महामारी के समय में भी उद्धव उर्दू भाषा का प्रचार करने में व्यस्त हैं

महाराष्ट्र उर्दू

(PC: Media Vigil)

महाराष्ट्र में जब से महाविकास अघाड़ी की नेतृत्व वाली सरकार बनी है तब से राज्य में दो तरह की विचारधाराओं मिश्रण देखने को मिल रहा है। एक तरफ जहां शिवसेना अपने आप को बड़ी हिन्दूवादी पार्टी दिखाने की कोशिश कर रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस और एनसीपी  मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठाओं को पार कर रहे हैं। इसी बीच अब उद्धव सरकार ने ऐलान किया है कि महाराष्ट्र में उर्दू भाषा को विस्तार देने के लिए राज्य के 5 महत्वपूर्ण जगहों पर उर्दू हाउस बनाने का फैसला किया है, जिसका अनुमानित बजट करीब 30 करोड़ रुपए है। उद्धव सरकार का ये फैसला दिखाता है कि उद्धव सरकार कोरोना के मुश्किल वक्त में भी तुष्टीकरण की नीति से बाज नहीं आ रही है।

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 महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार के फैसलों में अब ये दिखने लगा है कि कांग्रेस एनसीपी जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन के बाद शिवसेना का हिन्दुत्ववादी एजेंडा काफी ढीला पड़ा है। वहीं, कुछ फैसलों से तो ये भी प्रतीत होने लगा है कि शिवसेना भी अब मुस्लिम समुदाय के तुष्टीकरण की ओर बढ़ रही है। ताजा मामले की बात करें तो महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक मंत्री नवाब मलिक ने ऐलान किया है कि वो अब मराठी की तरह ही उर्दू को विस्तार देने के लिए सरकार की तरफ से महाराष्ट्र में 5 उर्दू हाउस खोले जाएंगे, जिसका सारा खर्च सरकार द्वारा ही किया जाएगा।

नवाब मलिक ने अपने वक्तव्य में कहा कि मराठी और उर्दू के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए राज्य में 5 उर्दू हाउस खोलने का फैसला किया गया है। खास बात ये भी है कि नादेड़ में ऐसा एक हाउस बनकर तैयार भी हो चुका है जिसके लिए सरकार द्वारा करीब 8.16 करोड़ रुपए का खर्च किए गए हैं। उन्होंने बताया है कि सोलापुर और मालेगांव में भी उर्दू हाउस का काम लगभग हो चुका है, जिनका अब केवल उद्घाटन करना ही बाकी है। मलिक ने बताया कि मुंबई यूनिवर्सिटी के पास कलीना इलाके में भी एक उर्दू हाउस बनाने का प्रस्ताव भी सरकार के पास भेजा गया है।

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खबरों के मुताबिक इस उर्दू हाउस में उर्दू की विशेष लाइब्रेरी के साथ ही मराठी, उर्दू, हिन्दी भाषा के अखबारों के अलावा उर्दू की किताबें भी संग्रहित की जाएंगी। साफ है कि इसके जरिए मुस्लिम समाज के लोगों का तुष्टीकरण करने की प्लानिंग की गई है। महाराष्ट्र देश का एक मात्र ऐसा प्रदेश है जहां शायद अभी कोरोना की पहली लहर का ही अंत नहीं हुआ है। यहां आज भी अस्पतालों के बेड के लिए दिक्कतें आ रही हैं। ऐसे वक्त के भी उद्धव ठाकरे को मुस्लिम तुष्टीकरण सूझ रही है जो कि एक आलोचनात्मक फैसला प्रतीत होता है।

 

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