साल 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अगर किसी राजनीतिक पार्टी की साख दांव पर लगी है तो वो बसपा है। 2019 के लोकसभा चुनावों में भले ही पार्टी को 10 सीटें मिली हों, लेकिन ये कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि बसपा को सपा से गठबंधन का फायदा मिला था। बसपा सुप्रीमो मायावती जानती हैं कि यदि इन विधानसभा चुनावों में उन्हें कोई बढ़त न मिली तो पार्टी के अस्तित्व को बचाना ही चुनौती होगी। ऐसे में पहले ही मायावती ने 2007 के सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर चलने के संकेत दे दिए हैं। इसके साथ ही मायावती अब सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर भी चलती दिख रही हैं, जिसमें काशी, मथुरा का विशेष महत्व है।
टीएफआई ने आपको बताया था कि कैसे मायावती की पार्टी अपने चुनावी अभियान की शुरुआत अयोध्या से करके हिन्दुओं को आकर्षित करने की कोशिश कर चुकी है। इसके तहत सबसे पहले अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत की गई, सॉफ्ट हिंदुत्व का नेतृत्व बीएसपी में नंबर दो माने जाने वाले सतीश चंद्र मिश्रा कर रहे हैं।
इस कार्यक्रम के तहत उन्होंने अयोध्या में रामजन्भूमि और हनुमानगढ़ी के दर्शन किए और कहा कि ये सम्मेलन 29 जुलाई तक चलेगा। ये दिखाता है कि हिन्दू वोट बैंक समेत ब्राह्मणों को साधने की बीएसपी सॉफ्ट हिंदुत्व की बड़ी प्लानिंग करके बैठी है।
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सतीश चंद्र मिश्रा ने इस दौरान बीजेपी पर ही आरोप लगा दिए हैं कि राम या हिन्दुत्व पर बीजेपी का कब्जा नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मंदिर निर्माण का काम काफी सुस्त रफ्तार के साथ हो रहा है। सतीश चंद्र मिश्रा का दावा है कि यदि प्रदेश में मायावती की सरकार आती है तो राम मंदिर निर्माण का काम युद्ध स्तर पर किया जाएगा। सबसे महत्वपूर्ण बात उनकी ये थी कि उनके संबोधन में काशी और मुथरा का उल्लेख भी था। उन्होंने कहा, “इस सम्मेलन के दूसरे चरण का आगाज मथुरा, तीसरे चरण का वाराणसी, चौथे चरण का चित्रकूट और पांचवे चरण का बुद्ध की भूमि से होगा।”
पहली नजर में सतीश चंद्र मिश्रा की काशी मथुरा वाली बात हल्की लग सकती है, लेकिन ये बीएसपी की सॉफ्ट हिंदुत्व रणनीति को प्रतिबिंबित करता है। पहले ब्राह्मण सम्मेलन के जरिए हिन्दुत्व का पर्याय माने जाने वाली अयोध्या से चुनावी अभियान की शुरुआत और अब काशी, मथुरा और चित्रकूट में भी इसी तर्ज पर ब्राह्मण सम्मेलन करने का ऐलान ठीक वैसा ही है, जैसा बीजेपी और हिन्दुत्ववादियों का मंदिर संबंधी एजेंडा है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पास बनी ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही मस्जिद का मुद्दा विवादों में है। ऐसे में उसी तर्ज पर काशी मथुरा में ब्राह्मण सम्मेलन की बात इस बात का संकेत है कि अब बीएसपी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हिंदुत्व का सहारा लेने वाली है।
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दरअसल, पिछले दो सालों में मायावती के राजनीतिक रवैए में काफी बदलाव आया है। अनेकों ऐसे मुद्दे हैं जहां बीएसपी ने अन्य विपक्षी दलों की तरह मोदी या योगी सरकार का विरोध नहीं किया, बल्कि उनका पक्ष ही लिया है। अनुच्छेद 370 से लेकर सीएए तक के मुद्दों पर बीएसपी सुप्रीमों मायावती ने खुलकर अपना कोई विरोध दर्ज नहीं किया है, जोकि राजनीतिक पंडितों के हिसाब से एक संकेत है कि मायावती बीजेपी से अपनी करीबियों को विस्तार देने की कोशिश में हैं।
राजनीतिक विरोधियों पर हमले एक आम बात हैं लेकिन जब किसी दुश्मन को दोस्त बनाने की नियत हो तो फिर हमलों में तीखापन खत्म होने लगता है। इतना ही नहीं मायावती की पार्टी का हिन्दुत्व को पूर्ण समर्थन देना इस बात का भी संकेत है कि बीएसपी कभी भी बीजेपी के प्रति अपना रुख बदल सकती है।
पार्टी को पता है कि यदि 2022 के विधानसभा चुनावों में हार मिली तो फिर वो खत्म हो सकती है। यही कारण है कि बीएसपी चुनाव बाद बीजेपी से गठबंधन का एक रास्ता खुला रखना चाहती है, जिससे अगर कल को हाथ मिलाना पड़ जाए, तो वो अप्रत्याशित न लगे।