देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस की शैली बन गई है कि वो अब नेतृत्व नहीं, अपितु अनुसरण करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत के पीछे जो नीतियां हैं, पहले तो कांग्रेस ने उसका अनुसरण करने की कोशिश की; किन्तु जब सफलता नहीं मिली, तो अब कांग्रेस पश्चिम बंगाल के क्षेत्रीय दल अर्थात तृणमूल कांग्रेस के जीत के फॉर्मूले पर चलने लगी है। कांग्रेस के इस परिवर्तन का संकेत उसके सांसदों के संसद सत्र के दौरान अपनाए गए व्यवहार से मिलता है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने अराजकता और हिंसा के दम पर ही राजनीतिक पकड़ मजबूत की है, और कांग्रेस उसके व्यवहार को अपनाते हुए दिल्ली और पूरे देश में हिंसा का तांडव करने की योजना बना रही हैं।
पेगासस मुद्दे पर जिस प्रकार से कांग्रेस और टीएमसी ने संसद की कार्यवाही बाधित कर रखी है, वो स्पष्ट करता है कांग्रेस और टीएमसी की अराजकतावादी नीतियों के जरिए राष्ट्रीय स्तर पर बंगाल की तरह अस्थिरता पैदा कर सकती है।
अभी कुछ दिन ही बीते हैं, जब राज्यसभा में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के संबोधन के बीच टीएमसी सांसद शांतनु सेन ने उनके दस्तावेज छीनकर सदन में ही फाड़कर फेंक दिए थे। उन्हें उपराष्ट्रपति और सदन के सभापति वेंकैया नायडू ने कार्रवाई करते हुए पूरे सत्र के लिए निलंबित भी कर दिया, परंतु इससे अन्य सांसदों ने कोई सीख नहीं ली है।
लोकसभा हो या राज्यसभा विपक्षी सांसद प्रतिदिन सदन में हंगामा कर सदन को स्थगित कराने की नीति से जाते हैं। इस अराजकता की पराकाष्ठा तो तब हो गई जब लोकसभा में पेगासस के मुद्दे पर 14 विपक्षी दल के सांसद सदन में दस्तावेज फाड़कर स्पीकर की तरफ उछालने लगे। महत्वपूर्ण बात ये है कि इस विरोध में सबसे अधिक अराजकता कांग्रेस और टीएमसी के सांसद ही कर रहे हैं।
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ये सभी सांसद सदन के अंदर पर्चे फाड़ने के साथ ही ‘खेला होबे’ का नारा लगा रहे थे। ध्यान देने वाली बात ये है कि ‘खेला होबे’ वही नारा है; जिसके दम पर पहले बंगाल में टीएमसी ने ममता बनर्जी के नेतृत्व में चुनाव जीता और फिर जीत के बाद राज्य में हिंसा का तांडव करने वालों को पर्दे के पीछे से सहयोग दिया। ऐसे में दोबारा संसद में ये नारा लगना प्रतिबिंबित करता है कि अब बंगाल की ‘खेला होबे’ वाली अराजकता दिल्ली में लाने की तैयारी है।
सांसदों की इस अराजकता को लेकर केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा, “विपक्ष ने लोकतंत्र की मर्यादाएं तोड़ी हैं। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सांसद लगातार संसद की मर्यादाएं तोड़ रहे हैं। विपक्ष आखिर चर्चा से क्यों भाग रहा है. सदन में हर विषय पर चर्चा जरूरी है।”
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में ममता की जीत के बाद से ही कांग्रेस ममता को लुभाने की कोशिश कर रही है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की जो स्थिति है, वो पार्टी को गर्त में ले जा रही है। इसके चलते कांग्रेस, टीएमसी से सांठ-गांठ के माध्यम से पीएम मोदी के विरुद्ध 2024 लोकसभा चुनावों के लिए रणनीति बनाने में लगी है।
इसका स्पष्ट संकेत कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी का ममता बनर्जी से मिलना है। दोनों ही दल अभी से वो सपने देखने लगें हैं, जिनके साकार होने की संभावनाएं कठिन हैं। इसका एक बड़ा कारण ये है कि चुनाव आते-आते सभी छोटे दल निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को वरीयता देने लगते हैं, जिसके चलते साल 2019 में भी कोई महागठबंधन नहीं बन सका।
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कांग्रेस की सोच है कि जैसे ममता को हिंसा के दम पर बंगाल में जीत मिली, ठीक उसी भांति अब वो भी हिंसा के दम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए हिंसात्मक रण तैयार करेगी, जिसमें टीएमसी के नेता उसका पूरा साथ देंगे। चिन्ताजनक बात ये है कि कांग्रेस ने अपनी ये रणनीति संसद से ही शुरू की है, जहां टीएमसी के सांसदों के साथ मिलकर उसके नेता भी ‘खेला होबे’ का नारा लगा रहे हैं; एवं जब सदन की कार्यवाही अराजकता के कारण स्थगित करनी पड़ती है, तो ये सभी बाहर आकर चर्चा की मांग का ढोंग करने लगते हैं।
इन विपक्षी सांसदों को निश्चित ही ये ज्ञात नहीं है कि उनके क्रियाकलाप संसद टीवी के कैमरों के माध्यम से आम जनता को भी दिखते हैं, और अब देश की जनता ये समझ चुकी है कि आखिर कांग्रेस ममता बनर्जी से करीबी क्यों बढ़ा रही है, क्योंकि उसकी योजना 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव की हिंसा का तांडव, 2024 लोकसभा चुनाव के लिए दिल्ली और पूरे देश में फैलाने की है।