भारत के राजनीतिक कालखंड में ऐसी कई कहानियां हैं, जो काफी विचित्र और हैरान कर देने वाली हैं। ऐसे ही एक कहानी महाराष्ट्र सरकार के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख की है। अनिल देशमुख पर पुलिस अधिकारियों के जरिए हर महीने 100 करोड़ रुपयों की वसूली करवाने का आरोप लगने के बाद मुंबई उच्च न्यायालय की एक पीठ ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। यह मामला तूल पकड़ने के बाद देशमुख को भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अब न सिर्फ सीबीआई, बल्कि प्रवर्तन निदेशालय भी अनिल देशमुख की जांच कर रहा है। देशमुख के ऊपर यह आरोप मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने लगाए थे।
इस मामले में ताजा अपडेट यह है कि अनिल देशमुख ED और सीबीआई की गिरफ्तारी से बचने के लिए “फरार” हैं। यह सच है कि महाराष्ट्र के सत्ताधारी पार्टी के वरिष्ठ नेता रहस्यमई तरीके से गायब हैं! आखिरी बार उन्हें 20 जुलाई को एक वीडियों में देखा गया था। वीडियों में अनिल देशमुख का कहना था कि उन्होंने 100 करोड़ रुपए मासिक रिश्वत मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के नोटिस को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और वह जल्द ही केंद्रीय एजेंसियों के सामने पेश होंगे। बता दें कि अनिल देशमुख 16 जुलाई से फरार हैं।
हाल ही में महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख व महाराष्ट्र सरकार को मुंबई उच्च न्यायालय में मुंह की खानी पड़ी थी। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार व देशमुख की ओर से दायर याचिकाएं खारिज कर दी हैं। देशमुख ने अपने विरुद्ध सीबीआई द्वारा दायर एफआईआर रद्द करने व महाराष्ट्र सरकार ने एफआईआर में से दो पैरा हटाने के लिए याचिका दायर की थी। इतना ही नहीं, राज्य सरकार इस फैसले पर कुछ दिन के लिए रोक भी लगवाना चाहती थी।
एक तरफ बॉम्बे हाईकोर्ट अनिल देशमुख और महाराष्ट्र सरकार को लताड़ लगा रही थी, तो वहीं दूसरी तरफ ED अनिल देशमुख के खिलाफ अरेस्ट वारंट के साथ ही उनकी संपत्ति को जब्त करने में लगी थी। मुंबई में देशमुख का 4.2 करोड़ रुपये का एक आवासीय फ्लैट, 16 जुलाई को जब्त और सील कर दिया गया था। यह संपत्ति उनकी पत्नी आरती और प्रीमियर पोर्ट लिंक्स लिमिटेड नामक एक कंपनी के नाम पर पंजीकृत है। धन शोधन निरोधक अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मुंबई के वर्ली में 1.54 करोड़ रुपए मूल्य के एक फ्लैट और रायगढ़ जिले के धुतुम गांव में 2.67 करोड़ मूल्य के 25 भूखंडों को कुर्क करने के शुरुआती आदेश जारी किए गए थे। ईडी ने आरोप लगाया था कि कुर्क संपत्तियां देशमुख के लाभकारी स्वामित्व वाली हैं। इस कार्यवाही के बाद से अनिल देशमुख अंडरग्राउंड हैं।
बीते रविवार को ईडी ने अनिल देशमुख की तलाश में उनके दो ठिकानों पर स्थित पैतृक आवास पर छापेमारी की। इन जगहों पर ना अनिल देशमुख मिले और ना ही उनकी पत्नी आरती देशमुख मिली। इसी क्रम में आज यानी 28 जुलाई को सीबीआई ने अनिल देशमुख के 12 ठिकानों पर छापेमारी की है, जिसमें मुंबई, पुणे, नाशिक, सांगली समेत अन्य ठिकाने शमिल हैं।
बता दें कि केंद्रीय एजेंसी ने देशमुख को उनके निजी सहायकों कुंदन शिंदे और संजीव पलांडे को आठ जुलाई को एक बार ‘मालिक’ से कथित तौर पर 40 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के बाद नोटिस भेजा था। देशमुख का सुप्रीम कोर्ट में दावा है कि सिर्फ उनके सहायकों के बयानों के आधार पर उनसे पूछताछ नहीं की जा सकती।
इस पूरे प्रकरण में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार का रुख देखने योग्य है। दोनों नेताओं ने हाल के दिनों में अनिल देशमुख के समर्थन में कोई भी टिप्पणी नहीं की है। जब यह मामला सामने आया था, तब शरद पवार ने सामने से आकर अनिल देशमुख का बचाव किया था। शरद पवार के इस बदले अंदाज के पीछे उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यकीनन, केंद्रीय जांच एजेंसियों के पास देशमुख के खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद हैं, ऐसे में शरद पवार खुद को उनसे अलग रखना चाह रहे हैं।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी अनिल देशमुख के मामले में कुछ भी बोलने से बचते रहे हैं। शायद, उद्धव ठाकरे भी जानते हैं कि देशमुख का अधिक समय तक बच पाना मुश्किल होगा। ये दोनों वरिष्ठ नेता यह भी जानते हैं कि महाविकास आघाड़ी सरकार में गृह मंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर रहे देशमुख की गिरफ्तारी हुई तो इसका संदेश अच्छा नहीं जाएगा। विपक्षी दल भाजपा इस भ्रष्टाचार का ठीकरा उद्धव सरकार पर फोड़कर वर्तमान सरकार को तो अस्थिर करने का प्रयास करेगी ही साथ ही आने वाले हर चुनाव में यह कलंक महाविकास आघाड़ी पर भारी पड़ेगा। ऐसे में अपनी डगमगाती हुई मुख्यमंत्री की कुर्सी को बचाने के उद्देश्य से उद्धव ठाकरे इस मामले पर मौन हैं।
अगर हम इस मामले को संक्षेप में बताएं तो मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह ने आरोप लगाया था कि अनिल देशमुख ने मुंबई क्राइम ब्रांच के अधिकारी सचिन वाझे को प्रतिमाह 100 करोड़ की वसूली का टारगेट दिया था। परमवीर सिंह ने ये बात भी कही है कि उन्होंने इस विषय में एनसीपी प्रमुख शरद पवार को चिट्ठी भी लिखी थी, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया। इस मुद्दे पर उनकी याचिका को स्वीकार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई को जांच करने का आदेश दिया था।
इसमें कोई दो राय नही है कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे मुख्यधारा मीडिया के सामने अनिल देशमुख का साथ नहीं दे रहे हैं, लेकिन पर्दे के पीछे से महाराष्ट्र सरकार देशमुख को बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। आपको बता दें कि हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की उस याचिका को भी खारिज किया था, जिसमें अनिल देशमुख के खिलाफ सीबीआई की एफआईआर के कुछ अंशों को चुनौती दी गई थी। इससे स्पष्ट होता है राज्य सरकार भी अनिल देशमुख के मामले से घबराई हुई है और उन्हें हर हाल में बचाने का प्रयत्न कर रही है।