जातीय गणित के आधार पर राजनीति की बिसात बिछाना राजनीतिक दलों की एक आदत बन गई है। अगर बात उत्तर प्रदेश के चुनावों से संबंधित हो, तो ये मामला अधिक पेचीदा हो जाता है। इसी बीच अलग-अलग पार्टियों के साथ गठबंधन करने वाले सुहेलदेव समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने विधानसभा चुनाव के लिए एक भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया है, और मोर्चे के CM को लेकर एक अजीबो-गरीब फॉर्मूला दिया है। उनके फॉर्मूले के मुताबिक राज्य में 5 साल में 5 मुख्यमंत्री और 20 डिप्टी CM बन जाएंगे, जातीय गणित को सुलझाने की कोशिश में राजभर द्वारा सुझाया गया ये फॉर्मूला काफी हास्यासपद प्रतीत होता है, इस फॉर्मूले की बंदरबाट को लेकर राजभर समर्थक भी सोच में पड़ सकते हैं कि, उन्हें समर्थन दें या नहीं।
सुहेलदेव समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर NDA और CM योगी से नाराज होने के कारण सत्ता से तो बाहर हो ही चुके हैं लेकिन उन्होंने फिर से सत्ता हासिल करने की कोशिशें शुरु कर दी हैं। UP में 2022 के विधानसभा चुनावों में अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए राजभर ने दस से अधिक छोटे दलों का एक गठबंधन तैयार किया है जिसे भागीदारी संकल्प मोर्चे का नाम दिया गया है। खास बात ये है कि इस गंठबंधन में लोकसभा सांसद असदद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को भी शामिल किया गया है। राजभर ने एक फार्मूला दिया है, जिसके मुताबिक राज्य में 5 साल में करीब 5 मुख्यमंत्री अलग-अलग जाति-धर्म से शामिल किए जाएंगे।
ओम प्रकाश राजभर ने अपने इस मोर्चे के जरिए BJP को हराने की प्लानिंग की है और उनका गणित पुराने जातीय गणित के आधार पर ही है, जो इस बात का प्रमाण है कि, राजभर 2014 के बाद से बदले BJP के वोट बैंक से पूर्णतः अनजान ही हैं। उन्होंने कहा, “मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि गरीबों और दलितों के बीच हर प्रमुख जाति समूह को सत्ता में हिस्सा मिले। मुझे खुद सभी पदों पर रहने और दूसरों को वंचित करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।” उनका ये बयान दिखाता है कि वो खुद को किस हद तक दलितों और पिछड़ों का हितैषी मानते हैं।
इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री पद को छोड़ने के प्रकरण की तुलना, ओम प्रकाश राजभर ने भीम राव अंबेडकर से कर डाली। उन्होंने कहा, “बाबासाहेब अम्बेडकर के बाद, मैं कैबिनेट मंत्री के रूप में इस्तीफा देने वाला दूसरा व्यक्ति हूं। लोग विधायक, सांसद या मंत्री बनने के लिए चुनाव लड़ते हैं, लेकिन मैं गरीबों के अधिकारों के लिए सत्ता में रहते हुए भी मुख्यमंत्री के साथ लड़ता रहा।”
उनके इस बयान के आधार पर कहा जा सकता है कि, उनके लिए UP विधानसभा चुनाव में जातिय गणित महत्वपूर्ण होने वाला है। 2017 में उन्होंने NDA के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था, और जीत के बाद उन्हें मंत्री पद भी मिला लेकिन बगावतों का नतीजा ये हुआ कि राजभर को गठबंधन में ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। ऐसे में इस्तीफा देने के बाद राजभर अब नए चुनावों के लिए दस पार्टियों के साथ गठबंधन कर सामने आए हैं जिसके अंतर्गत CM और सत्ता के बंटवारे का फॉर्मूला ऐसा है, जो कि न केवल हास्यासपद है अपितु स्पष्ट उदाहरण भी है कि खिचड़ी प्रवृत्ति के ऐसे गठबंधन की पार्टियां सरकार में आने पर कैसे एक-एक मंत्री पद और विभाग के लिए बंदरबाट करेंगे।
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ओवैसी और ओम प्रकाश राजभर समेत अनेक दलों का ये गठबंधन और सत्ता की बंदरबाट के फार्मूले में 5 सीएम और 10 डीप्टी सीएम का मुद्दा जाहिर करता है कि इनकी प्लानिंग जनहित से ज्यादा निजी हितों की हैं। वहीं जनाधार की बात करें तो राजभर का पूर्वांचल के इलाकों में ठीक-ठीक जनधार तो है लेकिन बीजेपी के आगे राजभर की सारी चमक फीकी पड़ जाती है। इसके अलावा इस गठबंधन के एक और साथी ओवैसी की पार्टी भी कुछ खास जनधार नहीं रखती हैं,यद्यपि उनके आने से UP के मुस्लिम समुदाय का वोट बैंक बंट सकता है जो कि सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों के लिए दिक्कतों का सबब होगा।