कोरोना काल में फ्लॉप होने वाले मंत्रियों को निकालकर पीएम मोदी ने दिया ‘सख्त संदेश’

कामगार होते तो इस्तीफा न देना पड़ता!

मंत्रिमंडल इस्तीफा

लगभग एक माह से चल रही सियासी अटकलों पर विराम लग गया है। बीते बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में कई नए चेहरे जुड़े तो कई पुराने चेहरों को अपना पद छोड़ना पड़ा। कोरोना महामारी में कई मंत्री फ्लॉप साबित हुए और यही कारण रहा कि उनको अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

इस सूची में सबसे पहला नाम रमेश पोखरियाल निशंक का है। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस विश्वास के साथ 2019 में बतौर मंत्री उन्हें शामिल किया था, उन उम्मीदों पर वे खरे नहीं उतर सके और उनके आने से शैक्षणिक व्यवस्था में सांस्कृतिक पहलू को बल मिलेगा; परन्तु प्रधानमंत्री की ये अपेक्षा भी पूरी नहीं हो पाई। यहाँ भी मामला मंत्रालय के कामकाज में त्रुटियों से भरा हैं। जिसके चलते निशंक समेत उनके साथ राज्य मंत्री संजय धोत्रे को भी हटाया गया है ।

मंत्रिमंडल विस्तार से एक दिन पूर्व सम्मानजनक विदाई के तौर पर थावरचंद गहलोत को कर्नाटक के राज्यपाल के तौर पर नई ज़िम्मेदारी दी गई। वहीं नए मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण वाले दिन, भोर होते ही मौजूदा मंत्रियों के इस्तीफे की झड़ी लगनी शुरू हुई और सांझ होते-होते 12 मंत्रियों से उनका इस्तीफा ले लिया गया।

संजय धोत्रे पर शिक्षा राज्यमंत्री की ज़िम्मेदारी थी और कोरोना काल से पूर्व ही वो अपने विभाग के प्रति ज़्यादा संजीदा नहीं दिखे, यही कारण है कि उनको इस विभाग से हटाकर उनकी जगह अन्नपूर्णा देवी को दी है, जो कि पहली बार सांसद बनी है ।

बाबुल सुप्रियो पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री की ज़िम्मेदारी थी। बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम कुछ हद्द तक उनसे इस्तीफा लेने की अहम वजहों में शामिल है।

राव साहेब दानवे पाटिल से इस्तीफा लेने की प्रमुख वजह उनकी उम्र को बताया गया है और मंत्रालय का काम करने में असमर्थता के परिणामस्वरूप उनसे राज्य मंत्री उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय का प्रभार साध्वी निरंजन ज्योति को दे दिया गया ।

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इस लिस्ट में दो आश्चर्यजनक नाम जिन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा वो हैं- रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर। काम में कोताही या शिकायत वाले पैमाने पर ये दोनों खरे नहीं उतरे और दिलचस्प बात ये है की ये दोनों ने 2014 से ही मंत्रिपरिषद में अहम भूमिका निभाया है। बावजूद इसके दोनों का हटना एक बड़ा प्रश्न है। ऐसा कहा जा रहा है कि अंदरखाने इन दोनों को संगठनात्मक रूप से उपयोग में लाने के लिए ये निर्णय लिया गया है। अब ये बात कहाँ तक सत्य होती है ये तो आने वाला समय ही बताएगा।

इनके अलावा सदानंद गौड़ा है जो कि कोरोना के दौर में ज़रूरी दवाइयों और उनके लिए ज़रूरी ड्रग की आपूर्ति सुनिश्चित करने में विफल रहे। ऐसा ही हाल संतोष गंगवार के मंत्रालय में भी देखा गया।

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