देश के शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव होने जा रहा है। यूजीसी बीए के लिए नया सिलेबस लेकर आया है जो मुगलों के इतिहास पर कम और भारत की संस्कृति पर अधिक केंद्रित है। भारतीय इतिहास के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह अद्भुत है।
दरअसल, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने फरवरी और मार्च के बीच कई स्टेकहोल्डर से सुझाव प्राप्त करने के बाद Learning Outcome-based Curriculum Framework (LOCF) के तहत स्नातक इतिहास पाठ्यक्रम को संशोधित किया है।
हालांकि इस अंडरग्रेजुएट कोर्स के सिलेबस के सामने आने के बाद कई लोग हंगामा भी खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। इस सिलेबस में वैदिक साहित्य पर अधिक ध्यान दिया गया है, और मुगलकालीन इतिहास को कम किया गया है, जोकि बहुत पहले हो जाना चाहिए था। मुगलकालीन इतिहास के बजाय भारतीय साम्राज्य जैसे विजयनगर को अधिक महत्व दिया गया है।
हम सब इस बात से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं कि पुरानी पठन सूची में सिर्फ आक्रमणकारियों का महिमामंडन किया गया था। उसी तरह की किताबें पढ़कर, इतिहास पढ़कर भारतीयों के मन में अपने ही देश, संस्कृति, परंपराओं और विरासत के लिए गर्व का भाव नहीं रहा। यहां तक कि ऐसी किताबों ने भारतीय को उनकी जड़ों से करीब-करीब दूर ही कर दिया। धीरे-धीरे भारतीयों के मन में उनकी संस्कृति को लेकर हीन भावना पैदा हो गई। अब उसी भूल को सुधारा जा रहा है।
इस सिलेबस की सबसे खास बात The Idea Of Bharat नामक एक पेपर है जो सबसे पहले पढाया जाएगा। इस पेपर में सनातन धर्म, संस्कृति, वैदिक इतिहास और साहित्य पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
इस पेपर का मकसद भारतीय युवाओं को उनकी मातृभूमि से जोड़ना है। वामपंथियों ने अपनी मनमानी कर देश के इतिहास के साथ बहुत छेड़खानी की है और देश की संस्कृति तथा इतिहास को नकारने का भरपूर प्रयास किया है। यह उसी नैरेटिव को बदलने की एक शुरुआत है।
सिलेबस का पहला पेपर The Idea Of Bharat भारतीय इतिहास के एक भारतीय दृष्टिकोण के लिए आधार निर्धारित करता है। इसमें भारत के ज्ञान, कला, संस्कृति, दर्शन और विज्ञान के बारे में पढाया जायेगा। इस पेपर के चैप्टर कुछ ऐसे हैं जिन्हें हमारी संस्कृति का, हमारे अस्तित्व का सार कहा जाए तो ये गलत नहीं होगा।
इस यूनिट में भारतवर्ष की समझ, भारत की शाश्वतता, समय और स्थान की भारतीय अवधारणा, वेद, वेदांग, उपनिषद, महाकाव्य, जैन और बौद्ध साहित्य, स्मृति, पुराण आदि के महत्व को वर्णित किया गया है।
अगला यूनिट भारतीय धर्म, दर्शन और वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित है। इसमें धर्म और दर्शन की भारतीय धारणा के बारे में युवाओं को पढाया जायेगा। वहीँ वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को मनुष्य, परिवार, समाज और दुनिया के परिप्रेक्ष्य में पढाया जायेगा। इसके साथ ही इसमें राजनीति और शासन, जनपद और ग्राम स्वराज्य की अवधारणा को भी शामिल किया गया है।
The Idea Of Bharat पेपर का अगला यूनिट विज्ञान, पर्यावरण और चिकित्सा विज्ञान पर आधारित है। ये यूनिट प्राचीन भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण संरक्षण पर भारतीय दृष्टिकोण, आयुर्वेद योग और प्राकृतिक चिकित्सा तथा भारतीय अंक प्रणाली और गणित से युवाओं को अवगत कराएगा। इस सिलेबस के पहले पेपर में जिन टॉपिक को शामिल किया गया है उनकी लंबे समय से राष्ट्रवादियों द्वारा मांग की जा रही थी।
इस सिलेबस के प्राचीन भारत के पार्ट में भी एक बड़ा बदलाव किया गया है जो वामपंथी इतिहासकारों का सबसे बड़ा काल्पनिक प्रोपेगेंडा था। इस सिलेबस में Aryan Invasion Theory को स्पष्ट तौर से एक मिथक कहा गया है।
इसके साथ ही Indus Valley Civilization को उसके इस नाम से न पुकार सिंधु-सरस्वती सभ्यता कहा गया है। यह बदलाव भी भारतवर्ष के वास्तविक भौगोलिक विस्तार को प्रस्तुत करने के लिए बेहद आवश्यक था।
और पढ़े: वामपंथियों का आर्यन आक्रमण सिद्धांत पूरी तरह फेक, राखीगढ़ी की खुदाई व DNA स्टडी में सिद्ध
यह पहली बार है कि आधिकारिक तौर पर भारत में यह कहा जा रहा है कि सिंधु-सरस्वती सभ्यता लुप्त नहीं हुई है बल्कि बच गई है। हमारे सभ्यतामूलक सनातन राष्ट्र की सांस्कृतिक निरंतरता स्थापित करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है।
इस सिलेबस में सिंधु-सरस्वती सभ्यता और वैदिक सभ्यता के संबंधों को पढाया जायेगा। साथ ही सिंधु-सरस्वती सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषताएं इसकी निरंतरता, पतन और उत्तरजीविता को शामिल किया गया है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सिलेबस में ‘भारत पर मुस्लिम शासन के प्रभाव’ पर एक अध्याय है। भारत पर अरब/बाद के इस्लामी आक्रमणों का प्रभाव अभूतपूर्व था। इस पर चर्चा और बहस की जरूरत है। कई वर्षों से विजयनगर जैसे महान साम्राज्य को मिटाए जाने की असफल कोशिश की गई, परंतु जो स्वयं समय है उसे मिटाना वामपंथी इतिहासकारों के बस का नहीं। इस सिलेबस में विजयनगर के ऊपर एक पूरा चेप्टर है। यह एक संतुलित पेपर जो पूरे देश को कवर करता है।
यही नहीं इसमें आरसी मजूमदार और सीवी वैद्य जैसे भारतीय इतिहासकारों को प्रमुखता से स्थान दिया गया है जोकि बेहद आवश्यक था।
इस पेपर में मध्यकाल को एक गंभीर रीमॉडेलिंग किया गया है जिसमें राष्ट्र इतिहास की बेहतर समझ के लिए भारत के बड़े हिस्से को शामिल किया गया है। अंडरग्रेजुएट कोर्स के लिए यूजीसी के इतिहास पाठ्यक्रम में संशोधन से विवाद खड़ा हो गया है।
यूजीसी द्वारा बीए के लिए लाए गए इस नए पाठ्यक्रम को देखकर एक उम्मीद जागी है। इस बदलाव का असर भले ही आने वाले एक दो वर्षों में न दिखे लेकिन यह आने वाले 10-20 वर्षों और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक निर्णायक कदम होगा। न सिर्फ वे भारतीय संस्कृति के महत्व को समझ पाएंगे बल्कि अपनी जड़ों से भी जुड़ेंगे और साथ ही भारत पर इस्लामिक शासन के नकारात्मक असर को आत्मसात कर सकेंगे।