ममता बनर्जी का नया फरमान : खेला होबे दिवस
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भारत की ऐसी पहली मुख्यमंत्री होंगी जो हिंसा का जश्न मनाती हैं जिस दिन हजारों लोगों को सिर्फ इसलिए पीटा गया क्योंकि उन्होंने अपनी मर्जी से वोट दिया था। ममता बनर्जी ने ऐलान किया है कि बंगाल में अब हर साल ‘खेला होबे’ दिवस मनाया जाएगा।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को समाप्त हुए 2 महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है, पर आज भी बीजेपी और टीएमसी के बीच तकरार जारी है। इस तकरार को आगे बढ़ाते हुए अब ममता बनर्जी ने फरमान जारी किया है कि राज्य में अब हर वर्ष ‘खेला होबे’ दिवस मनाया जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि “खेला होबे’ नारे के सहारे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव जीता था।
ममता बनर्जी ने सदन में अपने भाषण में कहा, “भाजपा के विधायक शिष्टाचार और शालीनता नहीं जानते और विधानसभा में पिछले दिनों राज्यपाल जगदीप धनखड़ के अभिभाषण के दौरान हुए हंगामे से यह बात जाहिर हो गई है। मैंने राजनाथ सिंह से लेकर सुषमा स्वराज तक अनेक भाजपा नेताओं को देखा है। हालांकि, यह भाजपा अलग है। वे (भाजपा सदस्य) संस्कृति, शिष्टाचार, शालीनता और सभ्यता नहीं जानते।’’
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ममता बनर्जी अपने भाषण में एक तरफ ‘खेला होबे’ दिवस मनाने की बात कर रही हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा नेताओं को शालीनता का पाठ पढ़ा रही हैं। एक साथ दो विरोधाभाषी बातों से ममता बनर्जी ने अपनी पाखंडता का एक और प्रमाण दिया है।
बेशक पश्चिम बंगाल में ‘खेला होबे’ के नारे को याद किया जाना चाहिए क्योंकि इस नारे ने तृणमूल कार्यकर्ताओं के अंदर हिंसा का जहर घोला है। नतीजतन, विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद टीएमसी के गुंडों ने भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के ऊपर जानलेवा हमला किया। टीएमसी के कार्यकर्ताओं पर बीजेपी महिला कार्यकर्ताओं के साथ दुष्कर्म के आरोप लगे।
खेला होबे एक खुनी नारा है उसे दिवस के रूप में मानना अमानवीय
भाजपा कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया। खेला होबे नारे की वजह से आज बंगाल के लाखों लोगों को अपना घर-बार छोड़कर असम में पलायन करना पड़ा है।
बंगाल में चुनावों के बाद इतने बड़े स्तर पर हिंसा हुई कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इसकी जांच करनी पड़ रही है। हद तो तब हो गई जब हाल ही में टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने NHRC की टीम पर ही हमला बोल दिया। लगातार हुई हिंसा के बाद स्थिति यहां तक पहुंच गई कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन के कयास लगाए जाने लगे, और ये सब इसी ‘खेला होबे’ का परिणाम था। इसके बाद भी ऐसी जीत पर शर्मिंदा होने के बजाय सूबे की मुख्यमंत्री इसको ‘खेला होबे’ दिवस के रूप में याद करना चाहती हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने सदन में भाजपा नेताओं को शिष्टाचार का भी पाठ पढ़ाया जबकि ममता को ऐसी नसीहत अपने बेकाबू कार्यकर्ताओं को देनी चाहिए। ममता बनर्जी के इन्हीं कार्यकर्ताओं की वजह से पश्चिम बंगाल में बीजेपी के कार्यकर्ता और समर्थक डर के साए में जी रहे हैं।
‘खेला होबे’ दिवस को जश्न के तौर पर मनाया जाना किसी अमानवीय कार्य से कम नहीं है। यह दिवस हर साल न जाने कितने घाव जो अगर भर भी चुके होंगे तो उनको फिर से हरा कर देगा। इंसानियत के पैमाने पर तो दूर यह दिवस कानूनी तौर पर भी खरा नहीं उतरेगा, क्योंकि यह नारा पश्चिम बंगाल सरकार का नहीं, बल्कि तृणमूल कांग्रेस पार्टी का अपना निजी नारा था। ऐसे में सरकारी खर्चे पर अपनी पार्टी की जीत का जश्न मनाना, पूरी तरह से गैर-कानूनी होगा।