हाल ही में, संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने जा रहा है। उससे कुछ ही दिन पहले एक अहम निर्णय में भाजपा ने कद्दावर नेता और वर्तमान वाणिज्य एवं वस्त्र मंत्री पीयूष गोयल को राज्यसभा में नेता सदन के तौर पर चयनित किया है। ये न केवल एक बहुमूल्य निर्णय है, बल्कि PM मोदी द्वारा दिवंगत नेता अरुण जेटली की विरासत के प्रति एक अनूठी श्रद्धांजलि भी है।
वो कैसे? इसके पीछे कई कारण है, जिनके बारे में विस्तार से चर्चा की जाएगी। एक समय इसी पद पर अरुण जेटली भी बैठते थे, और विपक्ष के नेताओं को अपने व्यंग्य बाण और तर्कों से धाराशायी कर देते थे। ऐसे में आना वाला समय राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, और ऐसे में हर सदन में ऐसे नेता की आवश्यकता पड़ेगी, जो विपक्ष के हर कुतर्क का जवाब बिना किसी भय और बिना आवेश में आए जवाब देने में सक्षम हो सके।
इस काम में पहले भाजपा के पूर्व वित्त मंत्री और नेता सदन राज्यसभा अरुण जेटली बेहद निपुण थे। वे एक प्रखर अधिवक्ता भी थे, जिसके कारण उनके वक्तव्य पर कोई संदेह नहीं कर सकता था। हालांकि, उनके असामयिक निधन के बाद से भाजपा को ऐसे नेता की कमी महसूस होने लगी थी परंतु उनके अनाधिकारिक शिष्य पीयूष गोयल ने ये कमी पूरी कर दी है।
पीयूष गोयल स्वयं अधिवक्ता रह चुके हैं, और अरुण जेटली की तरह उन्हें लोगों के साथ सामंजस्य बिठाना बहुत अच्छी तरह आता है। ये 2019 में स्पष्ट तौर पर दिखा था, जब उन्होंने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को सफलतापूर्वक पारित कराया था। इसके पारित होने पर लोगों को संदेह था, पर आश्चर्यजनक रूप से विपक्ष की कई पार्टियों, विशेषकर YSR काँग्रेस, बहुजन समाज पार्टी इत्यादि ने इसका समर्थन भी किया। यहाँ तक कि तीन तलाक का विधेयक पारित करवाने में भी पीयूष गोयल सहायक बने।
इसके अलावा पीयूष गोयल ने पहले ऊर्जा मंत्री, फिर कोयला मंत्री और फिर रेलवे मंत्री के तौर पर अपने मंत्रालयों का कायाकल्प करने में एक अहम भूमिका भी निभाई है। उन्होंने जहां भी कदम रखा है, उस मंत्रालय का कायाकल्प कर दिया है। इसका एक प्रमाण आप इसी से समझ सकते हैं कि जैसे ही उन्हें कपड़ा मंत्रालय सौंप दिया गया, कई कपड़ों के मटेरियल के स्टॉक्स आसमान छूने लगे।
ऐसे में पीयूष गोयल को राज्यसभा में नेता सदन के तौर पर भाजपा द्वारा नियुक्त किया जाना, न केवल भाजपा के लिए सोने पर सुहागा है, बल्कि विपक्ष के लिए बेहद ही दुखदायी खबर है, जो इस आस में लगे हुए थे कि अब उन्हे संसद के कामकाज में टांग अड़ाने का मौका मिलेगा।