रवीश कुमार यदि पत्रकार न होकर भारतीय हॉकी टीम / फुटबॉल टीम में होते तो टीम को कभी भी अच्छे डिफेंडर की कमी ही नहीं होती। वे अपने आकाओं का बचाव ही ऐसे करते हैं। जब से केरल पर बकरीद के नाम पर ढिलाइ बरतने और स्थिति को बद से बदतर बनाने के आरोप बनाने के आरोप लगे हैं, सभी वामपंथी अपने आकाओं के बचाव में उतर आए हैं। इन सबमें अग्रणी है एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार, जिन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट से एक बार फिर सिद्ध किया है कि वे अपने विचारधारा की रक्षा के लिए किस हद तक जा सकते हैं। केरल की बिगड़ती व्यवस्था के लिए राजदीप सरदेसाई ने तो मात्र इशारा किया था, परंतु रवीश कुमार ने अपने फेसबुक पोस्ट से सिद्ध किया है कि आखिर क्यों उन्हें पत्रकारिता के नाम पर कलंक माना जाता है।
इस फेसबुक पोस्ट के शीर्षक ‘केरल को लेकर आईटी सेल के अभियान’ से ही आप समझ सकते हैं कि रवीश कुमार अपने आकाओं को बचाने के लिए किस हद तक जा सकते हैं। दरअसल, ईद उल अज़हा को लेकर केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने हाल ही में कोविड से लेकर पाबंदियों को लेकर छूट दी थी, जिसके कारण केरल में शेष भारत से ज्यादा मामले सामने आने लगे हैं। प्रतिदिन 21000 से अधिक न मामले दर्ज होते हैं, जो भारत के कुल मामलों के 50 प्रतिशत से भी अधिक है।
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लेकिन रवीश कुमार जैसों को इससे क्या। उन्हें तो अपने आकाओं का बचाव करना है, लॉजिक और कॉमन सेंस जाए तेल लेने। रवीश कुमार की निजी बौखलाहट उनके फेसबुक पोस्ट में स्पष्ट दिखाई देती है, जब वे लिखते हैं, “आईटी सेल बौखला गया है। केरल को लेकर अभियान चला रहा है कि केरल को लेकर क्यों नहीं बोल रहे हैं। दूसरी लहर में जब नरसंहार हुआ था, तब आईटी सेल गायब था!”।
इसके बाद इसी फेसबुक पोस्ट में महंगाई से लेकर पेगासस जासूसी कांड तक पर जनाब चर्चा करते हैं, परंतु अपने तर्क के समर्थन में एक भी ठोस प्रमाण डालने की चेष्टा नहीं करते। डालेंगे भी कैसे, जब कोई प्रमाण होगा तब न डालेंगे। जब इंडियन एक्सप्रेस और राजदीप सरदेसाई ने Sero positivity का हवाला देकर केरल का बचाव करने का प्रयास किया था, तो इंडियन एक्सप्रेस के ही लिंक ने उन्हीं की पोल खोल दी थी। दरअसल, सीरो सर्वे में ये सामने आया है कि एंटी बॉडी के मामले में केरल के लोगों का हाल बूरा है, जबकि मध्य प्रदेश और राजस्थान में सर्वाधिक एंटी बॉडी विकसित हुए हैं।
हालांकि, यह रवीश कुमार के लिए कोई नई बात नहीं। जब केंद्र सरकार ने टीकाकरण में राज्यों का लचर प्रदर्शन देखते हुए सारा मामला अपने हाथों में लिया, और 21 जून को ही 80 लाख से अधिक लोगों ने टीकाकरण कराया, तो यही रवीश कुमार केंद्र सरकार का मज़ाक उड़ाते हुए कह रहे थे कि कांग्रेस सरकार के समय इससे ज्यादा बढ़िया व्यवस्था थी। फ़ेसबुक पर जनाब ने एक लंबे चौड़े फेसबुक पोस्ट में लिखा था, “पल्स पोलियो के सामने पिट गया आज का टीका अभियान, 86 लाख डोज़ ही लगे”।
फ़रवरी 2012 में पल्स पोलियो के तहत एक दिन में 17 करोड़ से अधिक बच्चों को पोलियो की दो बूँद दवा पिलाई गई थी। दस साल बाद गोदी मीडिया के प्रोपेगेंडा और करोड़ों रुपये के विज्ञापन के सहारे सरकार पूरा ज़ोर लगाती है और एक दिन में 86 लाख टीके ही लगा पाती है। पोलियो अभियान की आलोचना करने वाले इसके चरण की धूल भी नहीं छू सके। वो भी तब जब छह महीने से ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चल रहा है। उसके बाद भी पूरा दिन बीत जाने के बाद एक करोड़ की संख्या नहीं छू सके। तर्क ये कि ये दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान और विश्व रिकार्ड बन गया है”।
शायद इसी को कहते हैं, एक तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी। पूरे फेसबुक पोस्ट और अपने वीडियो विश्लेषण में कहीं भी रवीश कुमार ने कोई भी ठोस प्रमाण नहीं दिखाया है। जिस न्यूज़ीलैंड के सफलता के वे दावे ठोंक रहे हैं, वहाँ तो अभी भी पूरी आबादी का पर्याप्त टीकाकरण सुनिश्चित नहीं हो पाया है, लेकिन लगता है कि जनाब ने अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है। तभी वे एक बार अपने आकाओं के बचाव में इतने घटिया तर्क लेकर सामने आ गए। लेकिन जो तालिबान के बचाव में सीसे के गोलियों को ‘हज़ार लानतें’ भेज सकता है, उससे आप कॉमन सेंस की आशा कैसे कर सकते हैं?