मीराबाई चानू – एक प्रतिभाशाली खिलाडी, एक गौरवान्वित भारतीय और एक सच्ची हिंदू

नकामयाबी से कामयाबी तक के सफ़र में अपनी संस्कृति को बनाया अपनी पहचान!

मीराबाई चानू टोक्यो ओलिंपिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय भारोत्तोलक बनी और इसी के साथ उन्होंने भारत के खेल के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। 2000 में सिडनी खेलों में कर्णम मल्लेश्वरी के कांस्य पदक के बाद, भारोत्तोलन में ओलंपिक पदक जीतने वाली वह दूसरी भारतीय महिला हैं। लेकिन मीराबाई चानू न सिर्फ एक प्रतिभाशाली भारोत्तोलक है बल्कि एक गौरवान्वित हिंदू भी हैं।

जैसे इस भारोतोलक ने देश के लिए रजत पदक पक्का किया वैसे ही देश भर में TV से चिपके खेल प्रेमियों के चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान छा गयी। जो लोग उन्हें और इस पदक की यात्रा के बारे में जानते हैं, वे जानते हैं कि यह पल मीराबाई के लिए कितने वर्षों के इंतजार के बाद आया है।

 

बता दें कि इस मणिपुरी एथलीट, ने 21 साल की उम्र में वर्ष 2016 के रियो डी जनेरियो में हुए ओलंपिक में पदार्पण किया था। लेकिन वहां वह हुआ जो उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। वह 48 किग्रा वर्ग में प्रतियोगिता को ही समाप्त होने में विफल रही थीं।

क्लीन एंड जर्क में अपने पहले प्रयास में 104 किग्रा की लिफ्ट में असफल होने के बाद, वह 106 किग्रा उठाने के अपने प्रयासों में दो बार असफल रही। अपने दूसरे और तीसरे प्रयास में, मीराबाई वजन नहीं उठा सकी। परिणामस्वरूप 12 खिलाडियों में वह केवल उन दो भारोत्तोलकों में से एक थी, जिनके नाम के आगे ‘Did Not Finish’ (DNF) लिखा हुआ था।

उस दिन एक युवा चानू की आंखों में आंसू थे लेकिन उसने उस निराशा को अपने पर हावी नहीं होने दिया और ठीक पंच वर्षों बाद उस दाग को धोते हुए उन्होंने रजत पदक जीता। उनके रजत पदक जीतने के बाद उनके उनके गाँव में त्योहार जैसा माहौल बना हुआ है।

 

2016 के एक साल बाद चानू ने अमेरिका के अनाहेम में आयोजित 2017 विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में कुल 194 किलोग्राम (85 किलोग्राम स्नैच और 109 किलोग्राम क्लीन एंड जर्क) उठाकर 48 किलोग्राम वर्ग में स्वर्ण पदक जीता और विश्व चैंपियन बन गईं।

मणिपुर की राजधानी इम्फाल से 200 किलोमीटर दूर एक गाँव में जन्मी, एक युवा मीराबाई को भारोत्तोलन के खेल से प्यार हो गया, जब उन्होंने 2004 के एथेंस ओलंपिक में महान कुंजारानी देवी को भारत का प्रतिनिधित्व करते देखा था।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि जब मीराबाई ने रजत पदक जीता तब उन्होंने सबसे पहले हाथ जोड़ कर दर्शकों का अभिवादन किया। यह उनके संस्कार और भारतीय संस्कृति के लिए अनन्य भक्ति ही है जो उन्हें पूरी दुनिया के सामने भी अपनी जड़ों को नहीं भूलने देता है। चाहे वो 5 अप्रैल 2020 को प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर दीपक जलाने का कार्यक्रम में भाग लेना हो या दीवाली पर की तस्वीरे शेयर करनी हो, मीराबाई सनातन धर्म की एक ऐसी दीपक हैं जो आने वाले वर्षीं में कई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।

 

मीराबाई जब भी वेटलिफ्टिंग के लिए आगे झुकती है, वे सबसे पहले बारबेल को अपने माथे से लगाती है। यानी वह प्रार्थना करती हैं। हर लिफ्ट से पहले उनकी यह आस्था उन लोगों को भड़का देगा जो अक्सर भारतीय संस्कृति का मजाक उड़ाते हैं। इस बड़े मंच पर भी अपनी भारतीयता और अपने सनातन धर्म को धारण करने वाली इस भारतोलक को TFI के तरफ से लाख-लाख बधाइयाँ।

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The Hindu की माने तो मीराबाई का भारोतोलन की दुनिया में प्रवेश लगभग आकस्मिक था। वह तीरंदाजी में दाखिला लेना चाहती थी। मीराबाई की पहली कोच अनीता चानू कहती हैं कि उन्होंने शुरू से ही मीराबाई के अंदर काफी संभावनाएं देखीं, “मैंने उनके माता-पिता से कहा कि अगर वे उनका समर्थन करते हैं, तो वह कई पदक जीतेंगी।”

2009 में उन्होंने अपने जीवन की पहली जीत हासिल की जब उन्होंने छत्तीसगढ़ में युवा चैंपियनशिप में एक स्वर्ण पदक जीता था। पांच वर्षों के भीतर, वह 170 किलोग्राम का संयुक्त वजन उठा रही थी, जो 2014 में ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में रजत जीतने के लिए पर्याप्त था। उन्होंने उस साल कोच विजय शर्मा के साथ काम करना शुरू किया और 2016 तक कुंजारानी देवी के 190 किलो के 12 साल पुराने रिकॉर्ड को तोड़ते हुए कुल 192 किलो वजन उठा लिया था।

अगस्त 2016 में, मीराबाई ने छह मणिपुरी एथलीटों के साथ ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भाग लेने के लिए रियो डी जनेरियो गई। उन्होंने सोचा था कि उनका 192 किग्रा (423 पाउंड) का भार एक पदक, कोई भी पदक हासिल करने के लिए पर्याप्त था। परन्तु मंच पर पहुँचते ही, वह चकाचौंध रोशनी, वेटप्लेट, उसके बगल में प्रतियोगियों की पंक्ति देख अचानक घबरा गयी। उन्हें आज तक याद नहीं कि आगे क्या हुआ। परन्तु तब उन्होंने अपने और भारत के लिए एक ओलंपिक को गँवा दिया था।

 

अगली सुबह अखबार में खबरें इस प्रकार थी कि कोई भी खिलाडी डिप्रेशन में चला जायेगा। The Hindu ने लिखा था, ‘India’s Meltdown at Rio,’ वहीँ इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा था कि, ‘Weightlifter Mirabai Chanu disappoints, blows away medal chance’ , टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने भी कुछ इसी तरह की हेडलाइन दी थी। ओलंपिक स्कोरबोर्ड पर उसके नाम के साथ तीन अक्षर DNF (डिड नॉट फिनिश) लिखा था जो उनके मन मष्तिस्क पर ऐसा छपा की आज उन्होंने उसका बदला रजत पदक जीत कर लिया है। अभी तो यह शुरुआत प्रतीत होता है, आगे मीराबाई और भी कारनामे कर देश का नाम ऊँचा करने का दमख़म रखती हैं।

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