यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय साजिश शुरू हो गई है

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव

साल 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को 2024 लोकसभा चुनाव से पहले होने वाला सेमी- फ़ाइनल मैच भी कहा जा रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो, दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होते हुए जाता है। अगर भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है तो, लोकसभा चुनाव पार्टी के लिए चुनौतियां खड़ी कर सकता है। मोदी सरकार जिस तर्ज पर काम कर रही है, उससे यह अनुमान लगाना आसान हो गया है कि,  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाई गई क्रांतिकारी नीतियां देश व विदेश में बैठे भारत- विरोधी संगठनों के गले के नीचे नहीं उतर रहा है। ऐसे में उन सभी के पास एकमात्र रास्ता बचता है, मोदी सरकार को सत्ता से हटाना, जिसके लिए पहले उन्हें लखनऊ से योगी आदित्यनाथ को हटाना पड़ेगा।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भारतीय राजनीतिक पार्टियों के साथ विदेश में बैठे भारत- विरोधी शक्तियों के लिए भी अहम है। भारत के विपक्षी दलों के साथ मिलकर विदेशी शक्तियां भी भारतीय जनता पार्टी को हराना चाहती हैं। इस कवयाद की पहली नींव पेगासस मामले के साथ रख दी गई है। इस मामले के बारे में विस्तृत विश्लेषण हम हाल ही में बीते क्रोनोलॉजी के माध्यम से करेंगे।

सबसे पहले हम पेगासस स्पाइवेयर की टाइमिंग पर बात करें, तो यह बिल्कुल मॉनसून सत्र से पहले आया है ताकि इस मसले पर विपक्ष सरकार को संसद में घेर सके। इसका उद्देश्य संसद में बखेड़ा खड़ा करना था जिसमें विपक्ष बहुत हद तक सफल भी रहा है। संसद दो दिनों से स्थगित चल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आग्रह करने के बावजूद कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ संसद की कार्यवाही को प्रभावित कर रही है। इस अनावश्यक हंगामे के पीछे मुख्य तौर पर 2-3 कारण हो सकते हैं, पहला तो यह कि इस मॉनसून सत्र में भारत सरकार कई अहम कानून लाने वाली है। ऐसा कानून जो कि विदेश में बैठे भारत विरोधी तत्वों को नुकसान पहुंचा सकता है, जैसे कि- पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल।

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यह कानून पारित होने के बाद सोशल मीडिया कंपनिया जो कि भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने में आगे रही हैं, उनपर लगाम कसना आसान हो जाएगा। जाहिर सी बात है कि यह मल्टी नेशनल कंपनियां भारत सरकार द्वारा लाए जा रहे इस कानून को पारित होने में अड़चनें पैदा करेंगी। ऐसे में संभवतः यह कंपनियां विपक्षी दलों के साथ मिलकर पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल कानून को पारित होने से रोकने की कोशिश कर सकती हैं। इससे विपक्ष को यह फायदा होगा कि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले नकरात्म्क माहौल बना सकती है और सोशल मीडिया कंपनियाों के पास कानून से बचने के लिए अगले संसद सत्र तक का समय मिल सकता है। इससे स्पष्ट हो रहा है कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ मिलकर विदेशी शक्तियों के शह पर काम  कर रहा है।

आपको बता दें कि कथित पेगासस लिस्ट सबसे पहले फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल के पास आई थी, उसके बाद दोनों संस्थानों ने अन्य मीडिया संसथानों को दिया है। भारत मे यह लिस्ट सबसे पहले The Wire के हाथ लगी है। फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल दोनों ही संस्थाएं भारत विरोधी एजेंडा फैलाने के लिए चर्चा में रही हैं। साल 2020 में एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनेकों बैंक खातों को भारत सरकार ने बंद कर दिया था। आरोप था कि एमनेस्टी इंटरनेशनल गैर- कानूनी तरीके से भारत- विरोधी तत्वों को बढ़वा देने के लिए पैसों का लेन-देन कर रहा था।  इससे बौखला कर एमनेस्टी इंटरनेशनल भारत से अपना बोरिया बिस्तर बांध कर चला गया था। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत सरकार पर ‘witch-hunt’ का आरोप लगाया था। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने विपक्षी दलों और लेफ्ट पत्रकारों के साथ मिलकर भारत सरकार के खिलाफ बदले की भावना से षड्यंत्र रचा हों।

