दानिश सिद्दीकी और उनकी पत्रकारिता: दक्षिणपंथ के विरुद्ध एजेंडा से भरा है बहीखाता

दानिश ने अपनी तस्वीरों के जरिए हमेशा ही वामपंथी एजेंडा चलाया

पत्रकार दानिश सिद्दीकी

PC: Gulte Desk

दुनिया में किसी भी वामपंथी के साथ कुछ गलत हो तो सारा जिम्मा दक्षिणपंथियों पर डाल दो! अमेरिकी मीडिया एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करने वाले भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत पर भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। देश का वामपंथी समूह अफगानिस्तान में तालिबानियों की गोलियों से हुई दानिश की मौत को कुछ इस कदर पेश कर रहे है मानो गोली चलाने वाला कोई भारतीय हिन्दू ही था।

सोशल मीडिया पर पत्रकार दानिश सिद्दीकी का गुणगान ऐसे किया जा रहा हैं, जैसे वो कोई महान व्यक्ति था। इसके विपरीत असलियत ये है कि दानिश ने अपनी तस्वीरों के जरिए हमेशा ही दक्षिणपंथियों के खिलाफ एजेंडा चलाया, दक्षिणपंथियों को संघी की संज्ञा देने से लेकर वामपंथी एजेंडा चलाने में उसने महारात हासिल कर रखी थी।

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के जाने के बाद से ही वहां लगातार तालिबानी आतंकवाद बढ़ रहा है। ऐसे में रिपोर्टिंग के दौरान ही रॉयटर्स के लिए काम करने वाले फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को तालिबानी आतंकियों द्वारा चलाई गई एक गोली लगी और उनकी मौत हो गई।

उनकी मौत पर भारत का वामपंथी वर्ग जमके छाती पीट रहा है। यकीनन किसी की मौत पर राजनीति या प्रोपेगैंडा नहीं होना चाहिए, लेकिन वामपंथियों ने अपने ही बीच के एक भारतीय पत्रकार की मौत को सरकार और दक्षिणपंथ विरोधी एजेंड़ा बना डाला है।

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लिबरलों द्वारा पत्रकार दानिश सिद्दीकी के सोशल मीडिया पर ऐसे कथन लिखे गए हैं, मानों दानिश सिद्दीकी कोई देवमानुष हो। दानिश को बहादुरी की मिसाल मानते हुए उन्हें किसी शहीद की तरह पेश किया जा रहा है। जबकि हकीकत ये है कि दानिश को वहां किसी ने भेजा नहीं था। वो अफगानिस्तान में अपनी मर्जी से अपने पेशे और काम के संबंध  में गए थे। पत्रकार दानिश सिद्दीकी रॉयटर्स के लिए काम करते थे, तो पहला सवाल रॉयटर्स के मैनेजमेंट से ही पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने दानिश को अफगानिस्तान भेजा ही क्यों? दूसरा सवाल… जब दानिश को पता था कि वहां खतरा है तो वहां गए ही क्यों?

 

पत्रकार दानिश सिद्दीकी के जाने या न जाने के मुद्दे को छोड़ भी दें, तो लिबरल मीडिया और वामपंथी एक एजेंडे के तहत तालिबान के खिलाफ कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। वामपंथी पत्रकारों के जगदगुरु रवीश कुमार ने दानिश को लगने वाली गोलियों को लानत भेजीं, लेकिन गोली चलाने वाले तालिबानी आतंकियों के खिलाफ कुछ नहीं बोला। ये दिखाता है कि ये लोग इस्लामिक कट्टरता फैलाने वाले तालिबान के खिलाफ कुछ नहीं बोलना चाहते हैं, जबकि इनके निशाने पर दक्षिणपंथी ही हैं।

इनका मुख्य मकसद दानिश की मौत पर एक राइटविंग विरोधी प्रोपेगैंडा चलाना था, और वे ऐसा कर भी रहे हैं।

महत्वपूर्ण बात ये भी है कि जब भी विदेश में किसी भारतीय की मृत्यु होती है तो पीएम मोदी उस मसले का विशेष संज्ञान लेते हुए ट्विटर पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हैं, लेकिन इस मुद्दे पर पीएम ने दो दिन बीत जाने के बावजूद कुछ नहीं बोला है। इसकी एक बड़ी वजह है कि पीएम पत्रकार दानिश सिद्दीकी की विचारधारा से अच्छी तरह से परिचित हैं, इसीलिए शायद उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ भी बोलना उचित नहीं समझा। प्रधानमंत्री का इस मुद्दे पर खामोश रहना ही लिबरलों की चिढ़न की एक बड़ी वजह है।

अगर बात करें तो दानिश ने अपने करियर में अनेकों तस्वीरों से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। खास बात ये है कि ये सभी फोटो दक्षिण पंथ के विरोध वाली ही थी। दिल्ली दंगों के दौरान बंदूक उठाए एक हिन्दू शख्स की फोटो हो, या किसान आंदोलन के दौरान पुलिस की कार्रवाई की तस्वीरें, सभी के पीछे एजेंडा एक ही था, मोदी सरकार को इन तस्वीरों के जरिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम किया जाए। दिल्ली दंगों के दौरान पत्रकार दानिश सिद्दीकी ने अपनी क्लिक की तस्वीरों के जरिए जनता में गुस्सा भड़काने की कोशिशें भी कीं। दानिश ने अपने ट्वीट्स में दक्षिणपंथियों के खिलाफ जमकर जहर उगला है।

 

कोरोना काल के दौरान ने दानिश ने अनेकों ऐसी तस्वीरें लीं जिसमें श्मशान में जलती चिताओं का ड्रोन वाला दृश्य था। खास बात ये है कि इन्ही तस्वीरों का प्रयोग करके विदेशी मीडिया ने  भारत के खिलाफ वैश्विक एजेंडा चलाने की कोशिश की। इन तस्वीरों के जरिए एक तो उन्होंने देश में भय का माहौल पैदा किया तो दूसरी ओर इनसे भारत की छवि को नुकसान भी पहुंचाया। श्मशान में उनकी तस्वीरों को लेकर ट्विटर यूजर्स ने भी उन्हें जमकर कोसा था और ये श्राप तक दिया था, कि उनके साथ भी इतना ही बुरा हो सकता है।

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संयोग देखिए कि ट्विटर यूजर द्वारा दिया गया श्राप ही सच्चाई बन गया। यद्यपि मरने के बाद किसी से की बैर नहीं रह जाता, लेकिन अगर पत्रकार दानिश सिद्दीकी के फोटो पत्रकारिता के करियर को देखें तो ये कहा जा सकता है कि दानिश ने पूरे करियर में दक्षिण पंथ के खिलाफ एजेंडा चलाया और उसी परिपाटी के तहत अब उनकी लाश पर भी उनके जैसी ही गिद्ध प्रवृत्ति वाले पत्रकार तालिबानियों को कोसने की जगह दक्षिणपंथियों को कोस रहे हैं, जो आलोचनात्मक भी हैं और हास्यासपद भी!

 

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