‘भटका हुआ नौजवान’ नहीं बल्कि आतंकियों को आतंकी बताती है अक्षय खन्ना की फिल्म ‘स्टेट ऑफ़ सीज़’

'स्टेट ऑफ सीज़' – वह फिल्म जो आतंकियों का महिमामंडन नहीं करती!

स्टेट ऑफ सीज़

‘स्टेट ऑफ सीज़ – द टेम्पल अटैक

अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमलों पर आधारित ‘स्टेट ऑफ सीज़ – द टेम्पल अटैक’ नामक यह फिल्म केन घोष द्वारा निर्देशित है, जिसमें मुख्य भूमिका में है अक्षय खन्ना, और उनका साथ दिया है गौतम रोड़े, मंजरी फड़नीस, मीर सरवर जैसे कलाकारों ने। ये कहानी है अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमलों के बारे में, जिसे कथित तौर पर आतंकियों ने 2002 के गुजरात दंगों के बदले के तौर पर किया था। कैसे एनएसजी इस मामले को अपने हाथों में लेती है और कैसे इन क्रूर, दुर्दांत आतंकियों का सर्वनाश होता है, ये फिल्म इसी पर आधारित है। इसे आप ज़ी 5 प्लेटफ़ॉर्म पर देख सकते हैं।

ऐसे अवसरों पर दो ही प्रकार की फिल्में बनती थी। या तो वे हमें आतंकियों के प्रति सहानुभूति महसूस कराने पर मजबूर करती है, या फिर वह इतनी बकवास होती है, कि अगर कुछ अच्छा भी होगा, तो लोग उसे देखना ही नहीं चाहेंगे। लेकिन सौभाग्य से ‘स्टेट ऑफ सीज’ इन दोनों ही श्रेणियों में नहीं आती। यदि इसे थोड़ा बेहतर तरीके से बनाते, तो यह ‘उरी’ जितनी भयंकर भी हो सकती थी।

यह फिल्म उन चंद फिल्मों में शामिल है, जो आतंकियों का महिमामंडन नहीं करती। आतंकी जैसे है, उन्हें वैसे ही दिखाया गया है – धर्मांध, निकृष्ट और क्रूर। आतंकियों के पंजाबी लहजे पर विशेष ध्यान दिया गया है, जो इस फिल्म की एक और खूबी है। यहाँ पर किसी भी तरह से हमें आतंकियों के कृत्यों के लिए शर्मिंदा महसूस करने के लिए विवश नहीं किया गया है।

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अभिनय और साउंड डिजाइन शानदार तो, स्पेशल इफेक्ट्स में कुछ खामियां दिखी

सर्वप्रथम तो इस फिल्म के साउन्ड डिजाइन और इसके नैरेटिव के लिए इसकी तारीफ करनी बनती है। ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर बनी फिल्में आपको अंतिम सेकेंड तक भावनात्मक रूप से जोड़े रखती है और स्टेट ऑफ सीज़ ने भी यही किया है। इसमें कई ऐसे दृश्य हैं, जहां पर आप भावनात्मक रूप से पीड़ितों से जुड़ाव महसूस करेंगे और आतंकियों के कुकृत्यों पे आपका खून खौलेगा।

 

बात करें अभिनय की, तो अधिकतर लोगों ने अपने काम के साथ न्याय करने का प्रयास किया है, परंतु जो अपने रोल में सबसे ज्यादा जंचे हैं, वे है अक्षय खन्ना। एनएसजी कमांडर के रोल में उन्होंने सिद्ध किया है कि वे क्यों ऐसे धीर गंभीर रोल में सर्वथा उचित माने जाते हैं। आमतौर पर वंशवादी अभिनेता अधिकतर अयोग्य माने जाते हैं, परंतु अक्षय खन्ना इसका अपवाद रहे हैं और एक बार फिर इन्होंने सिद्ध किया है कि क्यों वे एक उत्कृष्ट अभिनेता हैं, जिन्हें उचित अवसर नहीं मिले।

लेकिन इस फिल्म की कुछ कमियाँ भी है, जिसके कारण यह एक बेहतरीन फिल्म बनते बनते रह गई। कुछ दृश्यों में यह फिल्म दर्शकों को अपने साथ नहीं जोड़ पाई। तकनीकी रूप से यह फिल्म अजीबोगरीब लगी और इसके स्पेशल इफेक्ट भी बेढंगे से लगे, लेकिन इन खामियों को नजरअंदाज करे, तो धीरे धीरे ही सही, पर बदलाव हो रहा है। अब OTT जगत पर भी दमदार फिल्मों को बढ़ावा दिया जा रहा है, और स्टेट ऑफ सीज़ इसी का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

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TFI की ओर से  इसे मिलने चाहिए 5 में से 3.5 स्टार।

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