीन में अब सरकारी कर्ज़ GDP के 45.6 प्रतिशत के स्तर तक पहुँच गया है। इन आंकड़ों को देखकर निवेशक ज़रूर चीनी बाज़ार से दूर भाग रहे हैं।

TFIpost.in पर हम अपनी कवरेज में यह बता चुके हैं कि किस प्रकार Danke और Kingold जैसे मामलों ने चीन के वित्तीय बाज़ार की सीमाओं को जगजाहिर किया है। इनके कारण भी निवेशकों का चीनी बाज़ार पर भरोसा बेहद कम हुआ है।

चीन में IPOs भी लगातार crash होते जा रहे हैं। चीनी सरकार लगातार stock market में हस्तक्षेप कर बाज़ार को अस्थिर करती जा रही है, जिसके कारण निवेशक बाज़ार से भाग रहे हैं। इसके साथ ही चीनी सरकार जिस प्रकार Fintech सेक्टर पर अधिक नियंत्रण पाने के लिए अधिक सख्त कानून लेकर आ रही है, उसके कारण भी बाज़ार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसी का नतीजा है कि फरवरी के मुक़ाबले चीन की टॉप 10 IT और हाई-टेक कंपनियों की market value में 800 बिलियन की कमी देखी गयी है।

चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच जारी trade war ने भी चीन पर अच्छा-खासा प्रभाव डाला है। ऑस्ट्रेलिया से आयात होने वाले कच्चे माल जैसे Iron ore, copper और crude oil की कीमतें आसमान छू रही है, जिसके कारण चीन का धातु उद्योग भी संकट में पहुँच चुका है। अब रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन साल की दूसरी छमाही में धातु उद्योग में हस्तक्षेप कर कीमतों को कम करने के प्रयास कर सकता है।

स्पष्ट है कि चीन इस वक्त भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहा है। शी जिनपिंग की घरेलू राजनीति और सत्ता पर अपनी पकड़ बेहद मजबूत करने की कोशिश ने चीनी अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर छोड़ दिया है। अब उनके कारनामों का प्रभाव और ज़्यादा खुलकर सामने आने लगे हैं।

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