नक्सलवाद का जहर धीरे-धीरे देश से ख़त्म हो रहा है, लेकिन पुराने मामले जब ज़हन में आते हैं तो रूह कांप उठती है। बिहार का सेनारी कांड कौन भूल सकता है ? कौन भूल सकता है जब 1999 में सवर्ण जाति के 34 लोगों को गला रेतकर मार दिया गया ?
इस जघन्य हत्याकांड (सेनारी कांड) मामले में निचली अदालत के फैसले में तो आरोपियों को फांसी से लेकर उम्रकैद तक की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। ऐसे मे अब बिहार सरकार की याचिका को स्वीकृति देते हुए मामले का संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने लिया है जोकि सेनारी कांड के आरोपियों के लिए मुसीबत बनने वाला है।
दरअसल, बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर मांग की थी कि जिन 13 आरोपियों को हाईकोर्ट ने बरी किया था, उन सभी को मामले का निपटारा होने तक आत्मसमर्पण करने के लिए कहा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सहमति जताते हुए याचिका को स्वीकृति दे दी है। जातीय हिंसा के चलते सवर्ण समाज के लोगों पर हमला करने वाले आरोपियों पर दोबारा से केस चलेगा।
1999 में बिहार के सेनारी में सवर्ण समाज के लोगों को माओवादियों ने मार डाला था। सामुदायिक भवन के पास मारे गए इन लोगों को लेकर लंबा केस चला। निचली अदालत ने इस मामले में 10 आरोपियों को फांसी और 3 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बाद में जब य सेनारी कांड मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया।
आरोपियों को छोड़ने का कारण पर्याप्त सबूत न होना बताया गया। 22 मई के हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में जब सेनारी कांड मामला पहुंचा तो भूमिहार समुदाय के लोगों की मौत से जुड़े इस केस की सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सहमति दे दी है।
गौरतलब है कि सेनारी कांड केस से जुड़े करीब 70 आरोपियों में से 4 की मौत हो चुकी है। वहीं, कई गवाहों की भी मौत हो चुकी है। ऐसा ही एक नाम चिंता देवी का भी है। चिंता देवी के बयान के आधार पर ही गांव के 50 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था। लंबे चले इस केस के दौरान ही गवाह चिंता देवी की मौत हो गई थी। खास बात ये है कि सेनारी कांड केस से जुड़ी एफआईआर में मारे गए लोगों के परिजनों ने पुलिस के सामने आरोपियों का नाम लिया था।
और पढ़ें- सुशासन के 15 साल, फिर भी नीति आयोग की लिस्ट में बिहार आखिरी पायदान पर है
अब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ के अंतर्गत होगी। इस केस में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुनवाई करने को सुप्रीम कोर्ट तैयार तो हो गया है लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती बिहार सरकार के सामने होगी क्योंकि उसे सबूतों के आधार पर आरोपियों को सजा दिलानी होगी।