अपने से ऊंचे कद के हर काँग्रेसी नेता को जबरदस्ती झुकाने में लगे राहुल गांधी

राजनीतिक रूप से राहुल से बड़े हर व्यक्ति को कांग्रेस धीरे-धीरे छोटा बना रही है!

राहुल गांधी काँग्रेस

कहते हैं, विनाश काले विपरीते बुद्धि। सत्ता प्राप्त करने की लालसा में राहुल गांधी इतने अधीर हो चुका है कि काँग्रेस में जो बचे खुचे नेता किसी योग्य है, उनका भी पत्ता काटने में लगे हुए है। चाहे पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह हों या फिर कर्नाटक में सिद्दारमैया, राहुल गांधी इन्हें हटाकर अपने चाटुकारों को लगाना चाहते हैं, जिससे 2024 में उनके प्रधानमंत्री बनने की राह ‘सुनिश्चित’ हो जाए।

जिस प्रकार से अमरिंदर का पत्ता काटा गया है, उससे स्पष्ट होता है कि इस समय काँग्रेस में किसका सिक्का चल रहा है। वो कैसे? इसका एक प्रमाण काँग्रेस की अखिल भारतीय कमेटी के महासचिव अजय माकन के रीट्वीट से पता चलता है, जिस पर काफी बवाल मचा हुआ है।

रीट्वीट किये गए ट्वीट के अनुसार, “किसी भी राज्य में कोई क्षत्रप अपने दम पर नहीं जीतता है। गांधी नेहरू परिवार के नाम पर ही गरीब, कमजोर वर्ग, आम आदमी का वोट मिलता है। चाहे वह अमरिंदर सिंह हो या गहलोत या पहले शीला या कोई और, मुख्यमंत्री बनते ही यह समझ लेते हैं कि उनकी वजह से ही पार्टी जीती है। 20 साल से ज्यादा अध्यक्ष रहीं सोनिया ने कभी अपना महत्व नहीं जताया। नतीजा यह हुआ कि वे वोट लाती थीं और कांग्रेसी अपना चमत्कार समझकर गैर-जवाबदेही से काम करते थे। हार जाते थे तो दोष राहुल पर, जीत का सेहरा खुद के माथे, सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्‍यक्ष बनाकर नेतृत्व ने सहीं किया। ताकत बताना जरूरी था।”

यानि स्थिति स्पष्ट है – जो भी गांधी परिवार से व्यक्तित्व या राजनीतिक कद में तनिक भी ऊंचा होगा, उसे काँग्रेस पार्टी में कुचलने या पार्टी से निष्कासित करने में तनिक भी समय नहीं गंवाया जाएगा। इस समय कर्नाटक में सिद्दारमैया और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को छोड़कर ऐसा कोई भी क्षेत्रीय काँग्रेस नेता नहीं है, जो या तो राहुल गांधी की टक्कर का हो, या उन्हे आगे चलकर राष्ट्रीय राजनीति में पछाड़ सके।

पंजाब में जिस प्रकार से अमरिंदर सिंह के विरोध को दरकिनार करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब काँग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है, उससे न सिर्फ राहुल गांधी के शक्ति प्रदर्शन का एहसास होता है, बल्कि यह भी पता चलता है कि 2024 आते-आते वह किस प्रकार से अपने लिए प्रधानमंत्री पद तक एक निर्विरोध मार्ग चाहते हैं। यही भूल उन्होंने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भी की थी, और पंजाब के परिप्रेक्ष्य में एक बार फिर से वे वही भूल दोहराने जा रहे हैं।

लेकिन सत्ता पाने की लालसा में राहुल गांधी ये भूल रहे हैं कि वह कुछ भी पालें, पर गलतफहमी नहीं पालें। वे वास्तव में कितने योग्य हैं ये तो 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में पता चल ही चुका है। यदि पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आज काँग्रेस की सरकार है, तो वो इसलिए नहीं क्योंकि राहुल गांधी का नेतृत्व बड़ा मजबूत है, बल्कि इसलिए क्योंकि आज भी क्षेत्रीय स्तर पर कुछ मजबूत नेता इन क्षेत्रों में बचे हुए हैं। यदि राहुल गांधी नेतृत्व में इतने ही कुशल होते, तो हिमन्ता बिस्वा सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता काँग्रेस छोड़ क्यों जाते?

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