लालू यादव- अपनी ही पार्टी के लिए सबसे बड़ा नासूर

लालू यादव 2.0- इस कहानी के सबसे बड़े विलेन इनके खुद के बेटे ही हैं

लालू यादव पार्टी

(PC: Rediffmail)

बिहार के जंगलराज का पर्याय बन चुके लालू यादव वापस आ चुके हैं। परंतु वे अब न पहले जितने प्रभावशाली हैं; और न ही अब वे उतने धाकड़ हैं, जितने पहले थे। लालू यादव अपनों के लिए, अपनी ही पार्टी के लिए नासूर बन गए हैं, ठीक वैसे ही जैसे मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी में अब बोझ समझा जाता है।

दरअसल, लालू यादव हाल ही में जमानत पर जेल से बाहर आए हैं, और आते ही उन्होंने भाषण देकर अपने समर्थकों को संबोधित भी किया। आरजेडी के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए लालू ने भावुक लहजे में कहा कि वे मिट जाएंगे परंतु वे झुकेंगे नहीं।

लालू के भाषण के अंश अनुसार, “बिहार में हमारी अनुपस्थिति में चुनाव हुआ। हम तड़पते रह गए। हमें मलाल है। तेजस्वी से बात होती रहती थी। उसने कहा कि पापा चिंता मत कीजिए। हम लोगों से निपट लेंगे। समाजवादियों ने संघर्ष छेड़ा कि मंडल कमीशन लागू करो। उस समय की सरकार ने गाड़ी रोककर रास्ते में कुटाई कराई, फिर हम लोग दिल्ली पहुंचे। नारा बुलंद किया कि मंडल कमीशन लागू करो। हमारे साथ जनता की ताकत है। हमारे साथ अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़े, अति पिछड़े और गरीब हैं। कोरोना प्रलय जैसा है लेकिन उससे बढ़कर महंगाई और बेरोजगारी लोगों की कमर तोड़ रही है।”

इस भाषण से स्पष्ट है कि लालू अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा फिर से प्राप्त करना चाहते हैं। परंतु क्या वे पहले की भांति बिहार में अपनी धाक जमा पाएंगे?

इसका सीधा और स्पष्ट उत्तर है – नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार में लालू यादव की पार्टी की हालत उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की हालत से भी बदतर है। इसके लक्षण विधानसभा चुनाव में ही दिख गए थे, जब तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव ने पूरा प्रयास किया था कि लालू यादव को दरकिनार कर दिया जाये और पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत की जाये। याद है ना कैसे लालू यादव को पोस्टर्स तक में जगह नहीं दी गयी थी।

इसके अलावा लालू यादव को कई घोटालों में दोषी सिद्ध किया जा चुका है। ऐसे में यदि वे राजनीतिक रूप से वापसी करना चाहेंगे भी, तो ये आरजेडी के लिए बेहद घातक सिद्ध होगा। ये बात तेजस्वी और तेज प्रताप से बेहतर कोई नहीं जानता। उन्होंने लालू के बिना पार्टी को चलाने का प्रयास किया लेकिन पार्टी अब बिखरती ही जा रही है।

इसके अलावा अब लालू के पास उनके विश्वासपात्र रघुवंश प्रसाद सिंह का साथ भी नहीं है। एक समय पर रघुवंश प्रसाद सिंह लालू प्रसाद यादव का दाहिना हाथ माने जाते थे। लेकिन अंत समय में रघुवंश प्रसाद सिंह के लिए आरजेडी के नेतृत्व ने उनका जीवन बिल्कुल असहनीय बना दिया।

एक वक्त था जब पार्टी की रैलियों में लालू यादव रघुवंश के भाषण से पहले कहते थे, अब ब्रम्हा बोलेंगे’उस वक्त उन्हें पूरी छूट थी। लेकिन लालू के सक्रिय राजनीति से दूर होने पर जिस तरह से लगातार रघुवंश को नजरंदाज किया गया, उससे वो बेहद आहत थे। एक रैली का जिक्र करते हुए उन्होंने तेजस्वी पर दबे शब्दों में हमला भी बोला था कि तेजस्वी उन्हें बोलने के लिए पांच मिनट देते हैं जबकि लालू जी कभी ये सीमाएं लगाने की कोशिश नहीं करते थे।

लालू के पास अब ना वो ग्लैमर है, ना उनके पास उनके करीबियों का साथ है। ऐसे में लालू यादव चाहकर भी वर्तमान परिस्थितियों को नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे। उनके अपने बेटे ही उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज कर चुके हैं। उनकी छवि रसातल में है। ऐसे में अब लालू अपनों के लिए और अपने पार्टी के लिए नासूर बन चुके हैं।

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