यकीनन यही कारण है कि, विपक्षी दलों और वामपंथी पत्रकारों के पास इसकी जानकारी पहले से थी। गौरतलब है कि जब एमनेस्टी इंटरनेशनल भारत में काम करता था, तब वामपंथी मीडिया और कांग्रेसी नेताओं से उसको संरक्षण प्राप्त था। ऐसे में प्रतिदान (quid pro quo) के आसार ज्यादा है।

हाल ही में आई कथित NSO की कथित रिपोर्ट में यूरोपियन देशों के नाम भी सुमार है, लेकिन भारतीय मीडिया ने उसको चालाकी से तोड़ मरोड़ कर  केवल उन्हीं देशों का नाम प्रकाशित किया है, जहां पर लोकतंत्र नहीं है। भारत को भी उन्हीं देशों की फेहरिस्त में रखा गया है। यह हर पैमाने पर भारत को बदनाम करने की साजिश दिखाई देती है। The Guardian ने अपनी रिपोर्ट में यूरोपियन देशों के बारे में भी लिखा है, पर The Wire ने ऐसा नहीं किया।

ऐसा इसलिए ताकि चुनाव जो कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी निशानी है और उसके इर्द-गिर्द अगर ‘लोकतंत्र को खतरा’ के मुद्दे का अलाप करते हैं तो बेशक चुनाव में इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।

कथित रिपोर्ट में सबसे गौर करने वाली बात यह है कि उसमें मोदी सरकार के विरोधियों का नाम सबसे ज्यादा शुमार है। इसके पीछे का कारण यह है कि विपक्षी दल और वामपंथी जनता तक यह संदेश पहुचानें की कोशिश कर रही है कि, भारत सरकार राजनेताओं के पर नजर रख रही है। ऐसा करने से जनता के मन में सरकार के प्रति विश्वास कम होगा, जिसका सीधा फायदा विपक्ष को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा। बता दें कि रिपोर्ट में राहुल गांधी, इमरान खान, प्रशांत किशोर और अभिषेक बनर्जी जैसे नेताओं के नाम हैं।

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अब अगर हम बात करें जासूसी की तो, कांग्रेस पार्टी ऐसे मामले में अव्वल है। ऐसा हम नहीं, बल्कि राजस्थान के मुख्यमंत्री व कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत ने खुद स्वीकारा है। अशोक गहलोत ने यह माना था कि,  उन्होनें अपने विधायकों के फोन टैप करवाए थे। खैर, कांग्रेस पार्टी का जासूसी से पुराना नाता है। इंडिया टुडे में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2013 की एक RTI ने दावा किया था कि UPA सरकार प्रतिमाह 9000 मोबाइल फोन  और 500 ईमेल में ताक-झांक यानि जासूसी करता था। आज विडंबना देखिये कि जो कांग्रेस पार्टी दशकों से गैर- कानूनी रूप से जासूसी करती आ रही है, वह आज भाजपा पर इल्ज़ाम लगा रही है।

इससे स्पष्ट होता है कि ,उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले  कांग्रेस अन्य विपक्षी दलों और विदेशी शक्तियों की मदद से मिलकर सुनयोजित तौर पर  मुहिम चला रही है, जबकि सच यह है कि कांग्रेस और विपक्ष की ये चाल भी उनके बाकी एजेंडों की तरह धव्स्त हो गया है और विपक्षी दलों को एक बार फिर से करारी हार मिल सकती  है।

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