साल 2022 में भारत में सात राज्यों में चुनाव होने वाले हैं- उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर। इन राज्यों से जुड़े सभी राजनीतिक दलों ने अपना चुनावी बिगुल फूँक दिया है। वर्तमान परस्थितियों को देखें तो भारतीय जनता पार्टी निसंदेह सभी राज्यों में बहुमत की सरकार बनाते हुए दिख रही है; लेकिन हिमाचल प्रदेश और पंजाब छोड़कर बाकी सभी राज्यों में भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व लोकप्रिय और चर्चित नेता कर रहे हैं। अगर हम विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश की बात करें तो, हिमांचल प्रदेश की कामान पार्टी ने 2017 में जय राम ठाकुर के हाथों में दी थी, लेकिन जय राम इस अवसर को भुनाने में नाकाम रहे और आज अपने कार्यकाल के 4.5 वर्ष के बाद भी वह राज्य में low- profile नेता के तौर पर देखे जाते हैं।
हाल ही में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपने गृह विधानसभा क्षेत्र सिराज में विरोधियों और अपने ही दल के कई नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा कि, ‘मैं कम बोलता हूँ, तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं कम जनता हूँ।‘ ठाकुर की इन बातों से एक चीज़ साफ हो रही है, उनके शांत और गैर- आक्रामक छवि से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ रहा है और साथ ही में पार्टी इकाई के अंदर से भी मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के विरोध में आवाज़ बुलंद होने लगी हैं।
ऐसे में हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी अपनी राजनीतिक पैठ जमाने का प्रयास कर रही है। दैनिक जागरण की खबर के अनुसार आम आदमी पार्टी राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। अरविंद केजरीवाल जल्द ही हिमाचल प्रदेश के दौरे पर जाने वाले है, जहां वह सूबे में आम आदमी पार्टी के संगठन को मजबूत बनाने का काम करेंगे। बता दें कि आम आदमी पार्टी ने साल 2017 में पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिससे अकाली और बीजेपी गठबंधन को नुकसान उठाना था, वैसे ही आम आदमी पार्टी के हिमाचल प्रदेश में चुनाव लड़ने से बीजेपी को क्षति पहुंच सकती है।
अगर हम राज्य की राजनीति पर गौर करें तो, हिमाचल प्रदेश में कभी कोई पार्टी लगातार दो बार सरकार नहीं बना पाई है। ऐसे में आगामी चुनाव जयराम ठाकुर की राजनीतिक कैरियर के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होगा। जयराम ठाकुर के बीते हुए कार्यकाल में कोई बड़ी गतिविधि देखने को नहीं मिली है। मुख्यमंत्री का शांत स्वभाव उनकी विकास कार्यों में भी देखने को मिला है, यानि राज्य का विकास कार्य भी ठंडे बस्ते में पड़ा रहा और जो काम हुआ है उसकी चर्चा कहीं सुनने को नहीं मिला है। उदाहरण के तौर पर देखें तो, बीजेपी की ओर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल राज्य में चर्चित और खबरों में बने रहने वाले राजनेता है। अपने कार्यकाल में उन्होंने राज्य के कोने- कोने को सड़क से जोड़ दिया था। जिससे उनके चाहने वालों ने उन्हें उपनाम दिया था, “सड़क बनाने वाला मुख्यमंत्री”।
इससे पहले कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का नाम भी राज्य के प्रतिष्ठित और लोकप्रिय नेताओं के लिस्ट में शुमार था। हाल ही में उनका देहांत हो गया था, जिससे हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अत्यंत रूप से कमजोर हो गई है। ऐसे में निश्चित तौर पर बीजेपी की जीत हो सकती है, लेकिन उससे पहले जयराम ठाकुर को खुद को साबित करना होगा। उनके पास यह साबित करने के लिए एक आखिरी मौका है वह है राज्य में होने वाले उप चुनाव। राज्य में 4 सीटों पर उपचुनाव होने वाले है, जिसमें से तीन विधानसभा पद के लिए और 1 लोकसभा सीट के लिए।
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मुख्यमंत्री और बीजेपी के लिए इन चारों सीट पर जीत दर्ज करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि हिमाचल प्रदेश बीजेपी के राष्ट्र अध्यक्ष जेपी नड्डा का भी गृह प्रदेश है। इसलिए आप अनुमान लगा सकते हैं कि आगमी चुनाव कितना महत्वपूर्ण है। अगर उपचुनावों में बीजेपी अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है तो निसंदेह जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़ सकता है। जेपी नड्डा का गृह राज्य होने की वजह से उनकी भी साख दांव पर लगी हुई है, ऐसे में अगर वो राज्य के बीजेपी इकाई में फेरबदल करते हैं तो ज्यादा हैरानी की बात नहीं होगी।
वीरभद्र सिंह के देहांत के बाद राज्य में कांग्रेस का राजनीतिक सफर खत्म होने के कगार पर है, जिससे आम आदमी पार्टी के लिए एक अवसर बनता दिख रहा है। यकीनन, अरविंद केजरीवाल इस मौके को भुनाना चाहेंगे और विधानसभा चुनाव को बीजेपी बनाम कांग्रेस नहीं, बल्कि बीजेपी बनाम आम आदमी पार्टी करने के फिराक में होंगे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि फिलहाल राज्य में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन आम आदमी पार्टी की एंट्री से बीजेपी को नुकसान पहुंच सकता है। इस प्रकार की समस्या से निपटने के लिए पार्टी आलाकमान को प्रदेश की राजनीतिक दिशा को बदलना पड़ सकता है और उत्तराखंड के भांति राज्य में बेबाक और आक्रामक नेता को नियुक्त करना पड़ सकता है।